वास्तुशास्त्र हमारे घर की समृद्धि और शांति के लिए बहुत प्रभावकारी होता है। जो लोग वास्तुशास्त्र में विश्वास रखते हैं वे घर के वास्तु से जुड़े नियमों का सख्ती से पालन करते हैं। कुछ लोगों का यह मानना होता है कि वास्तु से किसी प्रकार का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। पर हम आपको बता दें कि, वास्तुशास्त्र पूरी तरह से विज्ञान पर आधारित है, विज्ञान पर तो लोगों का विश्वास होना स्वाभाविक ही है।
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इसमें दिशाओं के अनुसार घर और घर में रखे सामानों की स्थिति तय की जाती है और कुछ विशेष कामों को करने की एक खास जगह होती है। प्राचीन समय से ही हर संस्कृति में हर कामों के लिए कुछ निश्चित जगह का चुनाव किया जाता है, जैसे खाना पकाने के लिए एक जगह तय की जाती है। नहाने के लिए स्नानागार या जिसे हम आज बाथरूम कहते हैं, अलग स्थान में होता है।
पूजा स्थल का अपना अलग स्थान रखा जाता है। इसी प्रकार कुछ कामों और घर में प्रयोग की जाने वाली सामग्रियों की भी एक निश्चित की हुई जगह होती है। इसमें चीजों और दिशाओं का विशेष महत्व होता है जो घर और परिवार के लोगों पर सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह करता है।
वास्तु एक विज्ञान भी है और एक कला भी। अथर्व वेद से जुड़ी स्थापत्य वेद मे इस का मूल है। वास्तु याने रहने की जगह और इस वास्तु शास्त्र (vastu shastra) मे है नियम जो दिशाओ से जुड़ी है और पाँच तत्वो से भी। मनुष्य के भीतर वही तत्त्व है जो बाहर है और अगर वो अपना घर और रहने और जीने का ढंग अगर दिशा और तत्वो से संरेखित करे तो घर मे, कुटुम्ब मे और खुद मे शांति और सुख होगा।
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वास्तु शास्त्र एक ऐसा ज्ञान है जो दिशाओं के माध्यम से आपको यह जानकारी उपलब्ध कराता है कि कौन सी वस्तु का स्थान किस दिशा में होना चाहिए। यहां हम आपको वास्तु टिप्स देंगे, जो आपके घर और संसार को खुशियों से भर देंगे।
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आधुनिक जमाने में भी वास्तु का ख्याल किया जाता है। इस विज्ञान के जरिये नैचुरल एनर्जी का अधिकतम प्रयोग कैसे किया जाता है – यह बखूबी समझाया गया है। चाहे पारंपरिक पुराणों को मानें या फिर आधुनिक विज्ञान को, वास्तु का अपना एक खास महत्व होता है।
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हम मुख्यतः चार दिशाओं से अवगत हैं, जिसमें पूरब, पश्चिम, उत्तर और दक्षिण दिशाएं शामिल हैं। अगर वास्तु ज्ञान की बात की जाये, तो वास्तु के अनुसार कुल आठ दिशाएं होती हैं, जिनमें पूरब, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण, ईशान (उत्तर पूर्व), वायव्य (उत्तर पश्चिम), अग्नि (दक्षिण पूर्व) और नैऋत्य (दक्षिण पश्चिम) के नाम शामिल हैं। कुछ वास्तु जानकारों का यह भी मानना है कि नभ और पाताल के नाम भी सूची में शामिल हैं अर्थात उनके अनुसार दिशाएं 10 हैं।
वास्तुचक्र की चारों दिशाओं में कुल बत्तीस देवता स्थित हैं। किस देवता के स्थान में मुख्य द्वार बनाने से क्या शुभाशुभ फल होता है, इसे बताया जा रहा है -
पूर्व
1. शिखी - इस स्थानपर द्वार बनाने से दुःख, हानि और अग्नि से भय होता है।
2. पर्जन्य - इस स्थान पर द्वार बनाने से परिवार में कन्याओं की वृद्धि, निर्धनता तथा शोक होता है।
3. जयन्त - इस स्थानपर द्वार बनाने से धन की प्राप्ति होती है।
