A Multi Disciplinary Approach To Vaastu Energy

पूर्व दिशा (East Direction)

पूर्व दिशा (Vastu for East facing House)

यह प्रकाश, ज्ञान, चेतना का स्रोत है।। भगवान सूर्य इस दिशा में उदित होकर सभी प्राणियों में स्फूर्ति व उर्जा का संचार करते हैं। इन्द्र इसके देवता हैं और सूर्य ग्रह। इस दिशा की ओर खुलने वाला भवन सर्वोत्तम माना गया है। प्रात:काल पूर्व दिशा से आने वाली हवा का घर में निर्वाध रूप से प्रवेश होना चाहिए ताकि सारा घर सकारात्मक उर्जा से आपूरित हो जाए।

पूर्वाभिमुख भूखंड वास्तु सम्मत घर बनाने के लिए बेहद अनुकूल होता है। पूर्व दिशा ईशान (उत्तर-पूर्व) और आग्नेय (दक्षिण-पूर्व) के बीच में स्थित एक अति शुभ दिशा है।

उत्तर और पूर्व दिशा वास्तु सम्मत घर बनाने के लिए सबसे अनुकूल दिशाएं है। पूर्व दिशा की महत्ता का सबसे बड़ा कारण है कि इसी दिशा से हमें जीवन देने वाले सूर्य का उदय होता है।  चूँकि सूर्य हमारे जीवन में उर्जा का प्राथमिक स्त्रोत है अतः सूर्योदय की दिशा के रूप में पहचाने जाने वाली पूर्व दिशा का महत्व भी बढ़ जाता है। प्रत्येक नए दिन का आरंभ सूर्योदय के साथ होता है और इसीलिए पूर्व को नवीन प्रारम्भो की दिशा के रूप में भी जाना जाता है। जीवनदायिनी तारा सूर्य प्रकाश और तेज का गृह है। प्रकाश सकारात्मकता और जीवन का प्रतीक है। पूर्व दिशा इसी लौकिक प्रकाश की दिशा है।

जिस प्रकार से उत्तर दिशा महिलाओं के लिए महत्वपूर्ण होती है उसी प्रकार पूर्व दिशा पुरुषों के लिए और संतान के लिए बहुत महत्वपूर्ण होती है। पूर्व के सकारात्मक और नकारात्मक निर्माण का प्रभाव सबसे अधिक घर के पुरुष सदस्यों पर पड़ता है। यह दिशा मान-सम्मान प्रदान करने वाली है। यह सरकार से सहयोग, सफलता एवं विजय प्राप्ति के लिए एक महत्वपूर्ण दिशा है। सरकारी कर्मचारियों या सरकार के साथ मिलकर काम करने वाले लोगो के लिए यह दिशा और भी अहमियत रखती है। इनके लिए पूर्वमुखी घर अति उपयुक्त होते है।

किसी भी प्रकार के निर्माण से इस दिशा को बाधित नहीं करे और जितना संभव हो इस दिशा को खुला छोड़े। यदि इस दिशा का क्षेत्रफल पश्चिम से कम है या यह अधिक ऊँची उठी हुई है तो आपके शत्रुओं की शक्ति बढ़ेगी और आप कमजोर महसूस करेंगे। साथ ही आपको निरंतर विफलता का सामना करना पड़ेगा। अतः इस दिशा के महत्व को समझते हुए एक वास्तु सम्मत घर का निर्माण करें।

ध्यान देने वाली बात है कि पूर्वमुखी घरों के बारे में एक बड़ा भ्रम है कि ये हमेशा शुभ ही होते है। परन्तु वास्तविकता में उत्तर मुखी व पूर्व मुखी भूखंड शुभ तो होते है लेकिन ये शुभ फल तभी देंगे जब इनका निर्माण वास्तु सम्मत तरीके से किया जायेगा। इसके लिए आपको मुख्य द्वार की अवस्थिति से लेकर घर में बेडरूम के निर्माण, किचन का स्थान, शौचालय निर्मित करने की दिशा, सीढियां बनाने की जगह सहित अन्य कई चीजों का ध्यान रखना होगा। वास्तु सम्मत पूर्वमुखी घर ही इस शुभ दिशा के अच्छे फल दिला पायेगा।

घर की दिशा का पता लगाना -

जिस सड़क से आप घर में प्रवेश करते है अगर वो घर के पूर्व दिशा में स्थित हो तो आपका घर पूर्वमुखी कहलाता है।

