A Multi Disciplinary Approach To Vaastu Energy

LAL KITAB

लाल किताब


भारतीय ज्योतिष में फलकथन की अनेक पद्धतियां हैं जिनमें लाल किताब पद्धति सर्वाधिक प्रचलित है। इसमें वर्णित सहज सरल उपाय इसकी लोकप्रियता के मुख्य कारण हैं। आज की जीवन शैली में ये उपाय कुछ अजीब तो लगते हैं परंतु उपयोगी व फलदायक हैं।

लाल किताब क्या है ?

लाल किताब ज्योतिष की एक ऐसी पुस्तक है जिसमें वैदिक ज्योतिष से कुछ अलग तरीके से फल-कथन दिया गया है। यह संस्कृत के श्लोकों में ना होकर उर्दू के शब्दों में मुख्य रूप से बनाई गई है। इसमें वैदिक ज्योतिष की तरह अलग-अलग भाव के स्वामी ग्रह ना बताकर प्रत्येक भाव का एक स्थाई स्वामी ग्रह माना जाता है और उसी के आधार पर ज्योतिषीय गणना की जाती है।

इसमें प्रथम भाव को मेष राशि, दूसरे भाव को वृषभ राशि और इसी प्रकार 12 भावों को व्यवस्थित किया गया है और प्रत्येक घर का एक ग्रह का निश्चित स्थान कारकत्व प्रदान किया गया है उसी के आधार पर फल की गणना की जाती है। लाल किताब की विशेषता यह है कि इसमें ऐसे उपाय दिए गए हैं जो टोने और टोटके के रूप में बहुत ही आसान हैं और एक सामान्य व्यक्ति इन उपायों को कर ग्रह दोषों से मुक्ति प्राप्त कर सकता है।

लाल किताब की पृष्ठभूमि

भारतवर्ष की पृष्ठभूमि प्राचीन काल से ज्ञानवान रही है। यहां विभिन्न प्रकार के ऋषि मुनियों ने जन्म लिया है, जिन्होंने विभिन्न प्रकार की स्मृतियां, पुराण, ग्रंथ आदि की रचना की है। लाल किताब भी ज्योतिष की एक ज्योतिष का महत्वपूर्ण ग्रंथ माना जाता है। यह विद्या भारत के उत्तरांचल और हिमाचल क्षेत्र से हिमालय के इलाकों में फैली और बाद में इसका प्रचलन मैदानी क्षेत्रों में पंजाब आदि से होकर अफगानिस्तान तक होता रहा।

भारतीय वैदिक सभ्यता में कंठस्थ करने की आदत डाली जाती थी इसलिए इस प्रकार की समस्त विद्याएं एक पीढ़ी द्वारा दूसरी पीढ़ी को कंठस्थ रूप से अग्रेषित की जाती थी। कुछ लोगों का मानना है की एक समय आकाश से आकाशवाणी भी होती थी जिससे किसी भी शुभ-अशुभ के घटित होने की सूचना प्राप्त होती थी इसी प्रकार इस ग्रंथ को एक पीढ़ी के लोगों ने लिपिबद्ध किया और तब धीरे-धीरे यह एक महान ग्रंथ बनने की ओर अग्रसर हुआ। वर्ष 1939 में जालंधर शहर पंजाब के निवासी पंडित रूप चंद जोशी ने इसको लिखा और तब से उनके नाम का संबंध लाल किताब से जोड़कर देखा जाता है।

पंडित रूप चंद जोशी ने इस किताब को लगभग 5 भागों में लिखा है अर्थात इस पुस्तक के पाँच संस्करण हैं जो कि निम्नलिखित हैं:-