4. इन्द्र - इस स्थान पर द्वार बनाने से धन प्राप्त होता है।
5. सूर्य - इस स्थान पर द्वार बनाने से क्रोध की अधिकता होती है।
6. सत्य - इस स्थान पर द्वार बनाने से चोरी, कन्याओं का जन्म तथा असत्य भाषण की अधिकता होती है।
7. भृश - इस स्थान पर द्वार बनाने से क्रूरता, अति क्रोध तथा अपुत्रता होती है।
8. अन्तरिक्ष - इस स्थान पर द्वार बनाने से चोरी का भय तथा हानि होती है।
दक्षिण
9. अनिल - इस स्थान पर द्वार बनाने से सन्तान की कमी तथा मृत्यु होती है।
10. पूषा - इस स्थान पर द्वार बनाने से दासत्व तथा बन्धन की प्राप्ति होती है।
11. वितथ - इस स्थान पर द्वार बनाने से नीचता तथा भय की प्राप्ति होती है।
12. बृहत्क्षत - इस स्थान पर द्वार बनाने से धन तथा पुत्र की प्राप्ति होती है।
13. यम - इस स्थान पर द्वार बनाने से धनकी वृद्धि होती है। (मतान्तर से इस स्थान पर द्वार बनाने से भयंकरता होती है।)
14. गन्धर्व - इस स्थान पर द्वार बनाने से कृतघ्रना होती है।
15. भृंगराज - इस स्थान पर द्वार बनाने से निर्धनता, चोर भय तथा व्याधि भय प्राप्त होता है।
16. मृग - इस स्थान पर द्वार बनाने से पुत्र के बल का नाश, निर्बलता तथा रोगभय होता है।
पश्चिम
17. पितर - इस स्थान पर द्वार बनाने से पुत्रहानि, निर्धनता तथा शत्रुओं की वृद्धि होती है।
18. दौवारिक - इस स्थान पर द्वार बनाने से स्त्रीदुःख तथा शत्रुवृद्धि होती है।
19. सुग्रीव - इस स्थान पर द्वार बनाने से लक्ष्मी प्राप्ति होती है।
20. पुष्पदन्त - इस स्थान पर द्वार बनाने से पुत्र तथा धन की प्राप्ति होती है।
21. वरुण - इस स्थान पर द्वार बनाने से धन तथा सौभाग्यकी प्राप्ति होती है।
22. असुर - इस स्थान पर द्वार बनाने से राजभय तथा दुर्भाग्य प्राप्त होता है। (मतान्तर से इस स्थान पर द्वार बनाने से धन लाभ होता है।)
23. शोष - इस स्थान पर द्वार बनाने से धन का नाश एवं दुःखों की प्राप्ति होती है।
24. पापयक्ष्मा - इस स्थान पर द्वार बनाने से रोग तथा शोक की प्राप्ति होती है।
उत्तर
25. रोग - इस स्थान पर द्वार बनाने से मृत्यु, बन्धन, स्त्रीहानि, शत्रुवृद्धि तथा निर्धनता होती हैं।
26. नाग - इस स्थान पर द्वार बनाने से शत्रुवृद्धि, निर्बलता, दुःख तथा स्त्रीदोष होता है।
27. मुख्य - इस स्थान पर द्वार बनाने से हानि होती है। (मनान्तर से इस स्थान पर द्वार बनानेसे पुत्र - धन - लाभ होता है।)
28. भल्लाट - इस स्थान पर द्वार बनाने से धन - धान्य तथा सम्पत्ति की प्राप्ति होती है।
29. सोम - इस स्थान पर द्वार बनाने से पुत्र, धन तथा सुख की प्राप्ति होती है।
30 भुजंग - इस स्थान पर द्वार बनाने से पुत्रों से शत्रुता तथा दुःखों की प्राप्ति होती है। (मतान्तर से इस स्थान पर द्वार बनाने से सुख - सम्पत्ति की वृद्धि होती है। )
31. अदिति - इस स्थान पर द्वार बनाने से स्त्रियों में दोष, शत्रुओं से बाधा तथा भय एवं शोककी प्राप्ति होती है।
32. दिति - इस स्थान पर द्वार बनाने से निर्धनता, रोग, दुःख तथा विघ्र - बाधा होती है।
मुख्य द्वारका स्थान
मुख्य द्वार की ठीक स्थिति जानने की अन्य विधियाँ इस प्रकार हैं -
(1) (क) जिस दिशा में द्वार बनाना हो, उस ओर मकान की लम्बाई को बराबर नौ भागों में बाँट कर पाँच भाग दायें और तीन भाग बायें छोड़ कर शेष (बायीं ओर से चौथे) भाग में द्वार बनाना चाहिये।
दायाँ और बायाँ भाग उसको मानना चाहिये, जो घर से बाहर निकलते समय हो।