पूर्वमुखी घर में मुख्य द्वार का स्थान –

मुख्य द्वार की उचित स्थान पर अवस्थिति घर के निर्माण के वक्त बेहद सावधानी से निर्धारित की जानी चाहिए। गौरतलब है कि किसी भी भूखंड को 32 बराबर भागो या पदों में विभाजित किया जाता है। हर दिशा (उत्तर, पूर्व, दक्षिण, पश्चिम) में 8 भाग या पद मौजूद होते है।  मुख्य द्वार का निर्माण इन्ही 32 पदों में से किसी एक या अधिक पदों के अंदर होता है। इनमे से कुछ पद मुख्य प्रवेश द्वार के निर्माण के लिए शुभ होते है कुछ अशुभ।

पूर्व दिशा में स्थित तीसरा व चौथा पद शुभ होता है जिन्हें क्रमश: जयन्त और इंद्र के नाम से जाना जाता है। पांचवा पद सूर्य के नाम से जाना जाता है इसे भी कुछ मतों के अनुसार मुख्य द्वार के निर्माण के लिए अनुकूल माना जाता है, हालाँकि वास्तविकता में यह उतना लाभदायक नहीं है जितना कि जयन्त और इंद्र नामक पद है। इसलिए बेहतर होगा की पूर्वमुखी घर के निर्माण के समय मुख्य द्वार तीसरे या चौथे पद पर ही बनाया जाये। यहाँ स्थित द्वार आपको जीवन में धन से संपन्न करेगा, साथ ही यह आपको सफल बनाएगा और सरकार के द्वारा आपको प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से लाभान्वित करेगा (विशेषकर कि चौथा पद इंद्र)।

पूर्वमुखी घर के लिए शुभ वास्तु –

  1. पूर्व दिशा की तरफ अधिक खाली स्थान का होना आर्थिक लाभ के साथ ही आध्यात्मिक रूप से भी लाभदायक होता है। साथ ही पूर्व का खुला स्थान पुत्र संतान के लिए भी लाभकारी होता है।
  2. ईशान (उत्तर-पूर्व) में अंडरग्राउंड वाटर टैंक रखे जिससे घर में जल तत्व मजबूत होगा।
  3. घर का ढलान उत्तर, उत्तर-पूर्व या फिर पूर्व दिशा में रखे। इस प्रकार का ढलान घर के निवासियों के लिए स्वास्थ्य के लिहाज से लाभकारी होता है।
  4. दक्षिण व पश्चिम की अपेक्षा उत्तर व पूर्व में कम ऊंचाई व चौड़ाई वाली दीवारें रखे।
  5. किचन का निर्माण आग्नेय (दक्षिण-पूर्व) में करें।
  6. पूर्वी दिशा की चारदीवारी अगर पश्चिम की चारदीवारी की अपेक्षा कम ऊँची हो तो पुत्र एवं पौत्रों की वृद्धि होगी।
  7. घर की पूर्वी दिशा में दीवार जितनी कम ऊँची हो घर का मुखिया भी समाज और दुनिया में उतना ही सम्मान और यश-प्रतिष्ठा पायेगा।
  8. खाना बनाते समय अपना मुंह पूर्व (आग्नेय वाली किचन) या पश्चिम (वायव्य वाली किचन) में रखे।
  9. ईशान (उत्तर-पूर्व) में पूजा स्थल बनाया जा सकता है।
  10. गेस्ट रूम वायव्य और मास्टर बेडरूम नैऋत्य में बनाया जा सकता है।
  11. पूर्वी दिशा में स्थित अंडरग्राउंड वाटर टैंक या कुआँ शुभ होता है।
  12. घर में इस्तेमाल किया जाने वाला जल अगल पूर्वी दिशा में होकर बाहर निकले तो उस घर के पुरूषों के स्वास्थ्य के लिए यह बेहद अच्छा होगा।
  13. उत्तर दिशा में अगर कोई खाली भूखंड हो और उसे खरीदना आपके लिए संभव हो तो जरुर उसे खरीद ले। क्योंकि उत्तर की तरफ अधिक खुला हुआ भूखंड बेहद सकरात्मक नतीजे प्रदान करता है। हालाँकि ऐसा करने से पहले किसी वास्तु विशेषज्ञ की सलाह जरुर ले। क्योंकि जब आप अपने भूखंड से लगा कोई अन्य भूखंड खरीदते है तो आपके घर की सारी दिशाएं भी बदल जाती है। जैसे कि उत्तर में भूखंड खरीदने से पहले अगर आपका मुख्य द्वार पूर्व के पांचवे पद पर आ रहा हो तो भूखंड खरीदने के बाद वह नीचे खिसक के आग्नेय दिशा में स्थित हो जायेगा। (आपके घर के दक्षिण या पश्चिम में लगे खाली भूखंड कभी नहीं खरीदे)

