जियोपैथिक स्ट्रेस एक नया टर्म है, जो पृथ्वी की ऊर्जाओं और लोगों के स्वास्थ्य के बीच के रिश्ते से संबंधित है। यहां जियो का अर्थ पृथ्वी या स्थान से है। पैथिक एक गजब का शब्द है, जिसका अर्थ यहां रोग और रोग के निदान दोनों से है। जियोपैथिक स्ट्रेस की सटीक परिभाषा पृथ्वी की ऊर्जाओं और मानव जीवन पर उनके प्रभाव का अध्ययन है। आप जानेंगे कि कई बार जियोपैथिक स्ट्रेस के अंतर्गत सिक बिल्डिंग सिंड्रोम या ईएमएफ पॉल्यूशन आदि को भी सम्मिलित किया जाता है। लेकिन यह सटीक नहीं है, इसलिए हम जियोपैथिक स्ट्रेस को पृथ्वी की ऊर्जाओं और मानव जीवन पर उनके प्रभाव का अध्ययन ही लेकर चलेंगे।
पृथ्वी की ऊर्जाएं कई तरह की होती हैं, कुछ मानव जीवन के स्वास्थ्य के लिए अच्छी होती हैं, तो कुछ हानिकारक। प्राचीन समय में फेंग शुई विद्वान और जियोमैंसर्स पृथ्वी की ऊर्जा से परिचित थे, वे जानते थे कि कौन से स्थान भवन निर्माण के लिए उपयुक्त हैं और किन स्थानों का परहेज करना चाहिए। आधुनिक समय में हम सबने इस ज्ञान में अपनी रुचि खो दी है और अब फिर से इस और वापस आ रहे हैं क्योंकि जियोपैथिक स्ट्रेस संबंधित रोगों की संख्या में बढ़ोत्तरी होने लगी है।
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मूलत: विभिन्न भूमिगत संरचनाएं, जैसे भूमिगत पानी से निकलने वाली बिजली, विशेष खनिज डिपॉजिट या विभिन्न ग्रिड लाइन्स से निकलने वाली विशेष इलेक्ट्रोमैग्नेटिक क्षेत्र मनुष्यों के निवास के लिए हानिकारक साबित हो सकते हैं। यदि आप जियोपैथिक स्ट्रेस वाले क्षेत्र से गुजर रहे होंगे तो आपको दूसरों के लिए बहुत कम या बिल्कुल नहीं चिंता होगी। यदि आपका घर जियोपैथिक स्ट्रेस क्षेत्र में स्थित है तो आपको यह जानने की असल में आवश्यकता होनी चाहिए कि आपके आस-पास क्या हो रहा है और स्वयं को स्वस्थ बनाए रखने के लिए उपयुक्त उपाय भी ढूंढने चाहिए।
एक ऐसे घर के बारे में सोचिए, जो हाईवे के ठीक ऊपर या बहते पानी के ऊपर बना हो। आप उक्त घर में रह रहे हैं। आपको कैसा महसूस हो रहा है? आपके शरीर को कैसा महसूस हो रहा है? हम यहां भूमिगत संरचनाओं के बारे में बात कर रहे हैं तो अदृश्य कारकों के बीच के रिश्ते को समझना मुश्किल हो सकता है लेकिन इसका अर्थ यह भी नहीं है कि जिसे हम देख नहीं सकते, उसका अर्थ यह तो नहीं है कि वैसा होगा ही नहीं। पृथ्वी की विभिन्न ऊर्जाओं के निकलने वाली तरंगें किसी विशेष रोग का कारण नहीं बनतीं बल्कि एक व्यक्ति की प्रतिरक्षा प्रणाली को कमजोर कर देती हैं ताकि उसके अंदर रोग से लड़ने की शक्ति ही कम हो जाए। यदि आपका बिस्तर एक भूमिगत पानी की तरंगों के ऊपर हो तो आपका शरीर पूरी रात अपना संतुलन बनाए रखने की कोशिश ही करता रह जाता है। फिर शरीर में इतनी ऊर्जा ही नहीं बचती कि वह खुद में नई शक्ति का पुनर्जन्म कर सके।
अमूमन दो तरह के लोग जियोपैथिक स्ट्रेस का पता लगाना चाहते हैं, पहले वे जिन्हें पता होता है कि उनके घर में जियोपैथिक स्ट्रेस की उपस्थिति है और वे समाधान चाहते हैं। दूसरे वे, जो इसके बारे में अधिक जानने के लिए उत्सुक रहते हैं। यदि आपको बार- बार स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं या परिवार के साथ भावनात्क समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है तो इसकाा संबंध आपके घर में उपस्थित जियोपैथिक स्ट्रेस से हो सकता है। इसके लिए आप एक प्रोफेशनल की मदद ले सकते हैं। एक घर में जियोपैथिक स्ट्रेस की उपस्थिति के लक्षण स्वयं दिख जाते हैं। यह पानी की लीकेज से लेकर ठण्डे और नम क्षेत्र या बेडरूम में बेचैनी महसूस करना आदि हो सकता है।