(ख) शुक्रनीति में आया है कि मकान की लम्बाई के आठ भाग करके बीच के दो भागों में द्वार बनाना चाहिये। ऐसा द्वार धन तथा पुत्र देनेवाला होता है (शुक्रनीति १।२३१)।
(ग) घरकी लम्बाई के नौ भाग करके पूर्व दिशा में घर की बायीं ओर से तीसरे भाग में, दक्षिण दिशा में छठे भाग में, पश्चिम दिशा में पाँचवें भाग में और उत्तर दिशा में पाँचवें भाग में द्वार बनाना चाहिये (मुहूर्त्तमार्त्तण्ड ६।१७)।
(2) उत्संग द्वार - यदि बाहरी और भीतरी द्वार एक ही दिशा में हों अर्थात् घर का द्वार बाहरी प्रवेश द्वार के सम्मुख हो तो उसे 'उत्संग द्वार' कहते है। उत्संग द्वार से सौभाग्य की वृद्धि, सन्तान की वृद्धि, विजय तथा धन - धान्य की प्राप्ति होती है।
सव्य द्वार - यदि बाहरी द्वार से प्रवेश करने के बाद भीतरी (दूसरा) द्वार दायीं तरफ पड़े तो उसे 'सव्य द्वार' कहते है। सव्य द्वार से सुख, धन - धान्य तथा पुत्र - पौत्र की वृद्धि होती है।
अपसव्य द्वार - यदि बाहरी द्वार से प्रवेश करने के बाद भीतरी द्वार बायीं तरफ पड़े तो उसे 'अपसव्य द्वार' कहते है। अपसव्य द्वार से धन की कमी, बन्धु - बान्धवों की कमी, स्त्री की दासता तथा अनेक रोगों की उत्पत्ति होती है।
वास्तुशास्त्र की दृष्टि से अपसव्य (वामावर्त) सदा विनाशकारक और सव्य (दक्षिणावर्त या प्रदक्षिण - क्रम) सदा कल्याणकारक होता है -
विनाशहेतुः कथितोऽपसव्यः सव्यः प्रशस्तो भवनेऽखिलेऽसौ ॥
(वास्तुराज० १।३१)
'सव्यावर्तः प्रशस्यते', 'अपसव्यो विनाशाय'
(मत्स्यपुराण २५६।३-४)
पृष्ठभंग द्वार - यदि भीतरी द्वार बाहरी द्वार से विपरीत दिशा में हो अर्थात् घर के पीछे से प्रवेश्य हो तो उसे पृष्ठभंग द्वार कहते हैं। इसका वही अशुभ फल होता है, जो अपसव्य द्वारका होता है।
(3) मुख्य द्वारकी चौखट पञ्चमी, सप्तमी, अष्टमी और नवमी को लगानी चाहिये। प्रतिपदा को लगाने से दुःख की प्राप्ति, द्वितीया को लगाने से धन, पशु व पुत्र का विनाश, तृतीया को लगाने से रोग, चतुर्थी को लगाने से विघ्र एवं विनाश, पञ्चमी को लगाने से धन लाभ, षष्ठी को लगाने से कुल नाश, सप्तमी, अष्टमी और नवमी को लगाने से शुभ फल की प्राप्ति, दशमी को लगाने से धन नाश और पूर्णिमा व अमावस्या को लगाने से वैर उत्पन्न होता है।
(4) कुम्भ राशि का सूर्य रहते फाल्गुन मास में घर बनाये, कर्क व सिंह राशि का सूर्य रहते श्रावण मास में घर बनाये और मकर राशि का सूर्य रहते पौष मास में घर बनाये - ऐसे समय 'पूर्व' या 'पश्चिम' में द्वार शुभ होता है।
मेष व वृष राशि का सूर्य रहते वैशाख मास में घर बनाये, और तुला व वृश्चिक राशि का सूर्य रहते मार्गशीर्ष मास में घर बनाये - ऐसे समय 'उत्तर' या 'दक्षिण' में द्वार शुभ होता है।
उपर्युक्त विधिके अनुसार न करने से रोग, शोक और धन नाश होता है।
(5) पूर्णिमा से कृष्णपक्ष की अष्टमी पर्यन्त 'पूर्व' में द्वार नहीं बनाना चाहिये। कृष्णपक्ष की नवमी से चतुर्दशी पर्यन्त 'उत्तर' में द्वार नहीं बनाना चाहिये। अमावस्या से शुक्लपक्ष की अष्टमी पर्यन्त 'पश्चिम' में द्वार नहीं बनाना चाहिये। शुक्लपक्ष की नवमी से शुक्लपक्ष की चतुर्दशी पर्यन्त 'दक्षिण' में द्वार नहीं बनाना चाहिये।
तात्पर्य है कि कृष्ण 9 से शुक्ल 14 पर्यन्त 'पूर्व' में द्वार बनाये, अमावस्या से कृष्ण 8 पर्यन्त 'दक्षिण' में द्वार बनाये, शुक्ल 9 से कृष्ण 14 पर्यन्त 'पश्चिम' में द्वार बनाये, और पूर्णिमा से शुक्ल 8 पर्यन्त 'उत्तर' में द्वार बनाये।