1. लाल किताब के फरमान : यह पुस्तक वर्ष 1939 में प्रकाशित हुई।

2. लाल किताब के अरमान : यह पुस्तक वर्ष 1940 में प्रकाशित हुई।

3. लाल किताब (गुटका) : यह पुस्तक वर्ष 1941 में प्रकाशित हुई।

4. लाल किताब : यह पुस्तक वर्ष 1942 में प्रकाशित हुई।

5. लाल किताब : यह पुस्तक वर्ष 1952 में प्रकाशित हुई।

यह सभी पांचों भाग अपने आप में पूर्ण रूप से संपूर्णता ग्रहण किए हुए हैं। इस पद्धति के नियम अन्य ज्योतिष पद्धतियों से कुछ भिन्नता लिए हुए हैं। यही इस किताब को एक महान ग्रंथ बनाते हैं। जिस कालखंड में इस पुस्तक की रचना हुई उस समय मुख्य रूप से उर्दू प्रचलन में थी। इस कारण पंडित रूप चंद जोशी ने इसकी रचना उर्दू में की ताकि आम बोलचाल में लोग इसको आसानी से समझ सकें और छोटे-छोटे उपाय द्वारा अपने जीवन की समस्याओं का निवारण कर सकें। लाल किताब का उर्दू भाषा से संबंध होने के कारण कुछ लोगों में भ्रांतियाँ भी हैं कि यह फारसी अथवा अरबी ग्रंथ है जो कि सर्वथा ग़लत है।

लाल किताब के सूत्रों का संबंध फलित ज्योतिष आम ज्योतिष की प्रसिद्ध धारणा से नहीं होकर विशेष रूप से सामुद्रिक, नाड़ी शास्त्र और हस्तरेखा जैसे विद्याओं से संबंधित है। इस पुस्तक का संबंध वास्तु-शास्त्र से भी माना जाता है। वास्तव में यह एक अनूठी पुस्तक है जिसके माध्यम से कोई भी व्यक्ति उन छोटे-छोटे उपायों, टोटकों आदि के बारे में जानकर उन्हें प्रयोग कर सकता है और ग्रह दोषों से मुक्ति प्राप्त कर ग्रहों को अनुकूल बनाने का प्रयास कर सकता है।

जीवन में आए या आने वाले कष्टों से मुक्ति के उपायों से युक्त तथा ताम्र वर्ण (लाल रंग) वाले सूर्य देव द्वारा रचित ग्रंथ को लाल किताब नाम दिया गया। इसके अनुसार ज्योतिष कोई जादू टोना नहीं है बल्कि अपने पूर्वजन्म या इस जन्म के बुरे कर्मों से मिल रहे कष्टों से मुक्ति दिलाने का माध्यम है। लाल किताब में ग्रहों को विभिन्न संज्ञाएं दी गई हैं जैसे सोया ग्रह, जागा ग्रह, धर्मी ग्रह, अधर्मी ग्रह, अंधा ग्रह, मंदा ग्रह, नेक ग्रह, किस्मत जगाने वाला ग्रह, पक्के भाव का ग्रह, कायम ग्रह, नपुंसक ग्रह आदि। अनुवादित लाल किताब में भी अधिक शब्द उर्दू व फारसी के हैं। इनके साथ-साथ अंगे्रजी, पंजाबी व संस्कृत के शब्दों का भी उपयोग किया गया है। हिंदू देवी देवताओं व वृक्षों के नाम भी लाल किताब में मिल जाते हैं।

लाल किताब की विशेषताएं

लाल किताब ज्योतिष के संबंध में एक बहुत ही आसान पुस्तक है जिसके द्वारा कोई सामान्य व्यक्ति भी अपने चारों ओर की परिस्थितियों के अनुसार अपनी जन्म कुंडली को परख सकता है और आसान उपाय करके ग्रहों को अनुकूल बना सकता है। इसके नियम वैदिक ज्योतिष के नियमों से भिन्न हैं। जैसे- वैदिक ज्योतिष में लग्न को सर्वाधिक मान्यता दी जाती है और जन्म के समय पूर्वी क्षितिज पर उदित राशि को लग्न भाव में अर्थात प्रथम भाव में लिखा जाता है। लेकिन लाल किताब कुंडली में ऐसा नहीं होता है। इसमें कुंडली में भाव स्थिर ही रहते हैं जैसे कि कालपुरुष की कुंडली में।

उदाहरण के लिए यदि किसी का जन्म वैदिक ज्योतिष के अनुसार धनु लग्न में हुआ है तो उसकी जन्म कुंडली में धनु राशि प्रथम अर्थात लग्न भाव में लिखी जाएगी, लेकिन लाल किताब में ऐसा नहीं होगा। लाल किताब के अनुसार, कुंडली में प्रथम भाव अर्थात लग्न में मेष राशि ही लिखी जाएगी और धनु राशि उसी क्रमानुसार नवम भाव में अंकित की जाएगी।