हर सजीव या निर्जीव वस्तु में अपनी एक ऊर्जा होती है। जियो का अर्थ है पृथ्वी, पाथोज का अर्थ है परेशानी। अर्थात पृथ्वी से मिलने वाली परेशानी। इसलिए इसे जियोपैथिक नाम दिया गया है। पृथ्वी के आकार की तुलना एक नारियल से की जा सकती है जिसका व्यास 12,756 किमी. है। नारियल की ऊपरी कठोर सतह की तुलना पृथ्वी के ऊपरी आवरण के साथ की जा सकती है जिसकी गहराई लगभग 7 किमी तक है। उसके नीचे तरल मैग्मा जिस पर पानी पर लकड़ी के गुटकों की तरह कोन्टिनेन्ट्स के टुकड़े तैरते रहते हैं। पृथ्वी के मध्य में कोबाल्ट और निकिल नामक पदार्थ गरम पिघली हुई तरल स्थिति में होता है। यही पिघला पदार्थ पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र के अस्तित्व के लिए उत्तरदायी होता है।कभी-कभी हमारे कोन्टिनेन्ट्स के तैरते हुए टुकड़े इधर-उधर हो जाते हैं जिन्हें भूगर्भ वैज्ञानिक प्लेट्स टैक्टोनिक्स कहते हैं। वैज्ञानिकों ने यह निष्कर्ष निकाला कि इन टुकड़ों के बीच जो घर्षण शक्ति उत्पन्न होती है स्थिरता की स्थिति आने तक वे अपने आपको सन्तुलित करती रहती है। इस सन्तुलन के दौरान इस समायोजन के अन्तर्गत जो तरंगें पृथ्वी के अन्दर उत्पन्न होती हैं उन्हें टाला नहीं जा सकता है। यही भूकम्प तथा ज्वालामुखी फटने आदि घटनाओं का मुख्य कारण होता है। इन प्लेट्स टैक्टोनिक्स के प्रभाव के कारण पृथ्वी के अन्दर छोटी बड़ी टूट-फूट या गड़बड़ी होती है यही जियोपैथिक स्ट्रेस का मुख्य कारण हेाता है। चूंकि तेजी से गतिमान चुम्बकीय तरंगें इन टूटे-फूटे रास्ते से गुजरने के लिए संघर्ष करती है तथा पृथ्वी के अन्दर पानी भी इन छोटी बड़ी दरारों से होकर तेजी से बहता है जब चुम्बकीय क्षेत्र भी इस पानी के साथ विद्यमान होता है तो इनके टकराव से नकारात्मक रेडियेशन निकलती हैं। कारण होता है इस पानी के अन्दर बहुत हानिकारक रसायन जैसे- यूरेनियम, आर्गन और शीशा आदि मिलते हैं। ये रेडियेशन सभी के लिए बहुत ही हानिकारक होती हैं। खदानें खोदना, पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र को छेड़ना एक मनुष्य जनित कारण है।
जियोपैथिक स्ट्रेस को कई लोग कई नाम से जानते हैं यह निम्न प्रकार है -
वाटर लाइन - पृथ्वी के अन्दर भूकम्प आने के बाद बहुत हलचल हो जाती है जिसके कारण पृथ्वी के अन्दर ही अन्दर बहुत उथल-पुथल होती है जो पृथ्वी के अन्दर एक तनाव उत्पन्न करती है। इस उथल-पुथल की वजह से कभी-कभी पृथ्वी के अन्दर कुछ खाली स्थान उत्पन्न हो जाता है जो कुछ मीटर से लेकर हजारों मीटर तक हो सकता है। इस खाली स्थान में कहीं बहुत अधिक गहराई या ऊँचाई होने के कारण यह पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र के प्राकृतिक बहाव में रूकावट पैदा करता है जिसके साथ बहने वाले पानी में कई प्रकार के हानिकारक रसायन भी मिले होते हैं जिससे यह प्रक्रिया एक विद्युतीय ऊर्जा उत्पन्न करती है जो पृथ्वी की सतह से निकलकर अन्तरिक्ष में जाती है। यह विद्युतीय ऊर्जा मनुष्य जाति के जीवन के लिए बहुत ही हानिकारक होती है।
हार्टमैन ग्रिड्स - एक जर्मन चिकित्सक ने प्राकृतिक रूप से धारण किये हुए कुछ लाइनों का निरीक्षण किया जो उत्तर से दक्षिण, पूर्व से पष्चिम की तरफ पृथ्वी के अन्दर से गुजरती है। उन्होंने इन्हें नकारात्मक ऊर्जा वाली लाइनों के रूप में परिचित कराया जो तनाव का मुख्य स्रोत है। उन्होंने इनके साथ ही साथ सकारात्मक ऊर्जा वाली लाइन भी ढूंढ़ी। जहां पर दो लाइनें मिलती हैं वह उनका केन्द्र बिन्दु होता है। वहां पर दो गुनी सकारात्मक या नकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है। यह रेडियेशन पृथ्वी की सतह से ऊपर उठकर अन्तरिक्ष तक जाती है इनका जाल पूरी पृथ्वी पर फैला हुआ है।
करी लाइन - ये प्राकृतिक रूप से विद्युत तरंगें धारण की हुई लाइनें होती हैं। डॉ. मैमफ्रैड करी और विटमान ने इनको खोजा था। उत्तर-पूर्व से दक्षिण-पश्चिम तथा उत्तर-पश्चिम से दक्षिण-पूर्व की तरफ इनकी ऊर्जा प्रवाहित होती है। डॉ. करी ने यह निरीक्षण किया था कि इन लाइनों के केन्द्र बिन्दु पर अगर कोई व्यक्ति समय व्यतीत करता है तो उसको कैन्सर जैसी बीमारी होने की सम्भावना अधिक रहती है।
ब्लैक लाइन्स - ये लाइन भी प्राकृतिक रूप से ऊर्जान्वित होती हैं। ये कहां से निकली अभी तक नहीं जाना जा सका है। इन लाइनों का जाल हार्टमैन और करी लाइनों के समान नहीं है। इन लाइनों को फेंग शुई में बहुत ही हानिकारक ऊर्जा के रूप में बताया गया है। मि. विलहैल्म रिच ने काली, चमकदार और कठोर तेज ग्रिड के रूप में इनकी व्याख्या की है।