(6) भाद्रपद आदि तीन - तीन मासों में क्रमशः पूर्व आदि दिशाओं की ओर मस्तक करके बायीं करवट से सोया हुआ महासर्पस्वरुप 'चर' नामक पुरुष प्रदक्षिण - क्रमसे विचरण करता रहता है। जिस समय जिस दिशा में उस पुरुष का मस्तक हो, उस समय उसी दिशा में घरका दरवाजा बनाना चाहिये। मुख से विपरीत दिशा में दरवाजा बनाने से दुःख, रोग, शोक तथा भय होते हैं। यदि घर की चारों दिशाओं में दरवाजा हो तो यह दोष नहीं लगता।
(7) ब्राह्मण राशि (कर्क, वृश्चिक, मीन) - वालों के लिये 'पूर्व' में द्वार बनाना उत्तम है। क्षत्रिय राशि (मेष, सिंह, धनु) - वालों के लिये 'उत्तर' में द्वार बनाना उत्तम है। वैश्य राशि (वृष, कन्या, मकर) - वालों के लिये 'दक्षिण' में द्वार बनाना उत्तम है। शूद्र राशि (मिथुन, तुला, कुम्भ) - वालों के लिये 'पश्चिम' में द्वार बनाना उत्तम है।
(8) सामान्य रुप से पूर्वादि दिशाओं मे स्थापित मुख्य द्वार का फल इस प्रकार है। -
पूर्व में स्थित द्वार 'विजयद्वार' कहलाता है, जो सर्वत्र विजय कराने वाला, सुखदायक एवं शुभ फल देने वाला है।
दक्षिण में स्थित द्वार 'यमद्वार' कहलाता है, जो संघर्ष कराने वाला तथा विशेष रुप से स्त्रियों के लिये दुःखदायी है।
पश्चिम में स्थित द्वार 'मकरद्वार' कहलाता है, जो आलस्यप्रद तथा विशेष प्रयत्न करने पर सिद्धि देने वाला है।
उत्तर में स्थित द्वार 'कुबेरद्वार' कहलाता है, जो सुख - समृद्धि देने वाला तथा शुभ फल देने वाला है।
(9) मुख्य द्वार का अन्य द्वारों से निकृष्ट होना बहुत बडा़ दोष है। मुख्य द्वार की अपेक्षा अन्य द्वारों का बडा़ होना अशुभ है।
(10) द्वार की चौडा़ई से दुगुनी द्वार की ऊँचाई होनी चाहिये।
(11) त्रिकोण द्वार होने से स्त्री को पीडा़ होती है। शकटाकार द्वार होने से गृहस्वामी को भय होता है। सूपाकार द्वार होने से धन का नाश होता है। धनुषाकार द्वार होने से कलह होती है। मृदङाकार द्वार होने से धन का नाश होता है। वृताकार (गोल) द्वार होने से कन्या - जन्म होता है।
(12) यदि द्वार घर के भीतर झुका हो तो गृहस्वामी की मृत्यु होती है। यदि द्वार घर के बाहर झुका हो तो गृहस्वामी का विदेशवास होता है। यदि द्वार ऊफरके भाग में आगे झुका हो तो वह सन्तानाशक होता है। द्वार (किवाड़) - में छिद्र होने से क्षय होता है।
द्वारके टेढे़ होने पर कुल को पीड़ा, बाहर निकल जाने पर पराभव, आध्मात (फूला हुआ) होने पर अत्यन्त दरिद्रता और मध्यभाग में कृश होने पर रोग होता है।
द्वार के फूले हुए होने पर क्षुधा का भय तथा टेढे़ होने पर कुलनाश होता है। टूटा हुआ द्वार पीडा़ करने वाला, झुका हुआ द्वार क्षय करने वाला, बाहर झुका हुआ द्वार प्रवास कारक और दिग्भ्रान्त द्वार डाकुओं से भय देने वाला होता है।
निम्र द्वारसे गृहस्वामी स्त्रीजित् होता है। उन्नत द्वार से दुर्जन की स्थिति होती है। सम्मुख द्वार से सुतपीड़ा होती है। पृष्ठाभिमुख द्वार से स्त्रियों की चपलता होती है। वामावर्त द्वार से धन नाश होता है। अग्रतर द्वार से प्रभुता का नाश होता है।
(समराङ्रण० ३८।६७ - ६९)
(13) द्वार का अपने - आप खुलना या बन्द होना भय दायक है। द्वार के अपने - आप खुलने से उन्माद (पागलपन) होता है और अपने - आप बन्द होने से कुल का विनाश होता है।
अपने - आप खुलने वाला द्वार उच्चाटनकारी होता है। वह धनक्षय, बन्धुओं से वैर या कलह करने वाला होता है। अपने - आप बन्द होने वाला द्वार बड़ा दुःखदायी होता है। आवाज के साथ बन्द होने वाला द्वार भयकारक और गर्भपात करने वाला होता है।
