A Multi Disciplinary Approach To Vaastu Energy

दक्षिण दिशा (South Direction)

दक्षिण दिशा (Vastu for South facing House)

इसके देवता यम हैं और मंगल ग्रह। यह दिशा सबसे अशुभ मानी गई है परन्तु इस ओर सर कर सोना स्वास्थ्य-र्वध्क व शांतिदायक है। यदि इस ओर भूमि ऊंची हो तो वह सब कामनाएं संपूर्ण करती है और स्वास्थ्य र्वध्क होती है। भवन कभी भी दक्षिण की ओर नहीं खुलना चाहिए बल्कि इस दिशा में शयन-कक्ष होना उत्तम है।

दक्षिण दिशा आग्नेय कोण (दक्षिण-पूर्व) और नैर्रित्य कोण (दक्षिण-पश्चिम) के ठीक बीच में स्थित होती है। दक्षिणमुखी घर वास्तु विरोधी होते है यह एक बड़ी गलतफहमी है। दरअसल दक्षिणमुखी घर के बारे में लोगो की यह एक आम धारणा बन गई है कि इस दिशा में निर्मित घर वास्तु शास्त्र के अनुकूल नहीं होते है। यह धारणा सर्वथा अनुचित है। हालाँकि इस आम धारणा के निर्मित होने के पीछे एक महत्वपूर्ण कारण है। दरअसल इस तरह के भूखंड पर जिन लोगो के घर स्थित होते है वे जीवन में अधिक संघर्ष और मुश्किलों का सामना करते है। लेकिन ऐसा इस कारण नहीं होता की यह दिशा अशुभ होती है, बल्कि इसका मूल कारण होता है कि इस दिशा में निर्माण के वक्त गलती करने की गुंजाईश अधिक होती है और उससे बचने के लिए वास्तु शास्त्र के नियमो की सहायता नहीं ली जाती है। परिणामस्वरूप नकारात्मक नतीजे भुगतने पड़ते है।

लेकिन अगर वास्तु शास्त्र के नियमो का पालन करते हुए भवन निर्माण किया जाए तो दक्षिणमुखी घर भी बहुत शुभ और लाभदायक सिद्ध होते है। इस दिशा में बने भवन भी आपको चमत्कारिक रूप से आर्थिक सम्पन्नता, प्रसिद्धि और अन्य कई लाभ प्रदान करते है।

बस आवश्यकता है तो सिर्फ इस बात की कि आपको घर बनाते वक्त अन्य किसी भी दिशा की अपेक्षा दक्षिणमुखी भूखंड में अतिरिक्त सावधानी रखनी होगी और इसके लिए आप किसी वास्तु विशेषज्ञ की सहायता ले सकते है। क्योंकि जब भी किसी कार्य में गलती की आशंका अधिक हो तो ऐसे में उस क्षेत्र के विशेषज्ञ की सहायता जरुर लेनी चाहिए। हालाँकि अगर आप वास्तु की मूलभूत समझ रखते है तो आप भी वास्तु शास्त्र के नियमों को अध्ययन कर इसे भवन निर्माण के वक्त लागू कर सकते है, बशर्ते की आठों दिशाओं, सभी 16 ज़ोन्स, 32 पदों और वास्तु के 45 उर्जा क्षेत्रों के अलावा अन्य सभी वास्तु शास्त्र के नियम भी आपको अच्छे से ज्ञात होने चाहिए।

घर की दिशा का पता लगाना -

जिस सड़क से आप घर में प्रवेश करते है अगर वो घर के दक्षिण दिशा में स्थित हो तो आपका घर दक्षिणमुखी कहलाता है।

दक्षिणमुखी घर में मुख्य द्वार का स्थान -

जैसा की आपको बताया गया है कि दक्षिणमुखी घर में निर्माण के समय चूक होने की आशंका बढ़ जाती है तो उसका एक उदाहरण हमें मुख्य द्वार के चयन में मिलता है। इस दिशा में भी अन्य दिशाओं की तरह 8 पद या भाग होते है। लेकिन इनमे से केवल एक ही भाग ऐसा होता है जिसमे मुख्य द्वार का निर्माण शुभ होता है। तो ऐसे में स्वाभाविक रूप से अधिक सावधानी और कुशलता की जरुरत पड़ती है। क्योंकि इस दिशा में गलत स्थान पर निर्मित मुख्य द्वार अन्य की अपेक्षा नकारातमक फल भी अधिक देता है।