इसी प्रकार ग्रहों की भी स्थिति है। यदि वैदिक ज्योतिष की कुंडली में गुरु बृहस्पति उच्च का है तो इसका तात्पर्य यह हुआ कि गुरु बृहस्पति कर्क राशि में स्थित है भले ही वह किसी भी भाव में स्थित हो परंतु लाल किताब कुंडली में गुरु कर्क राशि में चौथे भाव में ही माना जाएगा और उसी के अनुसार उसका फल कथन किया जाता है।

इसके अतिरिक्त ग्रहों भावों और लाल किताब कुंडली जिसे टेवा भी कहते हैं, के बारे में भी अपना अलग मत है। इसके अनुसार पक्का घर, सोया हुआ ग्रह, सोया हुआ भाव या घर, साथी ग्रह, रतान्ध्र ग्रह या अंधा टेवा, धर्मी टेवा तथा नाबालिक टेवा जैसे शब्दों का प्रयोग भी किया जाता है, जिनका लाल किताब के अनुसार बहुत महत्व है। आइए इन शब्दों को और विस्तार से जानते हैं:

पक्का घर

वैदिक ज्योतिष में जहां प्रत्येक भाव के कारक ग्रह निश्चित होते हैं लाल किताब कुंडली में ऐसा नहीं होता। यहां कालपुरुष कुंडली की भांति प्रथम भाव में मेष राशि स्थित होती है और इस प्रकार वृषभ, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु, मकर और कुंभ तथा अंतिम बारहवें भाव में मीन राशि अंकित की जाती है। अब क्योंकि मेष राशि का स्वामी मंगल है अतः मंगल का पक्का घर प्रथम भाव माना जाएगा। चतुर्थ भाव में कर्क राशि होने से चंद्रमा का पक्का घर माना जाएगा। इसी प्रकार नवम भाव बृहस्पति तथा दशम और एकादश भाव शनि ग्रह का पक्का घर माना जाता है।

सोया हुआ ग्रह

लाल किताब कुंडली के अनुसार यदि कोई ग्रह ऐसी अवस्था में है जो किसी अन्य ग्रह को दृष्टि नहीं दे रहा तो ऐसा ग्रह सोया हुआ ग्रह कहलाता है। लेकिन यदि कोई ग्रह अपने पक्के घर में स्थित है तो वह सोया हुआ ग्रह नहीं माना जाएगा। इसका तात्पर्य यह है कि उस ग्रह का प्रभाव केवल उसी घर तक सीमित माना जाएगा जिसमें वह स्थित है इसके अतिरिक्त नहीं। उदाहरण के लिए यदि कुंडली के चतुर्थ भाव में शुक्र ग्रह स्थित है और दशम भाव रिक्त है तो इस स्थिति में शुक्र सोया हुआ ग्रह माना जाएगा क्योंकि शुक्र की सप्तम दृष्टि दशम भाव पर है लेकिन उसमें कोई ग्रह स्थित नहीं है तथा चतुर्थ भाव शुक्र का पक्का घर भी नहीं है। इस स्थिति में शुक्र का प्रभाव केवल चतुर्थ भाव पर ही माना जाएगा और उसी के आधार पर फलकथन किया जाएगा।

सोया हुआ घर

लाल किताब कुंडली के जिस घर में कोई ग्रह न हो अर्थात वह घर रिक्त हो और उस घर पर किसी अन्य ग्रह की भी सामान्य दृष्टि ना हो तो ऐसा घर सोया हुआ घर कहलाता है। ऐसा माना जाता है कि सोया हुआ घर तब तक स्वयं से संबंधित कोई प्रभाव नहीं देता जब तक कि उससे संबंधित उपाय कर के उसे जगाया ना जाए। प्रत्येक भाव को जगाने के विभिन्न उपाय इस प्रकार हैं:

  • जिन लोगों की कुण्डली में प्रथम भाव सोया हुआ हो उन्हें इस घर को जगाने के लिए मंगल का उपाय करना चाहिए। मंगल का उपाय करने के लिए मंगलवार का व्रत करना चाहिए। मंगलवार के दिन हनुमान जी को लडुडुओं का प्रसाद चढ़ाकर बांटना चाहिए। मूंगा धारण करने से भी प्रथम भाव जागता है।

  • अगर दूसरा घर सोया हुआ हो तो चन्द्रमा का उपाय शुभ फल प्रदान करता है। चन्द्र के उपाय के लिए चांदी धारण करना चाहिए। माता की सेवा करनी चाहिए एवं उनसे आशीर्वाद प्राप्त करना चाहिए। मोती धारण करने से भी लाभ मिलता है।

