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पश्चिम दिशा (West Direction)

पश्चिम दिशा (Vastu for West facing House)

वरुण इसके देवता हैं और शनि ग्रह। यह सूर्यास्त की दिशा है। इसलिए पश्चिमाभिमुख होकर बैठना मन में अवसाद पैदा करता है। पश्चिम में भोजन करने का स्थान उत्तम है। सीढ़ियां, बगीचा, कुंआ आदि भी इस ओर हो सकता है। पश्चिम की ओर सिर करके सोने से प्रबल चिन्ता घेर लेती है।

पश्चिम दिशा नैऋत्य (दक्षिण-पश्चिम) और वायव्य (उत्तर-पूर्व) के बीच में स्थित होती है। भवन निर्माण के लिए उत्तर व पूर्व दिशा के बाद तीसरी उत्तम दिशा पश्चिम को माना जाता है। यह एक प्रचलित परन्तु मिथ्या अवधारणा है कि दक्षिण दिशा की तरह ही पश्चिम भी गृहनिर्माण के लिए अन्य दिशाओं की अपेक्षा एक अशुभ दिशा है जो कि वास्तविकता में बिलकुल गलत अवधारणा है। पश्चिम दिशा या कोई भी अन्य दिशा अपने आप में शुभ या अशुभ नहीं होती है बल्कि उस भूखंड विशेष पर निर्मित भवन का वास्तु उसे शुभ या अशुभ बनाता है।

उत्तरमुखी व पूर्वमुखी भूखंड पर भी वास्तु दोष से युक्त घर का निर्माण अशुभ होगा और नकारात्मक नतीजे प्रदान करेगा तो वही दक्षिणमुखी या पश्चिममुखी घर भी अगर वास्तु सम्मत हो तो घर बेहद शुभ व सकारात्मक नतीजे प्रदान करेगा। हालाँकि इस बात में कोई दो राय नहीं है कि उत्तर या पूर्व दिशा को देखते भूखंड पर वास्तु सम्मत घर बनाना ज्यादा आसान होता है और दक्षिण व पश्चिम मुखी भूखंड पर निर्माण करते वक्त गलती की गुंजाईश कम होने के चलते थोड़ी अतिरिक्त सावधानी बरतनी पड़ती है। इसीलिए इस प्रकार के भूखंड पर वास्तु शास्त्र के नियम से घर का निर्माण करना आवश्यक होता है।

गौरतलब है कि पूर्व दिशा का स्वामी प्रकाश का प्रतीक सूर्य है तो पश्चिम दिशा का स्वामी अंधकार का प्रतीक शनि गृह है। दिन के समय जहाँ सूर्य शासन करता है तो वही रात्रिकाल में शनि शासन करता है। शनि पर सौर किरणे अन्य गृहों की अपेक्षा कम मात्रा में पंहुचती है और शनि के वलय इसे रहस्यमय रंगों में रंग देते है इसीलिए इसे रहस्यमय गृह भी कहते है।

जहाँ शनि पश्चिम दिशा का स्वामी गृह है तो वही अनजान विश्व और गहरे समुद्रों के देवता के रूप में प्रसिद्ध वरुण इस दिशा के दिक्पाल है।

घर की दिशा का पता लगाना -

जिस सड़क से आप घर में प्रवेश करते है अगर वो घर के पश्चिम दिशा में स्थित हो तो आपका घर पश्चिममुखी कहलाता है।

पश्चिममुखी घर में मुख्य द्वार का स्थान –

जैसा की आपको पहले भी बताया जा चुका है कि मुख्य द्वार का निर्माण वास्तु में सबसे महत्वपूर्ण पहलुओं में से एक है और पश्चिम दिशा में भी यह अन्य दिशाओं के समान ही महत्व रखता है। इस दिशा में विद्यमान 8 पदों में से दो पद बेहद शुभ और सकारात्मक होते है। चौथे और पांचवे स्थान पर स्थित पदों पर बने मुख्य द्वार बेहद शुभ फल देते है। इन दोनों पदों को पुष्पदंत व वरुण के नाम से भी जाना जाता है।

अगर किसी कारणवश भूखंड की चौड़ाई मुख्य द्वार का निर्माण इन दो पदों के अंदर करने के लिए कम पड़ती है तो ऐसे में आपको मुख्य द्वार का विस्तार उत्तर की ओर स्थित पदों में करना चाहिए और जितना संभव हो नैर्रित्य (दक्षिण-पश्चिम) की ओर मुख्य द्वार का विस्तार ना करें।