(14) दूसरे घर के पिछले भाग पर स्थित द्वार वाला घर दोनीं गृहस्वामियों में परस्पर विरोध उत्पन्न करता है।
(15) मुख्य द्वार ईशान में होने से धन की प्राप्ति तो होती है, पर सन्तान के लिये यह शुभ नहीं है। पिता - पुत्र में तनाव, खटपट भी रहती है।
(16) अधिकतर दक्षिण दिशा वाले मकान ही बेचे जाते हैं।
(17) वायव्य दिशा वाले मकान में गृहस्वामी बहुत कम रह पाता है।
वास्तु टिप्स (Vastu Tips in Hindi):
1. घर के मुख्य द्वार के समक्ष कभी भी आपको डाइनिंग टेबल नहीं लगाना चाहिए। डाइनिंग एरिया तय करते समय इस बात का अवश्य ध्यान रखें कि वह आपके मुख्य द्वार से सीधा दिखाई न दे।
2. उत्तर पूर्व अर्थात ईशान दिशा में तुलसी का पौधा लगाए।
3. घर में रखी हुई तिजोरी या पर्स जिसमें आप धन इकठ्ठा करके रखते है, वह हमेशा ही दक्षिण में रखा जाना चाहिए।
4. घर में रखी हुई अलमारियों को इस प्रकार रखें कि जब भी उनका द्वार खुले तो वह उत्तर दिशा में खुले।
5. अगर घर के दरवाजे पुराने हो गए हैं और उन्हें खोलने या बंद करते समय उसमें से आवाज आती है, तो यह शुभ नहीं होता है इसलिए उन्हें समय पर तेल डाल कर ठीक करवाते रहें।
6. जब भी आप सोते हैं, तो आपका मस्तिष्क दक्षिण दिशा में और पैर उत्तर दिशा में रखकर सोयें। ऐसा करने से आपका स्वास्थ्य बेहतर रहेगा।
7. दक्षिण पूर्व दिशा अग्नि की दिशा है। इस दिशा में हनुमान जी की मूर्ति स्थापित नहीं की जाती है। अगर घर में इस दिशा में हनुमान जी की मूर्ति हो, तो उसका स्थान परिवर्तन कर दें।
8. घर में उत्तर पूर्व दिशा को जितना हो सके उतना खुला छोड़ दे। इस दिशा में ज्यादा कंस्ट्रक्शन नहीं किया जाना चाहिए।
9. आपके बेडरूम में बेड रखते समय यह आवश्य ध्यान दें कि आपके बेड के ऊपर कोई भी बीम न पड़े। यह नकारत्मक ऊर्जा को बढ़ावा देता है इसलिए बेड को बीम के नीचे रखने से बचें।
10. घर में ईशान दिशा (उत्तर पूर्व) को हमेशा ही साफ रखा जाना चाहिए। अगर इस दिशा में गंदगी होगी तो घर के मुखिया का स्वास्थ्य प्रभावित हो सकता है।
11. घर के सभी टॉयलेट और बाथरूम का उपयोग नहीं करते समय उनके दरवाजे को बंद रखें। बाथरूम का दरवाजा खुला छोड़ने से घर में नकारत्मक ऊर्जा का संचार होता है।
12. घर के हॉल, ड्रॉइंग रूम या लिविंग रूम में सूर्य की उगती हुई पेंटिंग या फोटो जरूर लगाएं। इस तस्वीर के लगाने से घर में सकारात्मक ऊर्जा बनी रहेगी।
13. साफ-सफाई में उपयोग होने वाले सारे उपकरण – झाड़ू, पोंछा वगैरह को घर की रसोई में नहीं रखा जाना चाहिए।
14. किचेन में शीशा या उसकी दिवार पर भी शीशा नहीं लटकाना चाहिए। रसोई में शीशा लगाना शुभ नहीं माना जाता है।
15. वायव्य (उत्तर पश्चिम) या अग्नि (दक्षिण पूर्व) दिशा में घर के टेलीफोन को रखना चाहिए लेकिन यह ध्यान रहे कि कभी टेलीफोन ईशान या नैऋत्य में न रहे।
16. पूजा घर और बाथरूम का स्थान आस-पास नहीं होना चाहिए। अगर ऐसा है तो पूजा घर का स्थान परिवर्तन कर लें।
17. पूजा घर में संध्या के समय धूप (अगरबत्ती) जलाने से पूरे घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
18. भगवान की आराधना करते समय हमेशा यह ध्यान रखना चाहिए कि आपका मुख उत्तर पूर्व दिशा की ओर ही हो।
19. घर के लिविंग रूम के ईशान दिशा में फिश एक्वेरियम रखना चाहिए। इसमें आप 9 सुनहरी गोल्डफिश और 1 ब्लैक गोल्डफिश रखें। यह घर में सुख स्मृद्धि बनाये रखता है।