  • तीसरे घर को जगाने के लिए बुध का उपाय करना लाभ देता है। बुध के उपाय हेतु दुर्गा सप्तशती का पाठ करना चाहिए। बुधवार के दिन गाय को चारा देना चाहिए।

  • लाल किताब के अनुसार किसी व्यक्ति की कुण्डली में अगर चौथा घर सोया हुआ है तो चन्द्र का उपाय करना लाभदायी होता है।

  • पांचवें घर को जागृत करने के लिए सूर्य का उपाय करना फायदेमंद होता है। नियमित आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ एवं रविवार के दिन लाल भूरी चीटियों को आटा, गुड़ देने से सूर्य की कृपा प्राप्त होती है।

  • छठे घर को जगाने के लिए राहु का उपाय करना चाहिए। जन्मदिन से आठवां महीना शुरू होने पर पांच महीनों तक बादाम मन्दिर में चढ़ाना चाहिए, जितना बादाम मन्दिर में चढाएं उतना वापस घर में लाकर सुरक्षित रख दें। घर के दरवाजा दक्षिण में नहीं रखना चाहिए। इन उपायों से छठा घर जागता है क्योंकि यह राहु का उपाय है।

  • सोये हुए सातवें घर के लिए शुक्र को जगाना होता है। शुक्र को जगाने के लिए आचरण की शुद्धि सबसे आवश्यक है।

  • सोये हुए आठवें घर के लिए चन्द्रमा का उपाय शुभ फलदायी होता है।

  • जिनकी कुण्डली में नवम भाव सोया हो उनहें गुरूवार के दिन पीलावस्त्र धारण करना चाहिए। सोना धारण करना चाहिए व माथे पर हल्दी अथवा केशर का तिलक करना चाहिए। इन उपाय से गुरू प्रबल होता है और नवम भाव जागता है।

  • दशम भाव को जागृत करने हेतु शनिदेव का उपाय करना चाहिए।

  • एकादश भाव के लिए भी गुरू का उपाय लाभकारी होता है।

  • द्वादश भाव को जगाने के लिए केतु का उपाय करना चाहिए। अगर बारहवां घ्रर सोया हुआ हो तो घर मे कुत्ता पालना चाहिए। पत्नी के भाई की सहायता करनी चाहिए। मूली रात को सिरहाने रखकर सोना चाहिए और सुबह मंदिर मे दान करना चाहिए।

साथी ग्रह

लाल किताब में साथी ग्रह की अवधारणा भी मानी गई है। साथी ग्रह वह ग्रह होते हैं जो एक दूसरे के पक्के घरों में बैठ जाते हैं। ऐसे ग्रह एक-दूसरे के प्रति बुरा प्रभाव नहीं देते और इसलिए साथी ग्रह बन जाते हैं और अच्छा प्रभाव देते हैं। उदाहरण के लिए शनि ग्यारहवें भाव का पक्का स्वामी है और सूर्य पांचवें भाव का पक्का स्वामी है। यदि सूर्य ग्यारहवें भाव में तथा शनि पांचवें भाव में स्थित हो जाए तो भले ही वैदिक ज्योतिष के अनुसार यह एक दूसरे के शत्रु ग्रह हों परंतु लाल किताब के अनुसार यह एक दूसरे के साथी ग्रह माने जाएंगे और एक दूसरे के घर में बुरा प्रभाव नहीं देंगे।

रतान्ध्र ग्रह या अंधा टेवा

लाल किताब के अनुसार जो ग्रह दिन में देखते हैं और रात्रि में अंधे हो जाते हैं अर्थात दृष्टि नहीं देते, ऐसे ग्रह रतान्ध्र ग्रह कहलाते हैं और जिन कुंडलियों में ऐसे ग्रह स्थित होते हैं उन्हें अंधा टेवा कहते हैं। उदाहरण के लिए यदि शनि सप्तम भाव में स्थित हो और सूर्य चतुर्थ भाव में स्थित हो तो ऐसा टेवा अंधा टेवा कहलाता है। जिस जातक का टेवा अंधा होता है उनके गृहस्थ जीवन, पारिवारिक जीवन, व्यवसायिक जीवन और मानसिक स्थिति पर बुरा प्रभाव पड़ता है।