ले लाइन्स - हमारे पूर्वजों ने पत्थरों में स्त्री और पुरूष ऊर्जा के बारे में व्याख्या की है। जब हम किसी चट्टान को पत्थर या हथौड़े से तोड़ते हैं तब अग्नि उस चट्टान से बाहर निकालती है जो पुरूष ऊर्जा धारण किये हुए रहती है। छेनी, हथौड़े आदि का प्रयोग करके पत्थर को एक आकार दिया जा सकता है। इसका अर्थ यह है कि हम पत्थर के अणुओं के बीच जो आणविक बन्धन होता है उसकी शक्ति के विपरीत जाकर पत्थर को तोड़ रहे हैं। इस तोड़ने की प्रक्रिया के अन्तर्गत जो ऊर्जा निकलती है जिसके परिणामस्वरूप पत्थरों के किनारे से ले लाइन्स रेडियेशन प्रवाहित होती है वह हानिकारक होती है। उपरोक्त तथा निम्न प्रकार की कुछ प्राकृतिक नकारात्मक ऊर्जाएं हैं जिन्हें जियोपैथिक स्ट्रेस कहा जाता है।
कुछ मानव निर्मित नकारात्मक ऊर्जा प्रवाहित करने वाली वस्तुएं भी हैं जो आजकल बड़ी मात्रा में बीमारियों का कारण बन रही हैं। मानव निर्मित नकारात्मक ऊर्जा प्रवाह करने वाले उपकरण हैं जैसे हाईटेंशन लाइन, ट्रांसफार्मर, मोबाइल टावर, मोबाइल और अन्य विद्युतीय उपकरण जो प्रतिदिन हम प्रयोग करते हैं। विद्युतीय चुम्बकीय तरंगें हमारे पर्यावरण में बहुत सारे तनाव का कारण बन रहा है जो मनुष्य पर बहुत ही हानिकारक प्रभाव डालता है। संचार व्यवस्थायें जैसे- रेडियो, टी.वी., फोन आदि भी हानिकारक रेडियेशन प्रदान करते हैं। हमारे पास करोड़ों की संख्या में फोन, टी.वी., कंप्यूटर व लैपटाप हं जिसका इस्तेमाल हम विज्ञान के लाभ का उपयोग करने के लिए करते हैं। विभिन्न स्थानों में नेटवर्क को पहुंचाने के लिए इमारतों की छत पर या किसी ऊंचे स्थान पर टावर आदि लगाये जाते हैं। ये टावर ट्रान्सफार्मर से भी अधिक हानिकारक ऊर्जा प्रवाहित करते हैं। आजकल बड़े-बड़े शहरों में बड़ी-बड़ी इमारतों पर ये टावर दिखायी देते हैं जो पंचभूत के आकाषीय तत्व को भी प्रदूषित कर रहे हैं। हम सभी माइक्रोवेव रेडियेशन पर रेडियो कम्पन शक्ति से प्रभावित हो रहे हैं।
जियोपैथिक स्ट्रेस के केन्द्र बिन्दु की स्थिति और उनके प्रभाव - यूनीवर्सल थर्मल स्कैनर की सहायता से हम जियोपैथिक स्ट्रेस की लाइनें व उसका केन्द्र बिन्दु ढंढ़ सकते हैं। यदि जियोपैथिक स्ट्रेस का केन्द्र बिन्दु दक्षिण-पश्चिम में आ रहा है तो घर में पत्नी के बीच लड़ाई झगड़े होना, उनको स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्या होना, यदि कोई उस लाइन पर सो रहा है तो उसको शारीरिक रूप से बीमारी होना तथा मानसिक समस्या का सामना करना पड़ सकता है। कभी-कभी यह पति-पत्नी के बीच तलाक भी करवा देता है। यदि इसका केन्द्र बिन्दु पूर्व-दक्षिण की तरफ होता है जो रसोईघर का स्थान होता है तो उस घर के सदस्यों को आर्थिक समस्या का सामना करना पड़ता है तथा घर की औरतों को शारीरिक व मानसिक समस्या भी हो सकती है। यदि इसका केन्द्र बिन्दु उत्तर-पश्चिम हो जो वायु का क्षेत्र व बच्चों का क्षेत्र माना जाता है तो उस घर के बच्चों की उन्नति ठीक प्रकार से नहीं होती है। वे पढ़ाई अच्छी प्रकार से नहीं कर पाते हैं तथा उनकी शादी व नौकरी आदि में विलम्ब होता रहता है तथा उनको शारीरिक व मानसिक समस्याओं का भी सामना करना पड़ सकता है। यदि इसका केन्द्र उत्तर-पूर्वी स्थान पर आता है तो उस घर में रहने वाले अपना नाम और ख्याति खोने लगते हैं तथा उन्हें आर्थिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। व्यापार आदि में भी हानि होती है।
जियोपैथिक स्ट्रेस व विद्युतीय उपकरण का मानव पर प्रभाव - 80 प्रतिशत डाक्टर और वैज्ञानिक जियोपैथिक स्ट्रेस की तरंगों के बारे में जागरुक नहीं हैं जो बुरे भाग्य का कारण है। ये तंरगें 80 प्रतिशत परेशानियों और लम्बी बीमारियों की मुख्य जड़ है। यह जर्मनी, फ्रांस और अब भारत में भी वैज्ञानिक रूप से साबित हो चुका है। हमारे पूर्वजों ने भी इस प्रकार की हानिकारक तरंगों के बारे में बताया था और ऐसे क्षेत्रों में न रहने की सलाह दी थी। यह विषय पर्यावरण सम्बन्धी विज्ञान के अन्तर्गत आता है।
