कुबेर तथा चन्द्र इसके देवता हैं तथा बुद्ध इसका ग्रह है। यह दिशा शुभ कार्यों के लिए उत्तम मानी गई है। पूजा, ध्यान, चिंतन, अध्ययन आदि कार्य उत्तराभिमुख होकर करने चाहिए। धन के देवता कुबेर की दिशा होने के कारण इस दिशा की ओर द्वार समृद्धि दायक माना गया है।
वास्तु शास्त्र के अनुसार उत्तरी दिशा शुभ होती है। वायव्य (उत्तर-पश्चिम) और ईशान (उत्तर-पूर्व) के बीच स्थित दिशा ही उत्तर दिशा कहलाती है। उत्तर दिशा का स्वामी गृह बुध और दिक्पाल भल्लाट और सोम है। बुध के अतिरिक्त चन्द्रमा और बृहस्पति भी इस दिशा में अपना प्रभाव डालते है। बुध गृह जहाँ बुद्धिमता, वाक्शक्ति, विद्वता, आदि का प्रतीक है वही बृहस्पति ज्ञान, धन, और भाग्य का कारक है। इसके अलावा चन्द्रमा मन, गृह-सुख, मां, वाहन इत्यादि पहलुओ पर अपना प्रभाव रखता है। इन तीनों ही गृहों के सम्मिलित प्रभाव से प्राप्त होने वाले शुभ प्रभावों में अत्यधिक वृद्धि हो जाती है।
उत्तरमुखी भवनों में निवास करने वाले लोग अपने पद और आत्मसम्मान के प्रति अधिक संवेदनशील होते है। कानून के विरुद्ध कार्य करना इन्हें नापसंद होता है। अगर उत्तरमुखी घर उचित रूप से निर्मित हो तो यहाँ के निवासियों को सुख, समृद्धि, धन और अच्छे स्वास्थ्य का लाभ प्राप्त होता है। उत्तरमुखी घर के शुभाशुभ प्रभाव महिलाओं पर भी विशेष तौर पर परिलिक्षित होते है।
घर की दिशा का पता लगाना -
जिस सड़क से आप घर में प्रवेश करते है अगर वो घर के उत्तर दिशा में स्थित हो तो आपका घर उत्तरमुखी कहलाता है।
उत्तरमुखी घर में मुख्य द्वार का स्थान -
मुख्य द्वार की उचित स्थान पर अवस्थिति घर के निर्माण के वक्त बेहद सावधानी से निर्धारित की जानी चाहिए। गौरतलब है कि किसी भी भूखंड को 32 बराबर भागो या पदों में विभाजित किया जाता है। हर दिशा (उत्तर, पूर्व, दक्षिण, पश्चिम) में 8 भाग या पद मौजूद होते है। मुख्य द्वार का निर्माण इन्ही 32 पदों में से किसी एक या अधिक पदों के अंदर होता है। इनमे से कुछ पद मुख्य प्रवेश द्वार के निर्माण के लिए शुभ होते है कुछ अशुभ।
चूँकि उत्तरमुखी भूखंड सर्वोत्तम प्रकार के भूखंडों में से एक होते है। अतः सबसे अधिक शुभ पद भी उत्तर दिशा में ही होते है। उत्तर दिशा के 8 पदों में से सबसे फलदायी और शुभ पद 3, 4, और 5वां होता है जिन्हें क्रमशः मुख्य, भल्लाट और सोम के नाम से जाना जाता है। इन पदों या इनमे से किसी एक पद पर मुख्य द्वार का निर्माण आर्थिक सम्पन्नता और प्रगति के लिए नए अवसर उपलब्ध करता है।
इनमे से 5वां पद सर्वश्रेष्ठ है। 5वां पद सोम से सम्बंधित है और यह धन में वृद्धि और सम्पन्नता लाता है। अगर स्थान की कमी के चलते सिर्फ 5वें पद पर मुख्य द्वार नहीं बना सकते है तो आप यह अवश्य सुनिश्चित करे की अन्य पदों के साथ 5वां पद भी अवश्य सम्मिल्लित हो।
उत्तरमुखी घर के लिए शुभ वास्तु -
उत्तरमुखी घर के लिए अशुभ वास्तु -
उत्तर दिशा में वास्तु दोष होने पर :
उत्तर दिशा का प्रतिनिधि ग्रह बुध है और भारतीय वास्तुशास्त्र में इस दिशा को कालपुरूष का ह्रदय स्थल माना जाता है. जन्मकुंडली का चतुर्थ सुख भाव इसका कारक स्थान है।
यदि उत्तर दिशा ऊँची हो और उसमें चबूतरे बने हों, तो घर में गुर्दे का रोग, कान का रोग, रक्त संबंधी बीमारियाँ, थकावट, आलस, घुटने इत्यादि की बीमारियाँ बनी रहेंगीं।
