वास्तु शास्त्र की प्रामाणिकता के सबूत प्रसिद्ध मंदिरों से लेकर शॉपिंग मॉल्स, बड़े शहरों से लेकर महत्वपूर्ण व्यावसायिक भवनों और देश से लेकर विदेशों तक बड़ी संख्या में मिलते है।
वास्तु शास्त्र एक ऐसा प्रामाणिक विज्ञान है जो की खगोल शास्त्र, ज्योतिष शास्त्र और कला का अद्भुत मिश्रण है। वास्तु को भवन निर्माण सम्बन्धी एक प्राचीन रहस्यवादी विज्ञान के रूप में जाना जाता है। जिसकी जड़े सिन्धु सभ्यता के हड़प्पा और मोहनजोदाड़ो तक फैली है।
वास्तु शास्त्र विभिन्न प्राकृतिक उर्जाओं के संतुलन व समन्वय पर आधारित है। जैसे –
वास्तु का उपयोग किसी भी प्रकार के निर्माण के लिए किया जा सकता है चाहे वो कितना ही छोटा हो या की बहुत बड़ा। जैसे – भवन निर्माण, मंदिर निर्माण, औद्योगिक इकाइयों, यहाँ तक की शहर नियोजन जैसे बड़े कार्य भी वास्तु की सहायता से संपन्न किये जाते रहे है।
वास्तु प्रमाणिकता के साक्ष्य
देश–
हम देखते है की दुनिया में कुछ देश है जिनके पास प्राकृतिक संसाधनों का भंडार है (तेल, कॉपर, हीरे, बॉक्साइट, सोना इत्यादि) फिर भी वे पिछड़े है जैसे की अफ्रीका महाद्वीप के देश।
ऐसा अनुमान है की दुनिया में जितने खनिज संसाधन मौजूद है उसका लगभग 30% अफ्रीका महाद्वीप में है लेकिन वो दुनिया का सबसे गरीब महाद्वीप है। वही दूसरी ओर है स्विट्ज़रलैंड, सिंगापुर, बेल्जियम और जापान जैसे देश जिनमे सबसे कम प्राकृतिक संसाधन पाए जाते है लेकिन फिर भी ये दुनिया के सबसे विकसित देशों में शुमार है।
तो क्या वजह है की सबसे ज्यादा प्राकृतिक संसाधनों से संपन्न अफ्रीका महाद्वीप दुनिया का सबसे गरीब महाद्वीप है और स्विट्ज़रलैंड, सिंगापुर, बेल्जियम और जापान जैसे देश प्राकृतिक संसाधनों में सबसे पिछड़े होने के बावजूद दुनिया के विकसित और अमीर देशो में शुमार है।
तो क्या इन देशो के विकास और पिछड़ा होने में वास्तु की भी कोई भूमिका है ? आइये जानते है....
1- चीन-
दुनिया का सबसे विशाल पर्वत हिमालय हमारे पडोसी देश चीन के दक्षिण हिस्से में आता है। जैसा की आपको पहले ही बताया जा चुका है की वास्तु के अनुसार उत्तर और पूर्व दिशा पूरी तरह से खाली रहनी चाहिए वही दक्षिण और पश्चिम दिशा भारी होनी चाहिए। तो हिमालय जहाँ भारत के उत्तर को बेहद भारी करता है जो की नुकसानदायक है वही यह चीन के दक्षिण को भारी करके उसे स्थायित्व और सुरक्षा प्रदान करता है। इसके अलावा चीन का ईशान कोण भी बढ़ा हुआ है (ईशान कोण ही एकमात्र दिशा है जिसका बढ़ा होना शुभ माना जाता है) जो की उसे प्रचुर मात्रा में समृद्धि देता है और पूर्व दिशा में मौजूद पानी उसे स्वस्थ और प्रगतिशील देश बनाता है।
2- जापान –
वास्तु शास्त्र के सबसे महत्वपूर्ण सिद्धांतों में से एक के अनुसार किसी भी तरह के निर्माण के उत्तर या पूर्व में खाली जगह का होना, अपेक्षाकृत गहरा होना, और पानी की मौजूदगी का होना बेहद शुभ माना जाता है, जैसा की जापान के उत्तर में देखने को मिलता है। जापान का पूर्वी हिस्सा बहुत खुला है और इस कारण से जापान के निवासियों को सूरज की किरणों का भरपूर लाभ मिलता है। और जापानियों के समृद्ध और स्वस्थ होने में इसका बड़ा योगदान है। साथ ही ये जापानियों को अध्यात्म की ओर भी ले जाता है।