दुनिया में जर्मन पहले थे जिन्होंने इन तरंगों को न्यूट्रलाइज किया तथा आपराधिक समस्या और बीमारियों से बचने के लिए लोगों को रहने के लिए नकारात्मक ऊर्जा से मुक्त घर प्रदान किये। जियोपैथिक स्ट्रेस वाले स्थान पर छः महीने या उससे अधिक लगातार रहने पर आर्थिक व शारीरिक समस्याएं प्रारम्भ हो जाती हैं। यह मनुष्य के इम्यूनिटी सिस्टम को इतना कम कर देते हैं कि मनुष्य को कोई भी साधारण बीमारी आकर घेर लेती है। यदि व्यक्ति उसी ऊर्जा क्षेत्र में रह रहा है तो दवाई भी उस पर अपना 100 प्रतिशत प्रभाव नहीं दिखाती है और बीमारी बढ़ती चली जाती है।
इसी प्रकार विद्युतीय शक्ति का भी मनुष्य के ऊर्जा क्षेत्र पर बहुत नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। जब ऊर्जा एक कन्डक्टर के द्वारा बहती है तब यह निरीक्षण किया गया कि उसके चारों तरफ एक चुम्बकीय क्षेत्र बन जाता है। वैज्ञानिकों ने सेल्स पर इसके प्रभाव के बारे में अध्ययन किया है। मनुष्य की सेल रासायनिक तत्वों से मिलकर बनी है जो नान कन्डक्टर मैम्ब्रेन के द्वारा सुरक्षित होती है। विद्युत चुम्बकीय ऊर्जा तरंगों की अपेक्षा कणों के रूप में कार्य करती है। कुछ विद्युत कम्पन शक्तियां दिखाई देने वाले स्पेक्ट्रा से आगे होती है। चुम्बकीय शक्तियों के कारण ही मुख्यतः हानिकारक प्रभाव देखने को मिलते हैं। कुछ रिसर्च पेपर सी.आर.डी. के ऊपर आधारित हैं जिससे यह निष्कर्ष निकला है कि विद्युत चुम्बकीय क्षेत्र का प्रभाव मनुष्यों के सेल्स पर असर डालता है। 50 प्रतिशत लोगों में जो इस विद्युतीय क्षेत्र के आस-पास कार्य करते हैं कैन्सर होने की सम्भावना अधिक रहती है। इसलिए इनसे बचने की सलाह दी जाती है जैसे - ट्रांसफार्मर, टावर तथा अधिक वोल्टेज वाली लाइनें इत्यादि।
धातु व चमड़े की कुछ वस्तुएं भी हानिकारक ऊर्जा प्रवाहित करती हैं। यदि धातु आदि की वस्तुएं जियोपैथिक स्ट्रेस क्षेत्र में रखी रहती हैं तो वे यह नकारात्मक ऊर्जा अपने में ले लेती हैं। फिर इन्फ्रारेन्ड रेडियेशन के रूप में निकलती हैं जो कि बहुत ही हानिकारक हैं जैसे - कृत्रिम (Artificial), धातु व प्लास्टिक की वस्तुएं, कभी-कभी इमारत में जो कच्चा माल प्रयोग होता है जैसे - सरिया आदि, इन्टीरियर डिजाइनर जो टेढ़े-मेढ़े आकार घर में प्रयोग करते हैं जिनका अस्तित्व प्रकृति में नहीं हो, वे भी हानिकारक ऊर्जा देते हैं।
मृत व्यक्ति की कुछ धातु की वस्तुएं, किचन के बर्तन जैसे तवा, कड़ाही आदि जो बहुत सालों से हम प्रयोग कर रहे हैं, तांबे से बने यंत्र, चांदी और सोने के आभूषण, एन्टिक वस्तुएं, दीवारों पर टंगे पुराने हथियार तलवार, खंजर आदि भी नकारात्मक ऊर्जा प्रदान करते हैं यदि ये जियोपैथिक स्ट्रेस वाले नकारात्मक ऊर्जा क्षेत्र में रखे हुए हैं।
जियोपैथिक स्ट्रेस को पहचानने वाले प्राकृतिक स्रोत - कुछ प्राचीन चीजें भी हैं जिनके द्वारा कोई भी व्यक्ति यह जान सकता है कि यहां पर जियोपैथिक स्ट्रेस है या नहीं - किसी भी सामान्य व्यक्ति की यदि किसी एक स्थान पर जाकर नाड़ी की संवेदना बढ़ जाती है या वह उस जगह पर अपने आप को बहुत ही असामान्य महसूस कर रहा है तो वहां यह नकारात्मक क्षेत्र हो सकता है। व्यक्ति को रात में भयानक सपने आते हैं वह ठीक से सो नहीं पाता है लगातार एक ही स्थान पर दुर्घटना होना, किसी के स्वास्थ्य का लगातार खराब होना, बिल्ली, दीमक, मधुमक्खी और चमगादड़ ऐसे स्थान पर रहना पसंद करते हैं, कुत्ता और गाय ऐसे स्थानों पर नहीं बैठते हैं।
स्वास्थ्य सम्बन्धी व अन्य लक्षण - जियोपैथिक स्ट्रेस क्षेत्र में रहने से व्यक्ति में निम्न प्रकार के स्वास्थ्य से सम्बन्धित लक्षण दिखायी पड़ सकते हैं - पिण्डलियों में दर्द, क्रैम्प पड़ना, नींद न आना, सही निर्णय लेने में कठिनाई, आदमी घर की अपेक्षा बाहर अधिक आराम महसूस करता है। नींद में चलना, डरावने सपने आना मानसिक समस्या का सामना करना, निराशावादी होना, अचानक किसी की मृत्यु होना, आत्महत्या की प्रवृत्ति होना, लाइलाज बीमारी होना जैसे कैन्सर, डाइबिटीज, कौमा में जाना, हाइपर ऐक्टिव बच्चे, स्त्री का गर्भ धारण न करना, बार-बार गर्भपात होना या मानसिक या शारीरिक रूप से अविकसित बच्चे होना, बच्चों का पढ़ाई में ध्यान न देना, शादी या नौकरी में विलम्ब होना, घरेलू झगड़े बहुत अधिक मात्रा में होना आदि।