पूर्वमुखी घर के लिए अशुभ वास्तु –

  1. पूर्व दिशा में घर का निर्माण करना और दक्षिण व पश्चिम को खाली छोड़ना भारी वास्तु दोष को जन्म देता है। ऐसा निर्माण यहाँ के निवासियों को दरिद्रता की ओर ले जाएगा और बड़ी आर्थिक हानि करेगा। साथ ही यह निवासियों के स्वास्थ्य के लिए भी नुकसानदायक साबित होगा।
  2. पूर्व दिशा से दक्षिण या पश्चिम की ओर घर का ढलान घर के सदस्यों पर विपरीत प्रभाव डालता है। इसके अतिरिक्त पूर्व दिशा का अन्य दिशाओं की अपेक्षा अधिक ऊँचा होना आर्थिक व्यय की वजह तो बनेगा ही साथ ही यह घर के मुखिया को कर्जदार भी बना देगा।
  3. पूर्व दिशा से जीवनदायिनी सूर्य का उदय इस दिशा का महत्व बढ़ा देता है और इसे अध्यात्मिक महत्व प्रदान करता है। ऐसे में इस पवित्र दिशा में टॉयलेट का निर्माण, सेप्टिक टैंक का निर्माण, इत्यादि इस दिशा के शुभता को नष्ट कर हानिकारक परिणाम प्रदान करता है।
  4. किसी भी अन्य दिशा की तरह पूर्व दिशा का कटना एक बड़ा वास्तु दोष है।
  5. पूर्व दिशा का बढ़ा हुआ होना भी वास्तु दोष है।
  6. ऊँचे व बहुत अधिक बड़े पेड़ पूर्व या उत्तर दिशा में नहीं लगाये।
  7. पूर्व में सीढ़ियों का निर्माण वास्तु दोष उत्पन्न करता है। (विशेषतः 3,4,5 वां पद में)
  8. ईशान (उत्तर-पूर्व) में मास्टर बेडरूम घर के मुखिया के लिए नकारात्मक होता है।
  9. पूर्वी दिशा का स्थल ऊँचा हो तो यह घर में दरिद्रता लाता है साथ ही यह संतान के लिए भी हानिकर होता है।
  10. ईशान में किचन का निर्माण वास्तु सम्मत नहीं होता है। घर के सदस्यों पर इसका नकारात्मक परिणाम पड़ता है।
  11. दो ऊँची इमारतों के बीच बना घर भी नकारात्मक नतीजे प्रदान करता है।
  12. पूर्वी भाग में कूड़ा-कचरा, मिट्टी के ऊँचे टीले तो धन और संतान की हानि होगी।
  13. पूर्व या उत्तर में बहुत ऊँची इमारत की अवस्थिति भी लाभदायक नहीं होती है।

पूर्व दिशा में वास्तु दोष होने पर :

यदि भवन में पूर्व दिशा का स्थान ऊँचा हो, तो व्यक्ति का सारा जीवन आर्थिक अभावों, परेशानियों में ही व्यतीत होता रहेगा और उसकी सन्तान अस्वस्थ, कमजोर स्मरणशक्ति वाली, पढाई-लिखाई में जीचुराने तथा पेट और यकृत के रोगों से पीडित रहेगी।

यदि पूर्व दिशा में रिक्त स्थान न हो और बरामदे की ढलान पश्चिम दिशा की ओर हो, तो परिवार के मुखिया को आँखों की बीमारी, स्नायु अथवा ह्रदय रोग की स्मस्या का सामना करना पडता है।

घर के पूर्वी भाग में कूडा-कर्कट, गन्दगी एवं पत्थर, मिट्टी इत्यादि के ढेर हों, तो गृहस्वामिनी में गर्भहानि का सामना करना पडता है।

भवन के पश्चिम में नीचा या रिक्त स्थान हो, तो गृहस्वामी यकृत, गले, गाल ब्लैडर इत्यादि किसी बीमारी से परिवार को मंझधार में ही छोडकर अल्पावस्था में ही मृत्यु को प्राप्त हो जाता है।

यदि पूर्व की दिवार पश्चिम दिशा की दिवार से अधिक ऊँची हो, तो संतान हानि का सामना करना पडता है।

अगर पूर्व दिशा में शौचालय का निर्माण किया जाए, तो घर की बहू-बेटियाँ अवश्य अस्वस्थ रहेंगीं।

बचाव के उपाय:

पूर्व दिशा में पानी, पानी की टंकी, नल, हैंडापम्प इत्यादि लगवाना शुभ रहेगा।

पूर्व दिशा का प्रतिनिधि ग्रह सूर्य है, जो कि कालपुरूष के मुख का प्रतीक है। इसके लिए पूर्वी दिवार पर ‘सूर्य यन्त्र’ स्थापित करें और छत पर इस दिशा में लाल रंग का ध्वज(झंडा) लगायें।

पूर्वी भाग को नीचा और साफ-सुथरा खाली रखने से घर के लोग स्वस्थ रहेंगें। धन और वंश की वृद्धि होगी तथा समाज में मान-प्रतिष्ठा बढेगी।

वास्तु दोष निवारण के कुछ सरल उपाय -

कभी-कभी दोषों का निवारण वास्तुशास्त्रीय ढंग से करना कठिन हो जाता है। ऐसे में दिनचर्या के कुछ सामान्य नियमों का पालन करते हुए निम्नोक्त सरल उपाय कर इनका निवारण किया जा सकता है।

  • उत्तर अथवा पूर्व में बड़ा खुला स्थान नाम, धन और प्रसिद्धि का माध्यम होता है। अपने मकान, फार्म हाउस कॉलोनी के पार्क फैक्टरी के उत्तर-पूर्व, पूर्व या उत्तरी भाग में शांत भाव से बैठना या नंगे पैर धीमे-धीमे टहलना सोया भाग्य जगा देता है।

  • दक्षिण-पश्चिम में अधिक खुला स्थान घर के पुरूष सदस्यों के लिए अशुभ होता है, उद्योग धंधों में यह वित्तीय हानि और भागीदारों में झगड़े का कारण बनता है।

  • घर या कारखाने का उत्तर-पूर्व (ईशान) भाग बंद होने पर ईश्वर के आशीर्वाद का प्रवाह उन स्थानों तक नहीं पहुंच पाता। इसके कारण परिवार में तनाव, झगड़े आदि पनपते हैं और परिजनों की उन्नति विशेषकर गृह स्वामी के बच्चों की उन्नति अवरूद्ध हो जाती है। ईशान में शौचालय या अग्नि स्थान होना वित्तीय हानि का प्रमुख कारण है।

  • सुबह जब उठते हैं तो शरीर के एक हिस्से में सबसे अधिक चुंबकीय और विद्युतीय शक्ति होती है, इसलिए शरीर के उस हिस्से का पृथ्वी से स्पर्श करा कर पंच तत्वों की शक्तियों को संतुलित किया जाता है।

  • सबसे पहले उठकर हमें इस ब्रह्मांड के संचालक परमपिता परमेश्वर का कुछ पल ध्यान करना चाहिए। उसके बाद जो स्वर चल रहा है, उसी हिस्से की हथेली को देखें, कुछ देर तक चेहरे का उस हथेली से स्पर्श करें, उसे सहलाएं। उसके बाद जमीन पर आप उसी पैर को पहले रखें, जिसकी तरफ का स्वर चल रहा हो। इससे चेहरे पर चमक सदैव बनी रहेगी।

  • व्यापार में आने वाली बाधाओं और किसी प्रकार के विवाद को निपटाने के लिए घर में क्रिस्टल बॉल एवं पवन घंटियां लटकाएं।

  • घर में टूटे-फूटे बर्तन या टूटी खाट नहीं रखनी चाहिए। टूटे-फूटे बर्तन और टूटी खाट रखने से धन की हानि होती है।

  • घर के वास्तुदोष को दूर करने के लिए उत्तर दिशा में धातु का कछुआ और श्रीयंत्र युक्त पिरामिड स्थापित करना चाहिए, इससे घर में सुख-समृद्धि में वृद्धि होती है।

निष्कर्ष –

हमारी उर्जा के सबसे बड़े स्त्रोत सूर्य की किरणे पूर्व दिशा से ही आती है। यह दिशा मानव सहित अन्य सभी जीवों को जीवनशक्ति प्रदान करती है। आध्यात्मिक रूप से भी हमेशा से ही इस दिशा का विशेष महत्व रहा है। इसीलिए वास्तु शास्त्र में भी इसे एक पवित्र दिशा का दर्जा प्राप्त है। पूर्वाभिमुख घर से अधिकाधिक लाभ प्राप्त करने के लिए इसे वास्तु सम्मत बनाये और इसके लिए किसी वास्तु विशेषज्ञ की सलाह अवश्य ले।

Go Top

Er. Rameshwar Prasad invites you to the Wonderful World of Vastu Shastra

Engineer Rameshwar Prasad

(B.Tech., M.Tech., P.G.D.C.A., P.G.D.M.)

Vaastu International

Style Switcher

Predifined Colors


Layout Mode

Patterns