20. आपके बेडरूम में कभी भी कोई पानी वाली वस्तुएं – जैसे कि कोई वॉटरफॉल की सीनरी या फिर पौधा न लगाएं। अगर ऐसा है तो उन्हें हटा दें।
21. घर में कंप्यूटर या टी.वी. हमेशा ही लिविंग रूम या स्टडी रूम में रखें। कंप्यूटर या टी.वी. को दक्षिण पूर्वी स्थान में रखेंगे तो यह और शुभ रहेगा।
22. इस बात का आवश्य ध्यान रखें कि घर के मुख्य द्वार पर रोशनी में कोई कमी नहीं होनी चाहिए। मुख्य द्वार पर छोटे-छोटे नहीं अपितु बड़े-बड़े लाइट लगवाएं।
23. धन की अल्पता को दूर करने के लिए एक पात्र में साबुत नमक लें और उसे ईशान कोण में जाकर रख दें। इस नमक को समय-समय पर बदलते रहना चाहिए।
24. दक्षिण पश्चिम दीवारों पर हीं आप अपने बेड और अलमारियों को जमायें। यह अवश्य ध्यान में रखें कि उत्तर और पूर्वी दिशा में दीवारों पर चीजें कभी भी सेट न की जाये।
25. कुबेर दिशा अर्थात उत्तर दिशा में अपने विवाह की तस्वीर को लगाना चाहिए।
26. अपनी कार्यक्षमता को बढ़ाने के लिए रोज सोते समय अपने सर के पास एक ताम्बे के पात्र में जल भरकर रखें। इससे आपको सकारत्मक ऊर्जा मिलेगी।
27. पूर्व दिशा में कैलेंडर लगाने से आपके जीवन में तरक्की आएगी। पूर्व दिशा सूर्य देव की दिशा है जो आपको वर्ष भर ऊर्जा प्रदान करेगी।
28. घर के सारे कोनों में रौशनी की पर्याप्त मात्रा होनी चाहिए। सभी कोनों को लैंप व कैंडल्स से सजाया जा सकता है। इस बात का आवश्य ध्यान दें कि कोनों में कभी किसी प्रकार की गंदगी न हो।
29. घर में कभी भी किसी भी दीवार पर कोई भी ऐसी तस्वीर को न लगाएं जो नकारत्मक ऊर्जा को आमंत्रित करती हो। हरियाली वाली तस्वीरें लगाना लाभदायक होगा।
30. पूजा घर बनाते वक्त यह ध्यान दें कि वह ईशान कोण में ही बनाया जाए। अगर किसी कारणवश ऐसा नहीं कर पाते हैं तो भगवान की मुर्तियां ऐसे रखें कि उनका मुख ईशान दिशा की ओर ही हो।
31. घर में बच्चो का शयनकक्ष (बेडरूम) कभी भी उत्तर पश्चिम में नहीं होना चाहिए।
32. घर में कभी भी रसोईघर को दक्षिण दक्षिण पूर्वी (SSE) दिशा में नहीं बनवाना चाहिए। इससे घर की शांति भंग होती है। रसोईघर को पूर्व-दक्षिण-पूर्वी (ESE) दिशा में बनवाना चाहिए।
33. बाथरूम का निर्माण करते समय यह ध्यान दें की वह दक्षिण दिशा में न बनवाए जाएं।
34. दक्षिण नैऋत्य दिशा (SSW) या दक्षिण पूर्वी (SE) दिशा में कभी भी शयनकक्ष का निर्माण नहीं होना चाहिए। यह घर में लड़ाई का कारण भी बन सकता है। शयनकक्ष को पश्चिम-दक्षिण-पश्चिम (WSW) या दक्षिण (S) दिशा में बनवाना चाहिए।
35. घर की खिड़कियां और दरवाजे पूर्व या उत्तर दिशा में ही होना चाहिए।
36. घर के बुजर्गों की कोई भी तस्वीर कभी भी पूजाघर में नहीं रखनी चाहिए। उनकी तस्वीरें आप दक्षिण दिशा में लगाएं।
37. भोजन करने के पश्चात जूठे बर्तनों को ज्यादा देर तक सिंक में नहीं रखना चाहिए। इससे घर में दरिद्रता आती है।
38. घर निर्माण करते समय यह ध्यान अवश्य दें कि घर में कोई भी तीन दरवाजे एक ही सीध में न रहें।
39. घर का मुख्य द्वार कभी भी घर के ठीक बीचों बीच नहीं बनवाना चाहिए।
40. पूर्व या उत्तर दिशा में घर का मुख्य द्वार बनवान ही उचित माना जाता है।
41. अपने इष्ट देवी या देवता का स्मरण रोज करें।
42. घर में किसी भी स्थान पर कांटेदार या दूध वाले पौधे (उदाहरण : कैक्टस व आकड़ा) कभी भी नहीं लगाना चाहिए।
43. घर के आंगन में हमेशा ही खुशबूदार फूल वाले पौधे लगाना चाहिए।