जियो का अर्थ होता है – पृथ्वी और पैथिक के दो अर्थ होते है – पहला रोग और दूसरा अर्थ रोग का निवारण। जियोपैथिक स्ट्रेस की प्रचलित परिभाषा के अनुसार इसका मतलब होता है ऐसी पीड़ा या परेशानी जो कि पृथ्वी के प्रभाव का कारण होती है।
गौरतलब है कि जर्मन शोधकर्ता Baron Gustav Frei Herr Von Pohl ने जियोपैथिक ज़ोन शब्द का ईजाद किया था। उन्होंने अपनी जिंदगी का एक बड़ा हिस्सा जियोपैथिक स्ट्रेस जोन पर शोध करने में बिताया और इस नतीजे पर पहुंचे कि लगभग प्रत्येक बीमारी का कुछ न कुछ सम्बन्ध जियोपैथिक स्ट्रेस से पाया जा सकता है।
इस शब्द का उपयोग उस अवस्था के लिए किया जाता है जब प्राकृतिक या मानव निर्मित कारणों से पृथ्वी से निकलने वाली उर्जा मनुष्य के ऊपर नकारात्मक प्रभाव डालती है। यानि कि पृथ्वी से उत्पन्न नुकसानदायक तरंगो के मनुष्य पर पड़ने वाले हानिकारक प्रभाव को जियोपैथिक स्ट्रेस कहा जाता है। यह भी एक तरह का वास्तु दोष है क्योंकि इसमें भी घर के अन्दर अशुभ उर्जा का प्रवाह होता है।
वास्तु शास्त्र के अनुसार पृथ्वी पर उर्जा का प्रवाह उत्तर से दक्षिण और पूर्व से पश्चिम की ओर विशाल ग्रिड लाइन्स के रूप में होता है। इसके परिणामस्वरूप एक विद्युत चुम्बकीय क्षेत्र का निर्माण होता है। इन ग्रिड लाइन्स को हर्टमैन ग्रिड और करी ग्रिड लाइन्स के रूप में जाना जाता है।
डॉ. मैनफेड ने अपने अध्ययन में पाया कि प्राकृतिक विद्युत् रेखाओं का एक जाल पृथ्वी को घेरे हुए है। ये रेखाएं ईशान (North-East) से नैऋत्य (South-West) की ओर व आग्नेय (South-East) से वायव्य (North-West) की ओर प्रवाहमान रहती है। उर्जा रेखाओं के इस प्रवाह को करी ग्रिड (Currie Grid) के नाम से जाना जाता है। इन रेखाओं के मिलन बिन्दुओं पर सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव दोगुना हो जाता है।
ठीक इसी प्रकार जर्मनी के डॉ. हार्टमैन ने उत्तर से दक्षिण और पूर्व से पश्चिम की ओर चलने वाले उर्जा रेखाओं के प्रवाह को खोजा। जिन्हें हार्टमैन ग्रिड (Hartmann Grid) के नाम से जाना जाता है। करी रेखाओं के समान ही हार्टमैन रेखाओं के मिलन बिंदु भी बेहद शक्तिशाली होते है।
हार्टमैन रेखाओं को करी रेखाओं के ऊपर स्थापित करने पर और भी अधिक संवेदनशील व शक्तिशाली ग्रिड का निर्माण होता है।
व्यक्ति के स्वस्थ रहने के लिए यह आवश्यक हो जाता है कि वह इन ग्रिड्स के अंदर ही निवास करें लेकिन इन रेखाओं के मिलन बिन्दुओं पर बिलकुल नहीं सोये क्योंकि इन रेखाओं के मिलन बिन्दुओं पर जियोपैथिक स्ट्रेस जोन निर्मित हो जाता है जो कि स्वास्थ्य के लिहाज से बेहद घातक सिद्ध होता है। जियोपैथिक स्ट्रेस जोन कई प्रकार की गंभीर व दीर्घकालीन बिमारियों का तो कारण बनता ही है साथ ही यह स्थान विशेष में नकारात्मक उर्जा भी उत्पन्न करता है जिससे कि व्यक्ति में सही और सकारात्मक निर्णय लेने की क्षमता पर भी असर पड़ता है। फलतः स्वास्थ्य के अतिरिक्त भी अन्य कई समस्याओं से रूबरू होना पड़ता है।
दुसरे शब्दों में हमारी धरती में एक विधुत चुम्बकीय क्षेत्र विद्यमान है। जब पृथ्वी से निकलने वाली तरंगे ऊपर सतह की और बढती है तो वे Underground Running Water, Mineral Field or Crystals Deposits और Fault Lines से निर्मित विधुत चुम्बकीय क्षेत्र से प्रभावित होकर विकृत हो जाती है और जिन स्थानों से होकर ये गुजरती है वहाँ पर जियोपैथिक स्ट्रेस जोन निर्मित हो जाता है।
पृथ्वी के अन्दर उत्पन्न तरंगों की फ्रीक्वेंसी या आवृति 7.8 हर्ट्ज (Hz) होती है। लेकिन जिन स्थानों पर जियोपैथिक स्ट्रेस जोन होता है वहाँ की आवृति कई गुना ज्यादा होती है। यानि की जब 7.8Hz आवृति वाली तरंगे 80 से 160 मीटर नीचे मौजूद किसी भूमिगत पानी या किसी अवरोध से होकर निकलती है तो नयी तरंगे उत्पन्न होती है और उनकी आवृति 250Hz से भी ज्यादा हो सकती है। जो कि मनुष्य के लिए बहुत नुकसानदायक है। ये तरंगे या उर्जायें किसी भी दीवार या अवरोध को पार कर सकती है।
हालाँकि एक दिलचस्प तथ्य ये है कि जियोपैथिक स्ट्रेस की फ्रीक्वेंसी हमारे मस्तिष्क की फ्रीक्वेंसी से तो कई ज्यादा होती है जो कि हमारे लिए नुकसानदायक है, लेकिन ये ही फ्रीक्वेंसी दुसरे कई जीवो के पनपने और उनके अस्तित्व लिए आवश्यक होती है, जैसे कि Bacteria, Parasites, Viruses। इन्हें पनपने के लिए 150 Hz से 180 Hz की फ्रीक्वेंसी की आवश्यकता होती है।