यहाँ पर कुछ लोगो के तर्क होंगे की जापान की समृद्धि वहाँ के लोगो के कठिन परिश्रम की बदौलत है, निश्चित ही वे सच कह रहे है लेकिन ये अधुरा सच है। क्योंकि इस कठिन परिश्रम के लिए वहाँ के लोगो में सकारात्मक उर्जा का होना आवश्यक है और वे इसे यानि की अपनी सकारात्मक उर्जा को अपनी वास्तु के अनुसार अच्छी भौगोलिक परिस्थिति के कारण हासिल करते है।
हालाँकि ऐसा नहीं है की जापान का वास्तु पूरी तरह से ठीक है क्योंकि जापान के आग्नेय (दक्षिण-पूर्व) और दक्षिण दिशा में भी समंदर है जो की अग्नि का स्थान है, और अग्नि के स्थान पर पानी के होने के कारण आग्नेय कोण का वास्तु ख़राब हो जाता है और परिणामस्वरूप जापान में आये दिन भूकंप और सुनामी के रूप में बड़ी प्राकृतिक आपदाएं देखने को मिलती है। साथ ही इस तरह का वास्तु विदेशी आक्रमण का भी कारण बनता है।
3- अफ्रीका –
अफ्रीका महाद्वीप जहाँ एक और इजिप्ट जैसे देशो के लिए मशहूर है जहाँ महान सभ्यता का जन्म हुआ जिसके बनाये पिरामिड्स आज भी बेहद मशहूर है वही दूसरी ओर इस महाद्वीप में दुनिया के सबसे गरीब देश मौजूद है जहाँ आतंकवाद से लेकर गरीबी और स्वास्थ्य सम्बन्धी अनगिनत समस्याएं मौजूद है। इस विरोधाभास का राज भी काफी हद तक इसके वास्तु में छिपा है।
अगर मिश्र की महान सभ्यता की बात करे तो इसके उत्तर में भूमध्यसागर मौजूद है और इसके पूर्व दिशा में नील नदी बहती है जो कि उत्तर व पूर्व दिशा को वास्तु के अनुसार बहुत शुभ बनाती है। इन्ही कारणों से मिश्र की सभ्यता ने इतना विकास किया और इसके बनाये पिरामिड्स आज 21वी सदी में भी पूरी दुनिया में बड़े आकर्षण का केंद्र है।
वही अगर अफ्रीका के बाकि हिस्से की बात करे तो बेशुमार प्राकृतिक संसाधनों से संपन्न होने, सस्ते मजदूर मिलने के बावजूद वह आखिर गरीबी में क्यों है ? वास्तु के नजरिये से बात करे तो अफ्रीका महाद्वीप का ईशान कोण interjected है, वायव्य कोण बढ़ा हुआ है, आग्नेय कोण और दक्षिण दिशा में समंदर का पानी है और ये सभी स्थितियां वास्तु शास्त्र के अनुसार बेहद अशुभ मानी जाती है। ये कुछ ऐसी प्राकृतिक परिस्थितियां है जिसके कारण अफ्रीका महाद्वीप के देशों को गरीबी से निकलने के लिए बेहद संघर्ष करना पड़ेगा।
4- संयुक्त राज्य अमेरिका –
दुनिया का सबसे शक्तिशाली देश संयुक्त राज्य अमेरिका अपनी भौगोलिक स्थिति के मामले में भी बहुत भाग्यशाली है। गौरतलब है की अमेरिका के पश्चिम में भी पर्वत है और पूर्व में भी लेकिन पश्चिम में स्थित रॉकी पर्वत की ऊंचाई लगभग 13000 फीट है जो की पूर्व में स्थित 3000 फीट ऊँचे अप्लेशियन पर्वत से कही ज्यादा है। परिणामस्वरूप पूर्व पश्चिम से नीचा और हल्का हो जाता है। इसके अलावा इसके उत्तर-पूर्व यानि की ईशान में पानी की मौजूदगी भी इसे वास्तु के अनुरूप बनाती है। अमेरिका के उत्तर-पूर्व में पांच झीले और उत्तर-पूर्व की ओर प्रवाहित होने वाली सेंट लॉरेन्स नदी ने इसे दुनिया के सबसे शक्तिशाली देश के रूप में स्थापित किया है।
5- जर्मनी –
जर्मनी विश्व के सबसे जुझारू लोगो के देशों में से एक है। इस बात का परिचय उसने एक नहीं बल्कि कई बार दिया है। चाहे प्रथम विश्व युद्ध में हुए जबरदस्त नुकसान से उबर के अगले कुछ ही वर्षों में पुनः एक शक्तिशाली देश बन जाना हो, या फिर की द्वितीय विश्व युद्ध की तबाही को पीछे छोड़ आज फिर से दुनिया के पांच सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देशो में शामिल होना हो। अगर जर्मनी के वास्तु पर नजर डाले तो जहाँ जर्मनी के उत्तरी भाग में समतल मैदान है वही इसका दक्षिणी क्षेत्र पर्वतो से घिरा होने के कारण भारी हो जाता है। यह भौगोलिक स्थिति इसे एक सम्रद्ध और वैभवशाली देश बनती है।