दक्षिण दिशा का चौथा पद बेहद लाभदायक होता है जिसे गृहरक्षत के नाम से जाना जाता है। यहाँ पर स्थित द्वार धन तो देता ही है साथ ही प्रसिद्धि भी प्रदान करता है। लेकिन 8 पदों में से केवल एक ही पद पर मुख्य द्वार बनाना तभी संभव होता है जब घर की चौड़ाई अधिक हो। उदाहरण के लिए अगर आप की घर की चौड़ाई 40 फीट है और इसे आप जब बराबर 8 भागों में विभाजित करते है तो एक भाग की चौड़ाई 5 फीट आती है। लेकिन आप अपना मुख्य द्वार 5 फीट से अधिक चौड़ा रखना चाहते है तो गृहरक्षिता का पद निश्चित ही अन्यो पदों के साथ भी सम्मिलित हो जाएगा। परिणामस्वरूप यह उतना लाभदायक नहीं रहेगा। अगर इससे अधिक चौड़ाई रखनी हो तो फिर मुख्य द्वार का विस्तार पूर्व दिशा दिशा की ओर स्थित पदों की ओर करें ना की पश्चिम की ओर। कुल मिलाकर अगर आपने दक्षिणमुखी भूखंड लिया है तो अतिरिक्त सावधानी बरतते हुए उस पर निर्माण करने से पहले किसी वास्तु विशेषज्ञ की सलाह जरुर ले।

दक्षिणमुखी घर के लिए शुभ वास्तु -

  1. मुख्य प्रवेश द्वार दक्षिण दिशा के चौथे पद (गृहरक्षिता) में हो। इस स्थान पर अवस्थित द्वार गृहस्वामी को प्रसिद्धि के साथ-साथ प्रचुर मात्र में धन की आवक भी देगा।
  2. दक्षिण और पश्चिम की दीवारें उत्तर व पूर्व की दीवारों से अधिक चौड़ी, ऊँची व भारी रखे।
  3. घर में प्रयुक्त जल का बहाव दक्षिण से उत्तर की ओर हो और अगर ऐसा संभव ना हो तो बहाव को पूर्व की ओर भी रखा जा सकता है। इस प्रकार की व्यवस्था मकान में निवास कर रहे पुरुषों को स्वास्थ्य लाभ का साथ यश भी प्रदान करता है।
  4. किचन का निर्माण आग्नेय (दक्षिण-पूर्व) और दुसरे विकल्प के रूप में वायव्य में किया जा सकता है।
  5. खाना बनाते वक्त मुंह पूर्व में (आग्नेय में स्थित किचन में) या फिर पश्चिम (वायव्य में स्थित किचन में) रखे।
  6. नैऋत्य में मास्टर बेडरूम का निर्माण करे। यह घर के मुखिया को स्थायित्व और प्रबलता प्रदान करेगा।
  7. पश्चिम दिशा भी बेडरूम के लिए बेहतर विकल्प है। (विशेषकर बच्चों के लिए)
  8. ईशान कोण (उत्तर-पूर्व) में पूजा स्थल का निर्माण किया जा सकता है।
  9. अतिथि कक्ष के निर्माण के लिए वायव्य एक अच्छी दिशा है।