जियोपैथिक स्ट्रेस के अंतर्गत निकलने वाली उर्जायें एक सामान्य मनुष्य के उर्जा के स्तर से कई गुना ज्यादा शक्तिशाली होती है। इसीलिए अगर आप ऐसे स्ट्रेस जोन में सोते है या ज्यादा वक्त बिताते है जो कि किसी Magnetic Grid Line या Underground Water System से उत्पन्न होने वाली तरंगो से प्रभावित है तो इसका आप पर बुरा असर पड़ सकता है।
जियोपैथिक स्ट्रेस कई तरह की बीमारियों का कारण बनता है। इससे होने वाली बिमारियों में कैंसर सबसे घातक है, यहाँ तक कि टयुमर्स तो तकरीबन हमेशा बिलकुल उस स्थान पर विकसित होते है जहाँ पर दो या अधिक जियोपैथिक स्ट्रेस लाइन्स किसी आदमी के शरीर से होकर गुजरती है जहाँ पर वो सोता है।
ये जियोपैथिक स्ट्रेस के सम्बन्ध में हुए शोध ये बताते है की ऐसे 85% मरीज जो कैंसर से मर जाते है ऐसा उनके जियोपैथिक स्ट्रेस जोन में ज्यादा संपर्क में रहने के कारण हुआ। दुनिया के प्रसिद्ध कैंसर विशेषज्ञ और जर्मन डॉक्टर Hans Nieper ने बताया है कि उनके 92% कैंसर के मरीज जियोपैथिक स्ट्रेस से प्रभावित थे। इसी क्षेत्र में शोध करने वाले एक एक प्रमुख शख्सियत Von Pohl जिन्होंने जियोपैथिक ज़ोन शब्द का इजाद किया, उन्होंने Central Committee for Cancer Research, Berlin, Germany के सामने ये साबित किया कि किसी व्यक्ति को कैंसर की सम्भावनाये बहुत कम हो जाती है अगर उसने अपना समय जियोपैथिक स्ट्रेस जोन में ना बिताया हो, विशेष तौर पर सोते वक्त क्योंकि सामान्यतया जहाँ हम सोते है वहाँ GS जोन का असर ज्यादा होता है क्यूंकि उस वक्त हम स्थिर और ज्यादा ग्राह्य होते है।
कैंसर पर जियोपैथिक स्ट्रेस जोन के असर को लेकर हुआ शोध और भी पुख्ता हो जाता है जब हम इस मसले पर अन्य शोधकर्ताओं के रिसर्च को देखते है। जैसे कि डॉक्टर Ernst Hartmann, MD ने भी जियोपैथिक स्ट्रेस को कैंसर के सबसे मुख्य कारणों में से एक माना है। उन्होंने कहा है की हम सभी कैंसर के लिए जिम्मेदार सेल्स पैदा करते है, लेकिन वो हमारे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता यानि की इम्यून सिस्टम के कारण साथ के साथ नष्ट भी कर दिए जाते है। लेकिन जब आप GS जोन के प्रभाव में आते है तो वो सीधे तौर पर आपको कैंसर तो नहीं देता है लेकिन कैंसर सेल्स को नष्ट करने के लिए जरुरी इम्यून सिस्टम को ही वो कमजोर कर देता है जिससे आपके कैंसर सेल्स नष्ट होने बंद हो जाते है और फिर वो ही कैंसर का कारण बनता है।
सिर्फ कैंसर ही नहीं बल्कि गंभीर दीर्घकालीन बीमारियों और मनोरोगों की स्थिति में भी जियोपैथिक स्ट्रेस एक बड़े कारण के रूप में सामने आया है। इसके कारण नींद ना आने की समस्या, सिरदर्द, बैचेनी, और बच्चों का चिडचिडा व्यव्हार जैसी समस्याएँ भी आती है।
विशेष हार्मोनल सिस्टम के कारण महिलाएं जियोपैथिक स्ट्रेस के प्रति ज्यादा खतरे में होती है। इसके अलावा छोटे बच्चे और गर्भ में पल रहे बच्चों को इसका खतरा और भी ज्यादा होता है। ऐसा पाया गया है कि GS जोन में सोने वाली महिलाओं में 50% महिलाएं गर्भधारण करने में असफल रही। अगर महिला गर्भवती है और इस जोन में रखी जाती है तो ये बच्चे के स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं होता है और यहाँ तक कि गर्भपात की आशंका भी बढ़ जाती है।
जियोपैथिक स्ट्रेस के दूसरे बुरे असर होते है जो कि अप्रत्यक्ष तौर पर इससे प्रभावित होते है जैसे कि – कार्य कुशलता में कमी, किसी संपत्ति को बेचने में आने वाली परेशानी, प्रजनन क्षमता में कमी, असमय मृत्यु, घरेलु झगडे, कोमा में जाना इत्यादि। हालाँकि जैसा कि आपको बताया कि इनमे से कोई भी घटना प्रत्यक्ष तौर पर जियोपैथिक स्ट्रेस से नहीं होती है लेकिन जियोपैथिक स्ट्रेस के कारण नकारात्मक उर्जा जिस तरह से हमारे मस्तिष्क को प्रभावित करती है वो इन सब घटनाओ का कारण बनता है।