निश्चित ही किसी देश का वास्तु उस देश के सभी लोगो के लिए समान रूप से असरदार नहीं होगा। ये ऐसे ही है जैसे की किसी घर का वास्तु उस घर के सभी लोगो पर समान रूप से प्रभाव नहीं डालता है, उसी प्रकार किसी देश का वास्तु भी उस देश के सभी निवासियों पर समान रूप से लागु नहीं होता। लेकिन निश्चित ही उनकी क्षमता पर कम या ज्यादा प्रभाव जरुर डालता है।
शहर -
हिंदुस्तान की तटीय सीमा की लम्बाई 6 हजार किलोमीटर से भी ज्यादा है और इस तटीय सीमा पर कई बड़े शहर अवस्थित है लेकिन इन सब में आखिर मुंबई ही इतना अमीर शहर क्यों है? दरअसल, भारत की औद्योगिक राजधानी और सबसे अमीर शहर के रूप में प्रसिद्ध मुंबई की भौगोलिक अवस्था इसे इतना सम्रद्ध बनती है। वास्तु शास्त्र में सम्रद्धि पाने के लिए कई उपाय मौजूद है, उनमे कुछ प्रमुख है जैसे की – ईशान कोण (उत्तर-पूर्व दिशा) में खाली स्थान या पानी का होना, आग्नेय कोण (दक्षिण-पूर्व) में रसोई या अग्नि से सम्बंधित वस्तुओ का होना. मुंबई का वास्तु इन्ही गुणों को प्रतिबिंबित करता है। जहाँ मुंबई के ईशान कोण में सभी महत्वपूर्ण पीने योग्य पानी की झीले अवस्थित है वही मुंबई के आग्नेय कोण में एटॉमिक प्लांट है जो की अग्नि का प्रतिनिधित्व करता है। इस प्रकार वास्तु के अनुकूल स्थिति मुंबई को इतना समृद्ध बनती है।
लन्दन शहर उस छोटे से देश की राजधानी है जिस छोटे से देश ने इतनी बड़ी दुनिया पर राज किया था। लन्दन शहर आज भी दुनिया के सबसे अमीर शहरों में से एक है। यहाँ स्थित शिक्षण संसथान भी बेहद प्रसिद्ध है और दुनियाभर से प्रतिभावान छात्रों को आकर्षित करते है। लन्दन के वास्तु का अध्ययन करने पर आप पाएंगे की इस शहर में बहने वाली नदी थेम्स नदी शहर के पूर्व दिशा में स्थित है। इस शहर के अधिकांश गार्डन्स उत्तर-पश्चिम और पूर्व दिशा में है। लन्दन के बड़े शिक्षण संस्थान और विश्वविद्यालय उत्तर-पूर्व दिशा (ईशान कोण) में स्थित है। इसके अलावा इंग्लैंड की बाउंड्री उत्तर और पूर्व दिशा की तरफ है जो की वास्तु के लिहाज से एक शुभ दिशा में मौजूद है। यह भौगोलिक परिस्थितियां लन्दन शहर के लिए बहुत अनुकूल साबित हुई है।
महत्वपूर्ण इमारतें –
वास्तु शास्त्र में भवन के चारों ओर रास्ते निकलना बेहद शुभ माना जाता है। यह ना सिर्फ बहुत प्रसिद्धि देता है बल्कि यह बहुत पैसा भी देता है। मुंबई स्टॉक एक्सचेंज एक ऐसी ही इमारत है जिसकी सभी दिशाओं उत्तर, दक्षिण, पूर्व, पश्चिम में रोड निकल रहे है। ऐसी अवस्थिति असीम सम्पन्नता देने वाली होती है।
पूरी दुनिया में प्यार के प्रतीक के रूप में प्रसिद्ध ताजमहल वास्तु के शानदार उदाहरणों में से एक है। मुगल बादशाह शाहजहाँ ने अपनी बेगम मुमताज की याद में यह इमारत बनवाई थी। इस बनाते वक्त इसके वास्तुकार उस्ताद अहमद लाहौरी ने भवन निर्माण के विज्ञान का पूरा ध्यान रखा। आइये जानते है की ताजमहल की प्रसिद्धि के पीछे वास्तु के कौनसे सिद्धांत कार्य कर रहे है –
वास्तु के सबसे महत्वपूर्ण नियमो में से एक का उदाहरण ताजमहल में देखने को मिलता है। ताजमहल के उत्तर दिशा में यमुना नदी पूर्व दिशा की ओर बह रही है। वास्तु के नियम ये कहते है की किसी भवन के उत्तर की दिशा में ढलान, उसका नीचा होना या पानी की मौजूदगी बहुत शुभ रहती है, यह स्थिति निश्चित ही प्रसिद्धि दिलाने में बेहद अहम भूमिका निभाती है।