पश्चिममुखी घर के लिए शुभ वास्तु –

  1. जल की निकासी के लिए ढलान पश्चिम से ईशान (उत्तर-पूर्व) की ओर रखे। अगर पानी की निकासी उत्तर, ईशान या पूर्व की ओर रखना संभव नहीं हो तो पहले पानी को बहाकर ईशान की ओर ले जाए और फिर उत्तरी दीवार के सहारे पानी को पश्चिमी वायव्य से बाहर की ओर निकालने का प्रबंध कर दे।
  2. पश्चिम दिशा को पूर्व व उत्तर की अपेक्षा ऊँची रखने से यश और प्रतिष्ठा में वृद्धि तथा धन की आवक होती है।
  3. पश्चिम की दीवारों की ऊंचाई व चौड़ाई पूर्व की तुलना में अधिक रखे।
  4. पश्चिम में अगर खाली स्थान रखना हो तो पूर्व में उससे अधिक क्षेत्रफल में खाली स्थान की व्यवस्था करे।
  5. पश्चिम में बगीचा लगाया जा सकता है। हालाँकि इस दिशा में यथासंभव भारी और बड़े वृक्ष लगाना श्रेयस्कर रहेगा।
  6. किचन के लिए आग्नेय कोण व वायव्य कोण सबसे उपयुक्त दिशा है।
  7. पश्चिम बच्चो के बेडरूम या अध्ययन कक्ष के लिए एक बेहतरीन स्थान है।

पश्चिममुखी घर के लिए अशुभ वास्तु –

  1. पश्चिमी भाग अगर पूर्वी भाग या उत्तरी भाग की तुलना में नीचा होता है तो इससे अपयश और हानि होगी।
  2. नैऋत्याभिमुखी मुख्य द्वार निवासियों को कई प्रकार के संकट, आर्थिक हानि और गंभीर रोगों के जाल में डाल देगा।
  3. अगर मुख्य द्वार वायव्याभिमुखी हो तो यह घर के लोगो को अदालती वाद-विवादों में डालेगा, साथ ही यह अर्थहानि भी करेगा।
  4. जल निकासी अगर पश्चिम से हो तो इससे पुरुष दीर्घ व्याधियों के शिकार होंगे।
  5. पश्चिम में किसी भी प्रकार का Extension या Cut धन हानि करेगा और साथ ही स्वास्थ्य सम्बन्धी परेशानियों का कारण भी बनेगा।
  6. मुख्य द्वार के ठीक सामने किसी भी प्रकार का निर्माण (वृक्ष, पिलर, इत्यादि) ना करे।
  7. टी पॉइंट पर स्थित पश्चिम मुखी भूखंड बेहद नकारात्मक परिणाम देता है।

पश्चिम दिशा में वास्तु दोष होने पर :

पश्चिम दिशा का प्रतिनिधि ग्रह शनि है। यह स्थान कालपुरूष का पेट, गुप्ताँग एवं प्रजनन अंग है।

यदि पश्चिम भाग के चबूतरे नीचे हों, तो परिवार में फेफडे, मुख, छाती और चमडी इत्यादि के रोगों का सामना करना पडता है।

यदि भवन का पश्चिमी भाग नीचा होगा, तो पुरूष संतान की रोग बीमारी पर व्यर्थ धन का व्यय होता रहेगा।

यदि घर के पश्चिम भाग का जल या वर्षा का जल पश्चिम से बहकर, बाहर जाए तो परिवार के पुरूष सदस्यों को लम्बी बीमारियों का शिकार होना पडेगा।

यदि भवन का मुख्य द्वार पश्चिम दिशा की ओर हो, तो अकारण व्यर्थ में धन का अपव्यय होता रहेगा।

यदि पश्चिम दिशा की दीवार में दरारें आ जायें, तो गृहस्वामी के गुप्ताँग में अवश्य कोई बीमारी होगी।

यदि पश्चिम दिशा में रसोईघर अथवा अन्य किसी प्रकार से अग्नि का स्थान हो, तो पारिवारिक सदस्यों को गर्मी, पित्त और फोडे-फिन्सी, मस्से इत्यादि की शिकायत रहेगी।

बचाव के उपाय:

ऎसी स्थिति में पश्चिमी दीवार पर ‘वरूण यन्त्र’ स्थापित करें।

परिवार का मुखिया न्यूनतम 11 शनिवार लगातार उपवास रखें और गरीबों में काले चने वितरित करे।

पश्चिम की दीवार को थोडा ऊँचा रखें और इस दिशा में ढाल न रखें।

पश्चिम दिशा में अशोक का एक वृक्ष लगायें।

वास्तु दोष निवारण के कुछ सरल उपाय -

जल-थल-नभ-अग्नि-पवन के पांचसूत्रों के मिलन से बने वास्तु शास्त्र में बिना तोड़-फोड़ के कुछ उपाय करने से वास्तु दोषों का निराकरण किया जा सकता है जानें कैसे निवारण करें -