इसमें कोई शक नहीं है कि जानवर और पौधे प्रकृति में होने वाली घटनाओ के प्रति हमसे कई ज्यादा संवेदनशील होते है। अधिकांश जानवर नकारात्मक स्थानों और प्राकृतिक घटनाओं के प्रति पहले से ही सचेत हो जाते है। ऐसी ही एक प्राकृतिक और कुछ हद तक मानवीय कारणों से प्रभावित परिस्थिति है जियोपैथिक स्ट्रेस जोन की जिसके प्रति ये काफी संवेदनशील होते है। सामान्यतया सभी प्राणी इस प्रकार के क्षेत्र से नकारात्मक रूप से प्रभावित होते है। हालाँकि कुछ ऐसे भी जीव-जंतु और पौधे है जो की जियोपैथिक स्ट्रेस वाले जोन की तरफ आकर्षित होते है और इनमे पनपते भी है। ऐसे जानवर जो कि जियोपैथिक स्ट्रेस जोन की तरफ आकर्षित होते है उनमे सम्मिलित है – Cats, Bees, Wasps and Ants। अगर पौधों की बात करे तो Mold, Lichen, Moss and Ferns जैसे पौधे और Bacteria, Viruses भी ऐसे स्ट्रेस जोन की तरफ आकर्षित होते है।
अब अगर बात करें उनकी जो की इस तरह के जियोपैथिक स्ट्रेस जोन से नकारात्मक तरीके से प्रभावित होते है तो उनमे मनुष्यों के अलावा Sheep, Cattle, Horse, Hens and Dogs शामिल है। जहाँ मनुष्य इस तरह के क्षेत्र के प्रति असंवेदनशील होने के चलते इन्हें महसूस नहीं कर सकते वही अधिकांश जानवर इस तरह के क्षेत्र को ना सिर्फ महसूस कर सकते है बल्कि वे ऐसे क्षेत्र में रहना भी पसंद नहीं करते। इसलिए अगर आप पाते है कि जानवर अगर किसी क्षेत्र में स्वाभाविक रूप से रहने से बच रहे है तो आप को ऐसे क्षेत्र में ना तो निवास करना चाहिए ना ही कार्य करना चाहिए। हालाँकि बहुत सी बार जानवर अपनी इच्छा से अपनी जगह नहीं बदल सकता, खासकर कि तब जब वो एक पालतू है तो ऐसे में हम उनके व्यव्हार को देखकर के भी अंदाजा लगाना होता है। जैसे कि Horses, Sheep, Cattle, Hens or Dogs अगर जियोपैथिक स्ट्रेस जोन में रखे जाते है तो वे ऐसे स्थिति में उनका अधिक उतेजित होना, किसी एक जगह पर न ठहर पाना, बीमारी, और प्रजनन क्षमता की कमी को होना जैसे लक्षण इस बात की आशंका पैदा करते है कि वो जियोपैथिक स्ट्रेस जोन में रखे जा रहे है। इसके अलावा कुछ और लक्षण है जिनसे आप जियोपैथिक स्ट्रेस जोन का पता लगा सकते है, जैसे कि –
GeoPathic Stress line अर्थात धरती के गर्भ से आने वाला एक ऐसा नुकसानदायक रेडिएशन (Radiation) जो वनस्पति, जीव एवं सकारात्मक ऊर्जा को दूषित कर नकारात्मक ऊर्जा (Negative Energy) को निरंतर बढ़ाता रहता है।
वैज्ञानिक शोध से इसकी उत्पत्ति का कारण भूगर्भ में धरती की चट्टानों के खिसकने, पानी के भूमिगत स्रोत के बहाव से उत्पन्न ऊर्जा (Energy) जो दाब के करण दूषित हो जाती है अथवा भूमिगत जल के बड़े स्रोत या ऐसे कई अन्य कारण हो सकते हैं।
इसके प्रभाव से जहाँ फसलों एवं वनस्पतियों को नुकसान पहुँचता है, (उनका विकास अवरुद्ध होता है) वहीँ मनुष्य के जीवन में इसका बहुत बुरा फल प्राप्त होता है। अगर इस रेडिएशन का बहाव घर में बेड के नीचे अथवा हमारे कार्य करने के स्थान के नीचे से निकल रहा होता है तो यह Radiation धीरे धीरे हमारे शरीर में प्रवेश कर जाता है। और हमारे शरीर के सात ऊर्जा चक्रों (मूलाधार, स्वाधिष्ठानादि….. ) में से किसी एक या एक साथ कई चक्रों को छतिग्रस्त अथवा बंद (Block) कर देता है। अब यह चक्र हमारे शरीर के जिस अंग से सम्बंध रखता हैं हमारा वह “अंग-विशेष” बीमारी की चपेट में आ जाता है। आगे हम उस बीमारी से राहत पाने के लिए कितने भी काबिल से काबिल डॉक्टर से सलाह लें, उनका इलाज कराएं जल्दी लाभ नहीं प्राप्त होता। बल्कि हमारे शरीर की Immune System कमजोर हो जाता है और हमारी रोग प्रतिरोधक छमता कम हो जाती है। परिणाम स्वरूप कैंसर, हार्ट प्रॉब्लम, ज्वाइंट पेन, किडनी प्रॉब्लम, शुगर, लिवर, उच्च रक्तचाप, आदि अथवा Depression मानसिक परेशानी, दौरे पड़ने जैसी भयंकर बीमारियां हमें घेर लेती हैं, तथा हमारे घर के बच्चों का जिद्दी हो जाना, बिना मतलब क्रोध करना, पढ़ाई या काम में मन न लगना, नशा करना अथवा गलत संगत में पड़ने जैसी भयंकर परेशानियां घर में पैर पसारने लगती हैं।
वहीँ कारखानों (Factory) में इस इस रेडिएशन लाईन या स्थान (Geo Pathic line-Point) पे गलती से भी हम मशीन रख देते हैं तो वह मशीन अक्सर खराब ही रहती है, अगर यही लाइन कैश काउंटर से निकले तो आर्थिक परेशानी ( Financial Problem) झेलनी पड़ती है। सेल्स काउंटर से निकल जाये तो ग्राहकों से तकरार फलस्वरूप Sale Disturb इस तरह की अनगिनत समस्याओं का कारण Geo Pathic Stress बनता है। हमारे घर का अच्छा से अच्छा वास्तु भी इस जियो पैथिक लाइन की वजह से अपना पूर्ण प्रभाव नहीं दे पाता।