ताजमहल एक चौकोर भूखंड पर बना है। ताजमहल की इमारत का पूर्व दिशा का एक हिस्सा पश्चिम की तुलना में चार से पांच फीट नीचा है। जो की पश्चिम को भारी करता है और पूर्व को नीचा करता है। यहाँ पर वास्तु के सिद्धांतो का पालन किया गया है।
ताजमहल में जिस तहखाने में मुमताज और शाहजहाँ की वास्तविक कब्रे है वह स्थान ताजमहल के उत्तर दिशा में पड़ता है जो की उत्तर दिशा को और भी नीचा कर देता है। वास्तु का प्रवेश द्वार वास्तु के अनुसार दक्षिण का चौथा द्वार है जो की गृहरक्षिता कहलाता है। इस जगह पर द्वार का होना अपार प्रसिद्धि का कारण बनता है।
हमारे देश की सबसे महत्वपूर्ण संस्था है संसद भवन। यही पर हमारे देश के जनप्रतिनिधि बैठकर देश का भविष्य निर्धारित करते है। लेकिन दुर्भाग्य से हमारी संसद में जनप्रतिनिधि काम करते हुए कम नजर आते है और काम में बाधा डालते हुए ज्यादा। सरकारें बदल जाती है, नेता बदल जाते है, लेकिन फिर भी स्थिति जस की तस रहती है। यह बात भी निश्चित है कि यह स्थिति तब तक नहीं बदलने वाली जब तक की संसद का वास्तु सही नहीं हो जाता। हालाँकि इस संसद का मूलभूत वास्तु ही इतना ख़राब है की इसमें सुधार करने से बेहतर विकल्प होगा किसी बेहतर स्थान पर संसद का निर्माण करना।
दरअसल हमारी संसद वास्तु के सबसे ख़राब उदाहरणों में से एक है। संसद भवन एक ऐसी गोल इमारत है जो की त्रिकोणाकार भूखंड पर स्थित है। त्रिकोनाकर भूखंड पर गोलाकार इमारत अति नकारात्मक वास्तु का नमूना है। क्योंकि त्रिकोणाकार भूखंड जहाँ अग्नि का प्रतिनिधित्व करता है वही गोलाकार इमारत मेटल का प्रतिनिधित्व करती है। यानि कि यहाँ की बनावट ऐसी है जिसमे मेटल यानि की धातु को अग्नि के ऊपर रखा हुआ है। यह सामान्य ज्ञान की बात है की अग्नि की उर्जा मेटल को पिघला देती है। इसके अलावा वास्तु में किसी भवन के अन्दर आठों दिशाओं का होना आवश्यक है लेकिन संसद की गोलाकार बनावट इसकी चार दिशाओ स्वाभाविक रूप से काटती है। जिससे इस भवन में वास्तु दोष पैदा होते है। इन्ही कारणों के चलते संसद भवन में आजादी के 70 साल बाद भी अस्थिरता ही देखने को मिलती है और यह स्थिति आश्चर्यजनक रूप से जब पूर्ण बहुमत की सरकारें आ जाती है तब भी कमोबेश ऐसी की ऐसी ही बनी रहती है।
यह इमारत ब्रिटिशर्स की बनाई हुई थी। वे वास्तु के विज्ञान से अनभिज्ञ नहीं थे, फिर भी उन्होंने ऐसे इमारत आखिर क्यों बनाई ? कुछ लोगो का मानना है की उन्होंने ऐसी इमारत जानबूझकर बनाई थी ताकि आजादी के बाद भी भारत स्थिरता न पा सके और हुआ भी कुछ ऐसा ही। ब्रिटिशर्स वास्तु से अनजान नहीं थे उसका बड़ा उदाहरण पिछली शताब्दी के सबसे चर्चित लीडर्स में से एक खुद ब्रिटेन के प्राइम मिनिस्टर विंस्टन चर्चिल है।
उन्होंने अपने एक प्रसिद्ध वक्तव्य में कहा था की “We shape our buildings thereafter they shape us.” उनके कहने का मूल तात्पर्य था कि पहले हम अपने घरो और भवनों का निर्माण करते है और बाद में वे भवन और उनकी उर्जा हमारे भविष्य का निर्माण करती है। सिर्फ ये कथन ही नहीं बल्कि उस समय ब्रिटिशर्स की बनाई इमारते भी उसकी गवाह थी जो की वास्तु के नियमों पर आधारित थी।
इसके अलावा संसद में और भी कई वास्तु दोष है। जैसे की – स्पीकर जिन पर संसद को समुचित तरीके से संचालित करने का दायित्व होता है उनका मुंह दक्षिण की ओर रहता है जो की वास्तु सम्मत नहीं है और इसका परिणाम देखने को मिलता है कि हमारे संसद के स्पीकर के लिए संसद की कार्यवाही को बिना अवरोध और विरोध के चलाना लगभग असंभव नजर आता है।