यदि उत्तर दिशा अधिक उन्नत हो, तो परिवार की स्त्रियों को रूग्णता का शिकार होना पडता है।
बचाव के उपाय:
यदि उत्तर दिशा की ओर बरामदे की ढाल रखी जाये, तो पारिवारिक सदस्यों विशेषतय: स्त्रियों का स्वास्थय उत्तम रहेगा. रोग-बीमारी पर अनावश्यक व्यय से बचे रहेंगें और उस परिवार में किसी को भी अकालमृत्यु का सामना नहीं करना पडेगा।
परिवार का मुखिया 21 बुधवार लगातार उपवास रखे।
भवन के प्रवेशद्वार पर संगीतमय घंटियाँ लगायें।
उत्तर दिशा की दीवार पर हल्का हरा (Parrot Green) रंग करवायें।
वास्तु दोष निवारण के कुछ सरल उपाय -
जिस घर का वास्तु सही होता हैं वहां शांति और समृद्धि का स्थाई निवास होता है। अगर आप घर में चाकू-कैंची, झाडू और डस्टबीन पर ध्यान दें तो जल्दी ही मालामाल बन सकते हैं।
वास्तु के अनुसार पौधे लगाने से घर सकारात्मक उर्जा से भर जाता है। हरियाली आंखों को शांति देती है। घर में भी यदि वास्तु के अनुसार पौधे लगाए जाएं तो घर में शांति के साथ ही सुख, समृद्धि भी बढऩे लगती है।
झाड़ू घर में किसी ऐसे कोने में रखें जो एकदम दिखाई ना दें।
घर में कोई भी बंद घड़ी ना लगी रहे। जो घड़ी काम ना कर रही हो उसे घर में ना रखें।
मानसिक शांति प्राप्त करने के लिए चंदन आदि से बनी अगरबत्ती जलाएं। इससे मानसिक बेचैनी कम होती है। साथ ही घर में सुख समृद्धि बढऩे लगेगी।
घर के डस्टबीन में ज्यादा कचरा इकठ्ठा ना होने दें।
कभी भी किचन के सिंक में ज्यादा समय के लिए गंदे बर्तन ना रखें क्योंकि इससे घर में अलक्ष्मी का निवास होता है साथ ही घर के सदस्यों में असुरक्षा की भावना उत्पन्न होती है।
नुकीले औजार जैसे- कैंची, चाकू आदि कभी भी इस प्रकार नहीं रखे जाने चाहिए कि उनका नुकीला बाहर की ओर हो।
हर रोज कम से कम पच्चीस मिनट के लिए खिड़की जरुर खोलें, इससे कमरे से रात की उर्जा बाहर निकल जाएगी और साथ ही सूरज की रोशनी के साथ घर में सकारात्मक उर्जा का प्रवेश हो जाए।
ईशान्य कोण यानी उत्तर-पूर्व में तुलसी का पौधा लगाएं।
घर की बैठक में जहां घर के सदस्य आमतौर पर एकत्र होते हैं, वहां बांस का पौधा लगाना चाहिए। पौधे को बैठक के पूर्वी कोने में गमले में रखें।
शयन कक्ष में पौधा नहीं रखना चाहिए, किन्तु बीमार व्यक्ति के कमरे में ताजे फूल रखने चाहिए। इन फूलों को रात को कमरे से हटा दें।
तीन हरे पौधे मिट्टी के बर्तनों में घर के अंदर पूर्व दिशा में रखें। बोनसाई व कैक्टस न लगाएं क्योंकि बोनसाइ प्रगति में बाधक एवं कैक्टस हानिकारक होता है।
यदि इन उपायों को आप करते है तो वास्तुदोष दूर होने के साथ ही आपके घर में किसी प्रकार के अन्य निर्माण का बिना तोड़-फोड़ किए सुख-समृद्धि एवं स्वास्थ्य लाभ मिलेगा।
निष्कर्ष –
उत्तर दिशा मुख्यतः धन, आर्थिक समृद्धि और महिलाओं से सम्बंधित होती है। अतः इस दिशा का वास्तु सम्मत बना होना या इसमें किसी प्रकार का वास्तु दोष पाया जाना सर्वप्रथम महिलाओं और धन से सम्बंधित परिणामों को ही प्रभावित करेगा। इसलिए घर की आर्थिक सम्पन्नता और महिलाओं की सुख-समृद्धि के लिए उचित रूप से बना उत्तरमुखी घर बेहद लाभदायक होता है। सावधानी के लिए घर को वास्तु सम्मत बनाने और वास्तु दोष दूर करने के लिए वास्तु विशेषज्ञ की सलाह ले।
Engineer Rameshwar Prasad(B.Tech., M.Tech., P.G.D.C.A., P.G.D.M.) Vaastu International
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