  • अपनी रूचि के अनुसार सुगन्धित फूलों का गुलदस्ता सदैव अपने सिरहाने की ओर कोने में सजाएं।

  • बेडरूम में जूठे बर्तन न रखें इससे पत्नी का स्वास्थ्य प्रभावित होने के साथ ही धन का अभाव बना रहता हैं।

  • परिवार का कोई सदस्य मानसिक तनाव से ग्रस्त हो तो काले मृग की चर्म बिछाकर सोने से लाभ होगा।

  • घर में किसी को बुरे स्वप्न आते हो तो गंगाजल सिरहाने रखकर सोएं।

  • परिवार में कोई रोगग्रस्त हो तो चांदी के बर्तन में शुद्ध केसरयुक्त गंगाजल भरकर सिरहाने रखें।

  • यदि कोई व्यक्ति मानसिक तनाव से ग्रस्त हो तो कमरे में शुद्ध घी का दीपक जला कर रखें इसके साथ गुलाब की अगरबत्ती भी जलाएं।

  • शयन कक्ष में झाड़ू न रखें। तेल का कनस्तर, अंगीठी आदि न रखें। व्यर्थ चिंतित रहेंगे। यदि कष्ट हो रहा है तो तकिए के नीचे लाल चंदन रखकर सोएं।

  • यदि दुकान में चोरी होती है तो दुकान की चौखट के पास पूजा करने के बाद मंगल यंत्र स्थापित करें।

  • दुकान में यदि मन नहीं लगता तो श्वेत गणेशजी की मूर्ति विधिवत् पूजा करके मुख्य द्वार के आगे और पीछे स्थापित करें।

  • यदि दुकान का मुख्य द्वार अशुभ है या दक्षिण-पश्चिम या दक्षिण दिशा में है तो यमकीलकयंत्र का पूजन करके स्थापित करें। यदि शासकीय कर्मचारी द्वारा परेशान है तो सूर्ययंत्र की विधि के अनुसार पूजा करके दुकान में स्थापित करें।

  • सीढ़ियों के नीचे बैठकर महत्वपूर्ण कार्य न करें। इससे प्रगति में बाधा आएगी।

  • दुकान, फैक्ट्री, कार्यालय आदि स्थानों में वर्ष में एक बार पूजा अवश्य करें।

  • गुप्त शत्रु परेशान कर रहे है तो लाल चांदी के सर्प बनाकर उनकी आंखों में सुरमा लगाकर पैर के नीचे रखकर सोना चाहिए।

  • जबसे आपने मकान लिया है तब से भाग्य साथ नहीं दे रहा है और लगता है पुराने मकान में सब कुछ ठीक-ठाक था या अब परेशानियां हैं तो घर में पीले रंग के पर्दे लगवाएं। सटे भवन में हल्दी के छींटे मारें और गुरू को पीले वस्त्र दान करें।

  • यदि संतान आज्ञाकारी नहीं है, संतान सुख और संतान का सहयोग प्राप्त हो इसके लिए सूर्य यंत्र या तांबा वहां पर रखें जहां भवन का प्रवेश द्वार हैं। यंत्र की प्राण-प्रतिष्ठा कराकर ही रखें।

  • सीढ़ियों के नीचे बैठकर महत्वपूर्ण कार्य न करें। इससे प्रगति में बाधा आएगी।

  • दुकान, फैक्ट्री, कार्यालय आदि स्थानों में वर्ष में एक बार पूजा अवश्य करें।

यदि इन उपायों को आप करते है तो वास्तुदोष दूर होने के साथ ही आपके घर में किसी प्रकार के अन्य निर्माण का बिना तोड़-फोड़ किए सुख-समृद्धि एवं स्वास्थ्य लाभ मिलेगा।

निष्कर्ष –

पश्चिम दिशा में अगर वास्तु सम्मत निर्माण करवाया जाये तो यह इस घर के निवासियों को आर्थिक सम्पन्नता, यश व प्रतिष्ठा प्रदान करेगी। हालाँकि दक्षिण दिशा के समान ही इस दिशा के भूखंड के निर्माण के वक्त थोड़ी अतिरिक्त सावधानी बरतते हुए निर्माण करना चाहिए। इसके लिए किसी वास्तु विशेषज्ञ की सहायता अवश्य ले।

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Engineer Rameshwar Prasad

(B.Tech., M.Tech., P.G.D.C.A., P.G.D.M.)

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