संसद का यह खराब वास्तु संसद के सबसे प्रमुख नेता यानि की प्रधानमंत्रियों के लिए बिलकुल भी शुभ नहीं रहा है। अगर आप नजर डाले तो भारत के अब तक जितने भी प्रधानमंत्री हुए है उनमे से अधिकांश के करियर का अंत बड़ा ही दुखद रहा है। या तो हमारे प्रधानमंत्रियों की असमय मृत्यु हुई है या फिर अपमान के साथ उनके करियर का अंत हुआ है हालाँकि इसमें बहुत हद तक दोष उनके स्वयं के निवास स्थानों का भी रहा है। लाल बहादुर शास्त्री, इंदिरा गाँधी या राजीव गाँधी की असमय मृत्यु हो या फिर की वी.पी. सिंह, नरसिम्हा राव, अटल बिहारी वाजपेयी और मनमोहन सिंह के करियर का दुखद अंत हो, संसद भवन में स्थित वास्तु दोष इन परिस्थितियों के लिए जिम्मेदार रहे है।
वास्तु शास्त्र भवन निर्माण का प्राचीनकालीन विज्ञान है जो की ब्रह्माण्ड के नैसर्गिक सिद्धांतों पर आधारित है।
वास्तु शास्त्र वैदिककालीन है। इसके सर्वप्रथम प्रमाण प्राचीन वैदिक ग्रंथो में मिलते है।
दक्षिण भारत में मायन को तो उत्तर भारत में विश्वकर्मा को वास्तु शास्त्र का प्रणेता माना जाता है।
वास्तु शास्त्र का मूल उद्देश्य मानव द्वारा निर्मित भवनों में व्याप्त उर्जाओं का समन्वय प्रकृति की चेतना के साथ स्थापित करना है ताकि वो एक सुखी और शांतिपूर्ण जीवनयापन कर सके।
वास्तु शास्त्र पूर्णत: वैज्ञानिक पद्धति पर आधारित है। इसके सिद्धांत सृष्टि में विद्यमान प्राकृतिक शक्तियों के गहन अध्ययन के पश्चात् लागू किये गए है।
पुराने समय और वर्तमान में एक मूलभूत अंतर अगर कुछ है तो वो है भवनों का स्वरुप। निश्चित ही आज के समय में बनने वाले भवन पहले से सुंदर है परन्तु पहले से कही ज्यादा जटिल भी है। और यही जटिलता तनाव का कारण बनती है। परिणामस्वरूप मानव जाति के इतिहास में मनुष्य इतने तनाव में कभी नहीं रहा है जितना वर्तमान समय में है। ऐसे में वास्तु शास्त्र महत्वपूर्ण हो जाता है जो कि ना सिर्फ तनावमुक्त भवनों का निर्माण करता है बल्कि इसके जरिये समृद्धि के नए मार्ग भी प्रशस्त होते है।
वास्तु के सिद्धांत शत-प्रतिशत विश्वसनीय है। इन नियमो को आप प्रत्येक जगह व्याप्त पायेंगे। इसको आप स्वयं परख सकते है।
नहीं, वास्तु शास्त्र के नियम सभी जगह लागू होते है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता की आप किस धर्म को मानते है।
किसी भी अन्य विज्ञान की तरह वास्तु शास्त्र का विज्ञान भी सभी स्थानों, देशो और सभी व्यक्तियों पर लागू होता है।
वास्तु के अनुसार दस दिशाएं होती है। उत्तर, दक्षिण और पूर्व, पश्चिम से सभी लोग परिचित है। इनके अलावा ईशान, आग्नेय, नैऋत्य और वायव्य दिशाएं भी वास्तु शास्त्र में होती है। दो अन्य दिशाएं उर्ध्व (आकाश) और अधो (पाताल) के रूप में जानी जाती है।
वास्तु शास्त्र दरअसल पंच तत्वों, गुरुत्वाकर्षण उर्जा, सौर उर्जा, विद्युत् चुम्बकीय उर्जा और ब्रह्माण्ड में उपस्थित अन्य प्राकृतिक उर्जाओं और शक्तियों पर आधारित विज्ञान है।
वास्तु शास्त्र के सभी सिद्धांत फ्लैट्स पर भी लागू होते है।
वास्तु शास्त्र के नियमों का उम्र से कोई सम्बन्ध नहीं है। यह सभी को प्रभावित करते है। हालाँकि अधिक संवेदलशील लोगों पर इसका असर तुलनात्मक रूप से अधिक देखने को मिलेगा। इसलिए बच्चे इससे जल्दी तो प्रभावित होते है लेकिन लम्बे समय से उस वास्तु विशेष में रहने के चलते उसका असर व्यस्क लोगो पर अधिक दिखाई देता है।