44. घर के प्रवेश द्वार पर कोई भी मांगलिक चिन्ह जैसे की स्वास्तिक या ॐ को सिन्दूर से बनाएं।
45. घर के मुख्य द्वार पर आप गणेश जी की प्रतिमा या धन की देवी लक्ष्मी माता की प्रतिमा भी रख सकते हैं।
46. प्रवेश द्वार बनवाते समय यह ध्यान दें कि उसकी लम्बाई चौड़ाई से दोगुनी हो।
47. घर में मुख्य द्वार के एकदम सामने कोई भी जल का स्त्रोत होना शुभ नहीं माना जाता है।
48. घर में पेंट करवाते समय यह ध्यान रखें कि घर की खिड़कियों और दरवाजों को काला रंग न दिया जाए।
49. घर के किसी भी कोने में दीवार, छत या कोई भी कोना क्षत्रिग्रस्त न हुआ हो। अगर ऐसा है तो उसे तुरंत ठीक करवाएं।
50. घर के मुख्य द्वार के सामने मंदिर भी नहीं होना चाहिए यह वास्तु के अनुरूप शुभ नहीं माना जाता है।
51. घर में किसी भी कोने में बंद पड़ी हुई घड़ी न लगाएं। टूटे हुए कांच की चीजों को भी घर से बाहर कर दें।
52. अपने बेडरूम में कभी भी आईना नहीं लगवाना चाहिए।
53. शयनकक्ष में आपके बेड के ठीक सामने कभी भी ड्रेसिंग टेबल को न रखें।
54. श्वेत आर्क और शमी का पौधा घर में लगाने से पारिवारिक प्रेम में वृद्धि होती है।
55. रसोई में खाना बनाते वक्त यह ध्यान में रखना चाहिए की मुख पूर्व दिशा में रहे।
56. भोजन ग्रहण करते वक्त भी पूर्व दिशा की ओर मुख रखें। इससे आपकी पाचन शक्ति बढ़ेगी।
57. विवाह योग्य कन्याएँ अपना कमरा उत्तर पश्चिम दिशा में ही रखें। इससे उनके विवाह में आ रही अड़चने दूर हो जाएंगी।
58. पढाई में कम रूचि रखने वाले बच्चों को हमेशा पूर्व की और मुख करके अध्यन्न करवाएं। इससे उन्हें लाभ मिलेगा।
59. नकारात्मक ऊर्जा को नष्ट करने के लिए घर में हफ्ते में एक बार पानी में नमक डालकर पोछा लगवाएं।
60. घर में शंख आवश्य रखा जाना चाहिए। इसे बजाने से सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होगा।
61. घर में रखी हुई विवाह के निमंत्रण पत्रों को कभी भी फाड़ कर नष्ट न करें; इससे गुरु और मंगल दोष हो जाता है।
62. ऑफिस में आपका मुख्य केबिन हमेशा नैऋत्य कोण में होना चाहिए।
63. अगर आप दफ्तर में काम करते हैं तो हमेशा ही उत्तर पूर्व की ऒर मुख करके अपना काम करें।
64. रसोई का सिंक हमेशा ही ईशान कोण में बनवाना चाहिए।
65. किचन में लगी हुई अलमारी को पश्चिम या दक्षिण की दीवारों पर लगाना चाहिए।
66. रसोईं घर के दक्षिण दिशा में कोई भी खिड़की न बनवाएं।
67. रसोईं घर से लगा हुआ कोई भी जल का स्त्रोत नहीं होना चाहिए।
68. घर की स्त्री द्वारा प्रातः रोज उठकर मुख्य द्वार पर जल डलवाना चाहिए। इससे घर में माँ लक्ष्मी जी की कृपा बनी रहेगी।
69. प्रवेश द्वार का वास्तु दोष दूर करने हेतु वहां घंटियों वाला तोरण अवश्य लगाएं।
70. रसोईं घर और प्रवेश द्वार एकदम सीध में नहीं होने चाहिएं। ऐसा करना सम्भव न हो तो आप रसोईघर के द्वार पर पर्दा लगवा दें।
71. मुख्य द्वार हमेशा ही घर के भीतर खुले, बाहर नहीं।
72. उत्तर दिशा की ओर धातु से बना हुआ कछुआ रखने से घर में समृद्धि बनी रहती है।
73. घर के भीतर पूर्व दिशा में पीपल का पेड़ नहीं लगा होना चाहिए।
74. खाद्य सामग्री को रसोईं के दक्षिण पश्चिम भाग में रखना चाहिए।
75. कभी भी किचन में रौशनी के आभाव में चूल्हा नहीं जलना चाहिए; इससे संतान कष्ट होता है।
76. किचन में जाकर कभी भी रोना नहीं चाहिए; इससे स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।
77. पूर्व दिशा में लगे हुए फर्श या टाइल्स का रंग गहरा होना चाहिए। वास्तु के अनुसार करवाइए घर का रंग, और पाये कमाल के लाभ।