धर्मी टेवा

जिस कुंडली में शनि और गुरु बृहस्पति का योग बनता हो तो ऐसी कुंडली धर्मी टेवा कहलाती है। ऐसी कुंडली में जातक के अशुभ ग्रहों का प्रभाव बहुत हद तक कम हो जाता है। लाल किताब के अनुसार गुरु बृहस्पति नवम तथा द्वादश भाव का स्वामी है तथा शनि दशम तथा एकादश भाव का स्वामी है। कुंडली में इन दोनों ग्रहों का सहयोग बहुत सारी समस्याओं को समाप्त कर देता है और व्यक्ति को जीवन में परेशानियों से निकालने में मददगार सिद्ध होता है। छठे, नवें, ग्यारहवें और भाव में शनि-गुरु का योग जिस कुंडली में होता है उस में विभिन्न प्रकार की अच्छाइयाँ पाई जाती हैं।

नाबालिग टेवा

लाल किताब के अनुसार जब किसी कुंडली में प्रथम, चतुर्थ, सप्तम तथा दशम भाव अर्थात केंद्र भाव रिक्त हो यानी कि उनमें कोई भी ग्रह स्थिति ना हो तो ऐसा टेवा नाबालिग टेवा कहलाता है। इसके अतिरिक्त यदि केवल पापी ग्रह जैसे शनि, राहु, केतु अथवा अकेला बुध इन भावों में स्थित हो तो भी ऐसा टेवा नाबालिग टेवा कहलाता है। नाबालिग टेवा में ग्रहों का असर 12 वर्ष तक पूर्ण रुप से नहीं कहा जा सकता क्योंकि ऐसी स्थिति में 12 वर्ष की अवस्था तक व्यक्ति को पूर्व जन्म के कर्मों के आधार पर ही परिणामों की प्राप्ति होती है और 12 वर्ष की समाप्ति के उपरांत ही उसका फल कथन किया जाता है। जिस व्यक्ति की कुंडली नाबालिग टेवा होती है, उस पर 12 वर्षों तक प्रतिवर्ष अलग-अलग ग्रह का प्रभाव होता है। इन प्रभावों को निम्नलिखित प्रकार से समझा जा सकता है :

  • जन्म के पहले वर्ष में सप्तम भाव के ग्रह का प्रभाव होता है।
  • जन्म के दूसरे वर्ष में चतुर्थ भाव के ग्रह का प्रभाव होता है।
  • जन्म के तीसरे वर्ष में नवम भाव के ग्रह का प्रभाव होता है।
  • जन्म के चौथे वर्ष में दशम भाव के ग्रह का प्रभाव होता है।
  • जन्म के पाँचवे वर्ष में एकादश भाव के ग्रह का प्रभाव होता है।
  • जन्म के छठे वर्ष में तृतीय भाव के ग्रह का प्रभाव होता है।
  • जन्म के सातवें वर्ष में द्वितीय भाव के ग्रह का प्रभाव होता है।
  • जन्म के आठवें वर्ष में पंचम भाव के ग्रह का प्रभाव होता है।
  • जन्म के नौवें वर्ष में षष्ठम भाव के ग्रह का प्रभाव होता है।
  • जन्म के दसवें वर्ष में द्वादश भाव के ग्रह का प्रभाव होता है।
  • जन्म के ग्यारहवें वर्ष में प्रथम भाव के ग्रह का प्रभाव होता है।
  • जन्म के बारहवें वर्ष में अष्टम भाव के ग्रह का प्रभाव होता है।

उपरोक्त ग्रहों के प्रभाव से बचने के लिए व्यक्ति को उन घरों के ग्रहों से संबंधित उपाय अवश्य करने चाहिए जिससे कि समय रहते समस्याओं से बचा जा सके।

लाल किताब के अनुसार विभिन्न प्रकार के ऋण

लाल किताब में वर्ष कुंडली को विशेष महत्व दिया गया है। इसके अतिरिक्त पूर्व जन्म के ऋण व उनके उपाय भी बताए गए हैं। वहीं विभिन्न ग्रहों व राशियों की स्थितियों के अनुसार शरीर व आत्मा को मिलने वाले कष्टों को विभिन्न उपायों से दूर करने की विधि भी दी गई है।

विभिन्न ऋण व उनके उपाय लाल किताब में वर्णित, पूर्व जन्मानुसार जातक के ऊपर विभिन्न ऋण व उनके उपाय इस प्रकार हैं।