दो अलग-अलग लेकिन समान वास्तु वाले घरों में रह रहे लोगों को मिलने वाले परिणामों की प्रकृति निश्चित ही समान होगी। हालाँकि दोनों लोगों पर होने वाले प्रभावों की समयावधि अलग-अलग हो सकती है और प्रभावों की मात्रा और तीव्रता में भी अंतर हो सकता है। यह अंतर दोनों की कुंडलियों में स्थित ग्रहों के प्रभाव के कारण उत्पन्न होता है।
ये पंच तत्व है – जल, वायु, अग्नि, पृथ्वी और आकाश।
निश्चित ही जिस भवन में आप किराये से रह रहे है उस भवन की उर्जा का प्रभाव आप पर भी पड़ेगा।
यह कई चीजों पर निर्भर करता है कि एक भवन का वास्तु आप पर असर दिखने में कितना समय लेगा। जैसे कि – आप लम्बे समय तक वास्तु दोषयुक्त घर में रहने के बाद अब वास्तु सम्मत घर में रहने जा रहे है तो चूँकि आप पर वास्तु दोषयुक्त घर की नकारात्मकता का असर लम्बे वक्त तक रहा है तो ऐसे में वास्तु सम्मत घर की सकारात्मक उर्जा से तालमेल स्थापित करने में कुछ वक्त जरुर लगता है। सामान्यतया लगभग 3 महीने की अवधि में असर दिखने लग जाता है।
सम्भावना इस बात की है कि आपके घर के वास्तु की वजह से ही आप घर से बाहर अधिक समय रहते है। निश्चित ही आपके घर का वायव्य कोण का वास्तु आपको घर से बाहर अधिक रख रहा है।
वास्तु दोष से युक्त घर में रहना बिलकुल उचित नहीं है। इससे पहले कि घर में मौजूद वास्तु दोष का प्रभाव आप और आपके परिवार पर बढ़ता जाए, यह जरुरी हो जाता है कि इस सम्बन्ध में दोष निवारण के लिए शीघ्रातिशीघ्र उपाय किये जाए।
सामान्यतया घर का वास्तु पुरुषों और महिलाओं दोनों को ही प्रभावित करता है लेकिन घर में कुछ विशेष दिशाएं और जोन होते है जिनका असर पुरुषों पर अधिक पड़ता है और कुछ दिशाओं और जोन का असर महिलाओं पर अधिक पड़ता है। चूँकि दोनों स्वाभाव से एक दुसरे से अलग भी होते है अतः घर के वास्तु के प्रभाव के प्रति दोनों की प्रतिक्रियाएं भी अलग-अलग होती है।
वास्तु में कुल 8 दिशाएं, 16 जोन, 32 पद और 45 उर्जा क्षेत्र होते है और इन सभी के लिए इनकी विशेषताओं के आधार पर इनमे होने वाले कार्य और कक्ष (बेडरूम, किचन, गेस्ट रूम, वाटर टैंक, इत्यादि ) भी निर्धारित है। जब घर छोटा होता है तो एक कक्ष जिस दिशा के लिए निर्धारित है उसका कक्ष का निर्माण करते वक्त उसकी सीमायें अन्य दिशाओं में भी शामिल हो जाती है तो ऐसे में उसका पूरा लाभ नहीं मिल पाता है। इसलिए यह आवश्यक है कि घर का आकार जितना बड़ा हो उतना बेहतर होगा ताकि प्रत्येक दिशा का उपयोग उसमे निर्धारित कार्य एक लिए ही हो और उसका सम्पूर्ण लाभ मिल सके। इसके अलावा घर और उसमे निर्मित कमरों का आकार या तो वर्गाकार हो या फिर आयताकार हो (आयताकार कक्ष में लम्बाई व चौड़ाई का अनुपात 1:2 से अधिक नहीं होना चाहिए)
छोटे प्लाट में भी वास्तु के अनुसार निर्माण तो किया जा सकता है लेकिन यह पूर्णरूप से वास्तु सम्मत नहीं होगा और इसका कारण इससे पहले वाले सवाल में आपको दिया जा चुका है। बेहतर होगा कि जो कीमत वर्तमान में आप भूखंड खरीदने के लिए अदा कर रहे है उसी कीमत में शहर से कुछ बाहर ही सही लेकिन एक अच्छे वातावरण में बड़े आकार का भूखंड खरीदे। यह आपके लिए अधिक फायदेमंद होगा।