78. उत्तर पश्चिम दिशा में लगे हुए पर्दों का ग्रे कलर हो तो यह सबसे शुभ माना जाता है।
79. सीढियाँ बनवाते समय यह ध्यान रखें कि उसके प्रारम्भ या आखिर में कोई द्वार नहीं होना चाहिए।
80. घर में कभी भी, खासकर कोनों में, जालें न लगने दें। यह वास्तुदोष का प्रमुख कारण है।
81. सीढ़ियों के नीचे कभी भी पुराना सामान रखने के लिए स्टोर रूम न बनवाएं।
82. बिजली का मेन बोर्ड अग्नि कोण में लगवाना चाहिए।
83. पूजा घर का द्वार हमेशा दो पल्ले वाला हीं बनवाना चाहिए।
84. बेडरूम में कभी भी देवता की मूर्ति नहीं लगानी चाहिए।
85. अपने स्नानघर में नीले रंग की बाल्टी आवश्य रखें।
86. बाथरूम में गहरे रंग की टाइल्स के प्रयोग से बचना चाहिए।
87. आपके शयनकक्ष को बाथरूम से थोड़ा उंचाई पर रखें।
88. घर में कभी भी कोई भी नल को टपकता हुआ न छोड़ें। इसे तुरंत ठीक करवाएं।
89. बाथरूम में लगा हुआ आईना आपके द्वार के सीध में नहीं होना चाहिए।
90. बच्चों की अलमारी हमेशा नैऋत्य कोण में ही बनी हुई होनी चाहिए।
91. लिविंग रूम की ढलान हमेशा उत्तर पूर्व दिशा की ओर ही होनी चाहिए।
92. घर के पश्चिमी क्षेत्र में शनि देव की स्थापना से इस दिशा का वास्तु दोष कट जाता है।
93. उत्तर दिशा में कभी भी सीढ़ियों का निर्माण नहीं करवाना चाहिए।
94. पूर्व दिशा की ओर सीढ़ियों का उतार होना चाहिए।
95. दक्षिण और नैऋर्त्य दिशाओं में बनी हुई दीवारें हमेशा ही मोटी बनवानी चाहिए।
96. घर से पानी को बाहर निकालने के लिए उत्तर पूर्व दिशा ही उप्युक्त माना जाता है।
97. सोलह साल की आयु वाले लोगों का बैडरूम पश्चिम में हीं बनवाना चाहिए।
98. रात में सोते समय आपके पैर कभी भी किसी द्वार की ओर नहीं होना चाहिए।
99. शयनकक्ष में पति-पत्नी के लिए पलंग पर अलग अलग गद्दे नहीं लगे होने चाहिए।
100. बहुमंजिला इमारतों में घर के प्रमुख का बेडरूम हमेशा ऊपर की या पहली मंजिल पर होना चाहिए, ग्राउंड फ्लोर पर नहीं।
101. घर में तलघर में कोई भी बेडरूम का निर्माण नहीं किया जाना चाहिए। इससे आर्थिक और स्वास्थ्य दोनों की समस्या होगी।
हर व्यक्ति या हर घर के लिए इन सभी वास्तु टिप्स पर अमल करना संभव नहीं है। आप जितने टिप्स पर अमल कर सकते हैं, अच्छा है – जिस पर नहीं कर सकते, उसको लेकर अनावश्यक स्ट्रैस न लें। आज के हालत मे यह तो मुमकिन नहीं है की हर कोई वास्तु के नियम अनुसार घर बना सके।
घर मे कोई ना कोई वास्तु दोष रह जाता है मगर वास्तु मे वास्तु दोष निवारण (vastu dosh nivaran) के लिए वास्तु टिप्स (vastu tips in hindi) है जिस से यह दोष का असर कम कर सके। फिलहाल वास्तु शास्त्र टिप्स (vastu shastra tips in hindi) जानिए और यह घर वास्तु टिप्स (vastu tips for home) जहाँ तक हो सके वहाँ तक अपनाए।
ऐसे तो और भी अनगिनत वास्तु टिप्स इन हिन्दी फॉर हाउस है जो वास्तु टिप्स इन हिन्दी मे आप पढ़ सकेंगे मगर यह नीव के वास्तु टिप्स फॉर होम भी ध्यान मे रखे और अमल करे तो काफ़ी फायदा होगा। आप इन छोटी सी बातों पर ध्यान दे कर और घर में छोटे छोटे बदलाव करके ईश्वर की कृपा से सुखमय, आनंदमय एवं मंगलमय जीवन व्यतीत कर सकते हैं।
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Engineer Rameshwar Prasad(B.Tech., M.Tech., P.G.D.C.A., P.G.D.M.) Vaastu International
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