स्वऋण - जन्मकुंडली के पंचम भाव में पापी ग्रहों के होने से स्वऋण होता है। इसके प्रभाववश जातक निर्दोष होते हुए भी दोषी माना जाता है। उसे शारीरिक कष्ट मिलता है, मुकदमे में हार होती है और कार्यों में संघर्ष करना पड़ता है। इससे मुक्ति के लिए जातक को अपने सगे संबंधियों से बराबर धन लेकर उस राशि से यज्ञ करना चाहिए।

मातृ ऋण - चतुर्थ भाव में केतु होने से मातृ ऋण होता है। इस ऋण से ग्रस्त जातक को धन हानि होती है, रोग लग जाते हैं, ऋण लेना पड़ता है। प्रत्येक कार्य में असफलता मिलती है। इससे मुक्ति के लिए जातक को खून के संबंधियों से बराबर चांदी लेकर बहते पानी में बहानी चाहिए।

सगे संबंधियों का ऋण - प्रथम व अष्टम भाव में बुध व केतु हों, तो यह ऋण होता है। जातक को हानि होती है संकट आते रहते हैं और कहीं सफलता नहीं मिलती। इससे मुक्ति के लिए परिवार के सदस्यों से बराबर धन लेकर किसी शुभ कार्य हेतु दान देना चाहिए।

बहन ऋण - तृतीय या षष्ठ भाव में चंद्र हो तो बहन ऋण होता है। इस ऋण से ग्रस्त जातक के जीवन में आर्थिक परेशानी आती है, संघर्ष बना रहता है और सगे संबंधियों से सहायता नहीं मिलती। इससे मुक्ति के लिए जातक को परिवार के सदस्यों से बराबर पीले रंग की कौडियां लेकर उन्हें जलाकर उनकी राख को पानी में प्रवाहित करना चाहिए।

पितृ ऋण - द्वितीय, पंचम, नवम या द्वादश भाव में शुक्र, बुध या राहु हो तो पितृ ऋण होता है इस ऋण से ग्रस्त व्यक्ति को वृद्धावस्था में कष्ट मिलते हैं, धन हानि होती है और आदर सम्मान नहीं मिलता। इससे मुक्ति के लिए परिवार के सदस्यों से बराबर धन लेकर किसी शुभ कार्य के लिए दान देना चाहिए।

स्त्री ऋण - द्वितीय या सप्तम भाव में सूर्य, चंद्र या राहु हो तो स्त्री ऋण होता है। इस ऋण के फलस्वरूप जातक को अनेक दुख मिलते हैं और उसके शुभ कार्यों में विघ्न आता है। इससे मुक्ति के लिए परिवार के सदस्यों से बराबर धन लेकर गायों को भोजन कराना चाहिए।

असहाय का ऋण - दशम व एकादश भाव में सूर्य, चंद्र या मंगल हो तो यह ऋण होता है। इस ऋण से ग्रस्त जातक को अनेक परेशानियों का सामना करना पड़ता है। उसकी उन्नति में बाधाएं आती हैं और हर काम में असफलता मिलती है। इससे मुक्ति के लिए परिवार के सभी सदस्यों से बराबर धन लेकर मजदूरों को भोजन कराना चाहिए।

अजन्मे का ऋण - द्वादश भाव में सूर्य, शुक्र या मंगल हो तो अजन्मे का ऋण होता है जो जातक इस ऋण से ग्रस्त होता है उसे जेल जाना पड़ता है, चारों तरफ से हार मिलती है और शारीरिक चोट पहंुचती है। इससे मुक्ति के लिए परिवार के सदस्यों से एक-एक नारियल लेकर जल में बहाना चाहिए।

ईश्वरीय ऋण - षष्ठ भाव में चंद्र या मंगल हो तो ईश्वरीय ऋण होता है। इस ऋण के फलस्वरूप जातक का परिवार नष्ट होता है, धन हानि होती है और बंधु बांधव विश्वासघात करते मिलते हंै इसके लिए परिवार के सदस्यों से बराबर धन लेकर कुŸाों को भोजन कराना चाहिए।

Er. Rameshwar Prasad invites you to the Wonderful World of Lal Kitab (Red Book).

Engineer Rameshwar Prasad

(B.Tech., M.Tech., P.G.D.C.A., P.G.D.M.)

Vaastu International

Style Switcher

Predifined Colors


Layout Mode

Patterns