बेहतर होगा कि घर में आप बेसमेंट नहीं बनाये और अगर बनाना आवश्यक हो तो इसका निर्माण उत्तर या उत्तर-पूर्व दिशा में करें। बेसमेंट बनाते वक्त अत्यधिक सावधानी रखी जानी चाहिए क्योंकि गलत बेसमेंट से उत्पन्न वास्तु दोष बेहद गंभीर परिणाम देता है। अतः आपको यह सलाह दी जाती है कि इस सम्बन्ध में आप किसी वास्तु विशेषज्ञ की सहायता लेकर ही निर्माण कार्य करें।
यह थोडा पेचीदा होगा लेकिन आप अपने स्तर पर भी घर के वास्तु को जान सकते है। इसके लिए आप हमारी वेबसाइट secretvastu.com पर उपलब्ध विभिन्न Articles की सहायता ले सकते है। इसमें सबसे पहले आप अपने भूखंड के आकार-प्रकार का निरीक्षण करें और फिर एक-एक करके हर दिशा, उसमे विद्यमान कक्षों और वहाँ पर संपन्न किये जाने वाले कार्यों का परीक्षण करें। हालाँकि अगर आप वहन कर सकते है तो सर्वोत्तम होगा कि आप किसी वास्तु विशेषज्ञ की सलाह ले। वह आपको घर के वास्तु के सम्बन्ध में भी जानकारी देगा और अगर कही दोष है तो उसके लिए उचित उपाय भी आपको सुझाएगा।
यह एक बहुत बड़ा भ्रम है कि दक्षिणमुखी या पश्चिममुखी घर अशुभ होते है। दरअसल हकीकत ये है कि इन्हें भी उतना ही वास्तु सम्मत रूप से निर्मित किया जा सकता है जितना कि अन्य दिशाओं के भूखंडों को। हालाँकि अन्य दिशाओं की अपेक्षा एक दक्षिणमुखी या पश्चिममुखी घर बनाते वक्त गलती होने की और वास्तु दोष रह जाने की आशंका अधिक रहती है ऐसे में इन दिशाओं में स्थित घरों का निर्माण करते वक्त निश्चित ही अतिरिक्त सावधानी रखी जानी चाहिए।
ऐसा बिलकुल नहीं है कि उत्तर और पूर्व मुखी घर ही शुभ होते है। ऐसे घर भी तभी शुभ होंगे जब इनका निर्माण वास्तु सम्मत रूप से किया जाएगा। हालाँकि अन्य दिशाओं की अपेक्षा उत्तर या पूर्वमुखी घर को वास्तु सम्मत बनाना ज्यादा आसान होता है।
अगर आप या आपके घर का कोई सदस्य अति संवेदनशील है तो निश्चित ही उसे नकारात्मक वास्तु वाले घर में तुरंत ही असहज महसूस होगा। किसी भवन में विद्यमान शुभ या अशुभ उर्जा महसूस की जा सकती है बशर्ते आप अपने आसपास के वातावरण के प्रति संवेदनशील हो। गौरतलब है कि बच्चे अपने आसपास के वातावरण को लेकर, इंसानों को लेकर अधिक संवेदनशील होते है। इसलिए आपने देखा होगा कि बच्चे हर व्यक्ति या स्थान के साथ सहज नहीं हो पाते है। ऐसे में बच्चों के व्यव्हार और उनसे मिलने वाली प्रतिक्रियाओं के द्वारा भी किसी स्थान में उपलब्ध शुभ व अशुभ उर्जा का पता लगाया जा सकता है।
ज्योतिष और वास्तु शास्त्र दोनों ही प्रकृति में विद्यमान उर्जाओं के आधार पर जीवन को सुव्यवस्थित और बेहतर बनाने के लिए विकसित विज्ञान है। दोनों ही विज्ञानों में हमारे आसपास उपस्थित नैसर्गिक उर्जाओं का समन्वय सकारात्मक रूप से स्थापित किया जाता है।
सबसे पहले तो यह बात साफ़ कर ले कि कला के नाम पर बनाये जाने वाली ऐसी कोई भी तस्वीर घर में नहीं लगायें जो कि अजीबोगरीब हो, नकारात्मक हो या फिर कि abstract art की श्रेणी में आती हो। इस तरह की तस्वीरें या मूर्तियाँ सिर्फ नकारात्मकता में ही इजाफा करती है। अगर आपको तस्वीर लगानी है तो आप पूर्व में या उत्तर में सुंदर प्राकृतिक दृश्यों, झरनों, नदियों इत्यादि की तस्वीर लगा सकते है, नैऋत्य में सुंदर पहाड़ियों और पर्वतों के प्राकृतिक दृश्य से सम्बंधित तस्वीरें लगा सकते है, नव-विवाहित अपने कक्ष में सुंदर नवजात बच्चों की तस्वीर लगा सकते है।
घर के बीच वाला स्थान ब्रह्मस्थान के रूप में जाना जाता है। यह वास्तु शास्त्र में मर्म स्थान है जहाँ पर किसी प्रकार का भार या गड्ढा एक बहुत गंभीर वास्तु दोष होता है जिसके परिणाम विनाशकारी होते है। अतः किसी भी हालत में ब्रह्मस्थान में निर्माण नहीं कराये। इसे बिलकुल खाली छोड़ दे।