दक्षिणमुखी घर के लिए अशुभ वास्तु -

  1. दक्षिण में खाली स्थान का अनुपात उत्तर दिशा से ज्यादा नहीं होना चाहिए।
  2. घर का ढलान और पानी का बहाव उत्तर से दक्षिण की ओर होने से वास्तु दोष पैदा होता है। क्योंकि ऐसी स्थिति स्वतः ही दक्षिण को उत्तर की अपेक्षा नीचा कर देती है जो कि वास्तु सम्मत नहीं है।
  3. नैऋत्य में किचन का निर्माण भी वास्तु सम्मत नहीं है। घर की स्त्रियों पर इसका प्रतिकूल असर पड़ता है।
  4. दक्षिण दिशा में जमीन के अंदर किसी भी संरचना का निर्माण नहीं करवाना चाहिए। उदाहरण के लिए किसी भी प्रकार का गड्ढा, कुआँ, बोरवेल, अंडरग्राउंड वाटर टैंक, सेप्टिक टैंक इस दिशा में नहीं होना चाहिए अन्यथा यह बड़ी दुर्घटनाओं और दरिद्रता का कारण बन जाता है।
  5. नैऋत्यमुखी द्वार का निर्माण किसी भी हालत में नहीं करवाए। ये बहुत बड़ा वास्तु दोष माना जाता है। नैऋत्यमुखी द्वार आकस्मिक मृत्यु, गंभीर व असाध्य रोग और आर्थिक परेशानियों का कारण बन जाता है।
  6. दक्षिणमुखी घर का द्वार आग्नेयमुखी ना हो। क्योंकि आग्नेयमुखी द्वार इस घर के निवासियों को चोरी के भय के साथ-साथ कानूनी वाद-विवादों में उलझा देता है। साथ ही ऐसा द्वार अग्नि सम्बन्धी विपदाओं का कारण भी बनता है।
  7. ब्रह्मस्थान में किसी भी प्रकार का निर्माण नहीं करे, इसे पुर्णतः खुला छोड़े। इस स्थान पर किसी भी प्रकार का निर्माण भयंकर वास्तु दोष को जन्म देता है।
  8. दक्षिण दिशा के किसी भाग में Extension या cut का होना घर के निवासियों के लिए बेहद हानिकर होता है।

घर बनाते वक्त अनजाने में ही कई प्रकार के वास्तु दोष निर्मित हो जाते है जिससे घर के निवासियों को तरह-तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है| ऐसी परिस्थिति में वास्तु शास्त्र की सहायता से घर में उपस्थित वास्तु दोषों को दूर कर समस्याओं से निजात पाया जा सकता है|

दक्षिण दिशा में वास्तु दोष होने पर :

दक्षिण दिशा का प्रतिनिधि ग्रह मंगल है, जो कि कालपुरूष के बायें सीने, फेफडे और गुर्दे का प्रतिनिधित्व करता है। जन्मकुंडली का दशम भाव इस दिशा का कारक स्थान होता है।

यदि घर की दक्षिण दिशा में कुआँ, दरार, कचरा, कूडादान, कोई पुराना सामान इत्यादि हो, तो गृहस्वामी को ह्रदय रोग, जोडों का दर्द, खून की कमी, पीलिया, आँखों की बीमारी, कोलेस्ट्राल बढ जाना अथवा हाजमे की खराबीजन्य विभिन्न प्रकार के रोगों का सामना करना पडता है।

दक्षिण दिशा में उत्तरी दिशा से कम ऊँचा चबूतरा बनाया गया हो, तो परिवार की स्त्रियों को घबराहट, बेचैनी, ब्लडप्रैशर, मूर्च्छाजन्य रोगों से पीडा का कष्ट भोगना पडता है।

यदि दक्षिणी भाग नीचा हो, ओर उत्तर से अधिक रिक्त स्थान हो, तो परिवार के वृद्धजन सदैव अस्वस्थ रहेंगें. उन्हे उच्चरक्तचाप, पाचनक्रिया की गडबडी, खून की कमी, अचानक मृत्यु अथवा दुर्घटना का शिकार होना पडेगा। दक्षिण पिशाच का निवास है, इसलिए इस तरफ थोडी जगह खाली छोडकर ही भवन का निर्माण करवाना चाहिए।

यदि किसी का घर दक्षिणमुखी हो ओर प्रवेश द्वार नैऋत्याभिमुख बनवा लिया जाए, तो ऎसा भवन दीर्घ व्याधियाँ एवं किसी पारिवारिक सदस्य को अकाल मृत्यु देने वाला होता है।

बचाव के उपाय:

यदि दक्षिणी भाग ऊँचा हो, तो घर-परिवार के सभी सदस्य पूर्णत: स्वस्थ एवं संपन्नता प्राप्त करेंगें। इस दिशा में किसी प्रकार का वास्तुजन्य दोष होने की स्थिति में छत पर लाल रक्तिम रंग का एक ध्वज अवश्य लगायें।