हमारे पूर्व ऋषि-मुनि अपने वर्षों की तपस्या अपने अनुभव से बड़ी आशानी से इस तरह की नकारात्मक “ऊर्जा रेखा” को भांप लेते थे पर आज के मनुष्य के लिए उस तरह का ज्ञान अथवा अनुभव प्राप्त कर पाना आसान नहीं है। पर वहीँ आज के युग को विज्ञान का युग कहा जाता है। हमारे महान वैज्ञानिको ने ऐसी तमाम चीजों का आविष्कार किया हैं जिससे आज का जीवन बहुत हद तक आसान हुआ है। ऐसे ही वैज्ञानिकों ने एक औरा स्कैनर (Aura Scanner) नाम का एक आधुनिक यंत्र बनाया है। जिसकी मदद से एक वास्तु विज्ञानी किसी भी भूखंड अथवा ईमारत में, वहां की सकारात्मक ऊर्जा एवं नाकारात्मक ऊर्जा, ऊर्जा का बहाव, तत्व (Element), Geo Pathic Stress आदि की कुशलता पूर्वक जाँच कर सकता है। तथा किसी भी तरह की नकारात्मकता प्राप्त होने पर उस के लिए आवश्यक उपचार अथवा परिशोध कर के सम्बंधित - घर (House), भूखंड (Plot), ईमारत (Bilding), कार्यालय (Office), कारखाना (Factory) आदि को पूर्ण रूप से सकारात्मक स्थिति में लाकर, वहां रहने वालों के स्वास्थ्य, धन-धान्य एवं प्रगति को बढ़ाने का मार्ग प्रसस्त कर सकता है। आप अपने घर, कार्यालय, औद्योगिक परिसर में Geo Pathic Stress की जाँच एवं उपचार के लिए हमसे संपर्क कर सकते हैं।
जियोपैथिक स्ट्रेस जोन से उत्पन्न नेगेटिव एनर्जी की समस्या का समाधान विभिन्न तरीकों से किया जा सकता है जैसे कि - उस एनर्जी को अवरुद्ध (block) करके, उसे अवशोषित (absorb) करके, इत्यादि।
हमने जिओपैथिक स्ट्रेस जोन के नकारात्मक प्रभाव तो देखे, लेकिन इस समस्या के प्रभावी समाधान भी उपलब्ध है। यही पर वास्तु शास्त्र की भूमिका और भी बढ़ जाती है। जैसा की आपको पहले भी बताया जा चुका है कि वास्तु शास्त्र हमारे आसपास मौजूद इस जगत की उर्जाओं को संतुलित करने, सामंजस्य बैठाने और किसी भी प्रकार के भवन के अन्दर सकारात्मक उर्जा का प्रवाह सुनिश्चित करने का एक तार्किक विज्ञान है। जियोपैथिक स्ट्रेस जोन में नेगेटिव एनर्जी का प्रवाह होता है और वास्तु का मूलभूत कार्य घर के अन्दर मौजूद नेगेटिव एनर्जी को निष्क्रिय करना और पॉजिटिव एनर्जी को बढ़ाना होता है। तो निश्चित ही किसी विशेषज्ञ के जरिये वास्तु के सिद्धांतो को घर पर लागू करके इस समस्या से निजात पाया जा सकता है।
वर्तमान में तकनीक के आधुनिकीकरण के चलते ऐसे उपकरण विकसित कर लिए गए है जिससे इस तरह की उर्जाओं और तरंगो को अस्थायी तौर पर कुछ समय के लिए निष्क्रिय किया जा सकता है। ‘अर्थ एक्युपंक्चर’ भी एक प्रभावी समाधान है हालाँकि यह महंगा भी है। इसके अलावा जियोपैथिक रोड भी आती है जिसके जरिये इस स्ट्रेस जोन की समस्या का काफी हद तक समाधान किया जा सकता है।
संक्षेप में आपको जियोपैथिक स्ट्रेस व अन्य नकारात्मक ऊर्जा क्या है उनके प्रभाव आदि के बारे में बताया गया। हम यूनीवर्सल थर्मल स्कैनर की सहायता से किसी भी प्रकार की नकारात्मक ऊर्जा को पहचान सकते हैं चाहे वह घर हो या किसी व्यक्ति के शरीर में। इसके द्वारा आपको आने वाली स्वास्थ्य सम्बन्धी परेषानियों से भी अवगत करा सकते हैं।
आपको एक बार फिर बता दे कि पृथ्वी से दोनों प्रकार की सकारात्मक और नकारात्मक उर्जायें उत्पन्न होती है जो कि हमारे ऊपर प्रभाव डालती है। ये किस हद तक हम पर असर डालेगी ये हमारी रोग प्रतिरोधात्मक क्षमता और मानसिक क्षमता पर निर्भर करता है। लेकिन ये निश्चित है कि अगर निरंतर इस तरह के क्षेत्र में रहा जाए तो हमारी रोग प्रतिरोधात्मक क्षमता पर गंभीर असर जरुर पड़ेगा। इसलिए आवश्यक है कि अगर कोई भवन इस तरह के स्ट्रेस जोन में आ रहा हो तो उसका उचित समाधान जरुर किया जाए। इसके लिए आप किसी वास्तु विशेषज्ञ की सहायता ले सकते है।
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Engineer Rameshwar Prasad(B.Tech., M.Tech., P.G.D.C.A., P.G.D.M.) Vaastu International
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