बेडरूम बनाने के लिए तीन दिशाएं सर्वश्रेष्ठ है। मास्टर बेडरूम के लिए नैऋत्य (दक्षिण-पश्चिम) दिशा सर्वोत्तम है तो वही बच्चों के लिए पश्चिम में बेडरूम बनाना लाभकारी होता है। दक्षिण एक और दिशा है जिसमे बेडरूम का निर्माण किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त अतिथियों के लिए वायव्य दिशा में बेडरूम बनाया जा सकता है।
आग्नेय दिशा किचन के निर्माण के लिए सर्वश्रेष्ठ है।
वास्तु शास्त्र में हर दिशा में 8 और कुल मिलाकर 32 पदों की व्यवस्था की गई है। प्रत्येक दिशा में कुछ पद निर्धारित है जिनमे मुख्य द्वार का निर्माण किया जा सकता है।
घर में दीवारों पर किया जाने वाले रंग हमारे विचारों पर गहरा असर डालते है। अतः हर दिशा के लिए वास्तु शास्त्र में अलग-अलग रंग निर्धारित किये गए है जिनके आधार पर ही घर में रंगों की व्यवस्था करी जानी चाहिए।
द्वारों की संख्या सम में ही होनी चाहिए।
यह इस बात पर निर्भर करता है कि वास्तु दोष क्या है ? कुछ मामलों में इसका निवारण भी किया जा सकता है और उस स्थान प्राप्त हो रहे नकारात्मक परिणामों की जगह सकारात्मक परिणाम प्राप्त किये जा सकते है। हालाँकि कुछ मामलों में वास्तु दोष का निवारण तो हो जाता है परन्तु उस दिशा विशेष से प्राकृतिक रूप से प्राप्त होने वाला लाभ नहीं मिल पाता है।
अंडरग्राउंड वाटर टैंक के लिए उत्तर, ईशान या पूर्व दिशा श्रेष्ट होती है वही ओवरहेड वाटरटैंक के लिए पश्चिम और नैऋत्य दिशा (दक्षिण-पश्चिम) सबसे अच्छे विकल्प है।
बिलकुल भी नहीं, वृताकार रूप से निर्मित घर की सभी महत्वपूर्ण दिशाए कट जाती है। इस प्रकार का निर्माण सबसे बड़े वास्तु दोषों में गिना जाता है। इसके परिणाम अत्यंत विनाशकारी होते है। इसलिए किसी भी में ना तो वृताकार भूखंड खरीदे और ना ही इस तरह का निर्माण कराये।
नैऋत्य दिशा में गड्ढा होना या जलाशय की उपस्थिति, ब्रह्मस्थान में भारी निर्माण या गड्ढा और ईशान को भारी कर देना कुछ ऐसे उदाहरण है जो की बड़े वास्तु दोष के रूप में गिने जाते है। इनके प्रभाव असहनीय और विनाशकारी होते है।
पूर्व की तरफ मुंह करके पढना अच्छा होता है। दूसरा अच्छा विकल्प उत्तर की तरफ मुंह करके पढना है।
सोने के लिए दक्षिण दिशा की ओर सिर करना सर्वश्रेष्ठ विकल्प है। लेकिन उत्तर की ओर सिर करके सोना बिलकुल गलत होगा। इस दिशा में सिर करके सोना अनिद्रा, बैचेनी जैसी समस्याएं देगा।
इस दिशा से घर में नकारात्मक उर्जाये प्रविष्ट करती है। अतः बेहतर होगा कि न तो इस दिशा में मुख्य द्वार निर्मित किया जाए और ना ही इस दिशा को अधिक खुला छोड़ा जाए।
रहने के लिए बेसमेंट अच्छा विकल्प नहीं है। पार्किंग या व्यवसायिक गतिविधियों के लिए इसका उपयोग किया जा सकता है।
निश्चित ही प्लाट का आकार वास्तु में अत्यधिक महत्व रखता है। वर्गाकार और आयताकार प्लाट सर्वश्रेष्ठ प्रकार के होते है तो वही त्रिभुजाकार, वृताकार, कटे हुए, अंडाकार प्लाट वास्तु विरुद्ध होते है। अतः प्लाट के चयन में सावधानी रखी जानी चाहिए।
पश्चिमी वायव्य, उत्तरी वायव्य, दक्षिणी आग्नेय व पूर्वी आग्नेय सेप्टिक टैंक के लिए ज्यादा बढ़िया विकल्प है।
सीढ़ियों के नीचे स्टोर रूम बनाया जा सकता है।
Engineer Rameshwar Prasad(B.Tech., M.Tech., P.G.D.C.A., P.G.D.M.) Vaastu International
|