घर के पूजनस्थल में ‘श्री हनुमंतयन्त्र’ स्थापित करें।

दक्षिणमुखी द्वार पर एक ताम्र धातु का ‘मंगलयन्त्र’ लगायें।

प्रवेशद्वार के अन्दर-बाहर दोनों तरफ दक्षिणावर्ती सूँड वाले गणपति जी की लघु प्रतिमा लगायें।

वास्तु दोष निवारण के कुछ सरल उपाय -

सुख और शांति के लिए जितना ज्‍यादा आपका व्‍यवहार मायने रखता है, उससे कहीं ज्‍यादा आपके घर का वास्‍तु। मकान को घर बनाने के लिए जरूरी है, परिवार में सुख-शांति का बना रहना। और ऐसा होने पर ही आपको सुकून मिलता है। यदि आप घर बनवाने जा रहे हैं, तो वास्‍तु के आधार पर ही नक्‍शे का चयन करें। अपने आर्किटेक्‍ट से साफ कह दें कि आपको वास्‍तु के हिसाब से बना मकान ही चाहिए। हां यदि आप बना-बनाया मकान या फ्लैट खरीदने जा रहे हैं, तो वास्‍तु संबंधित निम्‍न बातों का ध्‍यान रख कर अपने लिए सुंदर मकान तलाश सकते हैं।

  • मकान का मुख्‍य द्वार दक्षिण मुखी नहीं होना चाहिए। इसके लिए आप चुंबकीय कंपास लेकर जाएं। यदि आपके पास अन्‍य विकल्‍प नहीं हैं, तो द्वार के ठीक सामने बड़ा सा दर्पण लगाएं, ताकि नकारात्‍मक ऊर्जा द्वार से ही वापस लौट जाएं।

  • घर के प्रवेश द्वार पर स्वस्तिक या ऊँ की आकृति लगाएं। इससे परिवार में सुख-शांति बनी रहती है।

  • घर की पूर्वोत्‍तर दिशा में पानी का कलश रखें। इससे घर में समृद्धि आती है।

  • घर के खिड़की दरवाजे इस प्रकार होनी चाहिए, कि सूर्य का प्रकाश ज्‍यादा से ज्‍यादा समय के लिए घर के अंदर आए। इससे घर की बीमारियां दूर भागती हैं।

  • परिवार में लड़ाई-झगड़ों से बचने के लिए ड्रॉइंग रूम यानी बैठक में फूलों का गुलदस्‍ता लगाएं।

  • रसोई घर में पूजा की अल्‍मारी या मंदिर नहीं रखना चाहिए।

  • बेडरूम में भगवान के कैलेंडर या तस्‍वीरें या फिर धार्मिक आस्‍था से जुड़ी वस्‍तुएं नहीं रखनी चाहिए। बेडरूम की दीवारों पर पोस्‍टर या तस्‍वीरें नहीं लगाएं तो अच्‍छा है। हां अगर आपका बहुत मन है, तो प्राकृतिक सौंदर्य दर्शाने वाली तस्‍वीर लगाएं। इससे मन को शांति मिलती है, पति-पत्‍नी में झगड़े नहीं होते।

  • घर में शौचालय के बगल में देवस्‍थान नहीं होना चाहिए।

  • घर में घुसते ही शौचालय नहीं होना चाहिए।

यदि इन उपायों को आप करते है तो वास्तुदोष दूर होने के साथ ही आपके घर में किसी प्रकार के अन्य निर्माण का बिना तोड़-फोड़ किए सुख-समृद्धि एवं स्वास्थ्य लाभ मिलेगा।

निष्कर्ष –

यदि दक्षिणमुखी घर का निर्माण वास्तु सम्मत तरीके से किया जाए तो यह घर के निवासियों के लिए धन और मान-सम्मान लाता है। हालाँकि दक्षिणमुखी भूखंड पर निर्माण के वक्त थोड़ी अतिरिक्त सावधानी बरतने की आवश्यकता होती है। अतः किसी वास्तु विशेषज्ञ की सहायता से ही इस प्रकार के भूखंड पर निर्माण कार्य करें।

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Engineer Rameshwar Prasad

(B.Tech., M.Tech., P.G.D.C.A., P.G.D.M.)

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