भारतीय ज्योतिष में फलकथन की अनेक पद्धतियां हैं जिनमें लाल किताब पद्धति सर्वाधिक प्रचलित है। इसमें वर्णित सहज सरल उपाय इसकी लोकप्रियता के मुख्य कारण हैं। आज की जीवन शैली में ये उपाय कुछ अजीब तो लगते हैं परंतु उपयोगी व फलदायक हैं।
जीवन में आए या आने वाले कष्टों से मुक्ति के उपायों से युक्त तथा ताम्र वर्ण (लाल रंग) वाले सूर्य देव द्वारा रचित ग्रंथ को लाल किताब नाम दिया गया।
एक घर कुंडली में होता है और दूसरा घर वह जिसमें आप रहते हैं। जिस तरह कुंडली में ग्रह होते हैं उसी तरह आपके घर में भी ग्रह होते हैं। जिस तरह आपके घर में ग्रह होते हैं उसी तरह आपके शरीर को यदि घर माने तो उसमें भी ग्रह होते हैं। इसका मतलब तीन घर हो गए- पहला वह घर जिसे कुंडली कहते हैं या जो आकाश के 360 डिग्री के 12 भागों में विभाजित है। दूसरा वह घर जिसमें आप और आपका परिवार रहता है और तीसरा वह घर जिसे शरीर कहते हैं, क्योंकि आप शरीर में ही तो रहते हैं। अब जानते हैं इन तीनों को सुधारने का तरीका जिससे आपका भविष्य बदल जाएगा।
यहां लाल किताब अनुसार ग्रहों के कुछ सामान्य उपचार बताए जा रहे हैं। आपका जो ग्रह बुरा फल दे रहा है सिर्फ उसी का उपाय करना चाहिए। हालांकि यह कुंडली के किसी जानकार से पूछकर ही करें।
- सूर्य के लिए पिता का सम्मान करें और गुड़, ताम्बा व गेंहू का दान करे। सूर्य को जल चढ़ाएं। सोना धारण करें।
- चन्द्र के लिए माता का सम्मान करें। चावल, दूध और चांदी का दान करे। प्रदोष का व्रत करे। चांदी धारण करें।
- मंगल के लिए भाई का सम्मान करें और सफेद या काला सुरमा आंखों में लगाए। मूंगा या पीतल धारण करें।
- बुध के लिए बहन, बुआ, मौसी, विधवा महिला और कन्याओं का सम्मान करें। नाक छिदवाएं। पन्ना धारण करें।
- गुरु के लिए दादा, धर्म और गुरु का सामान्य करें। माथे पर पिला तिलक लगाएं। पीपल की जड़ में जल चढ़ाएं, चने की दाल का दान करे। पुखराज धारण करें।
- शुक्र के लिए पत्नी का सम्मान करें। अपने भोजन में से गाय को कुछ भाग दें। घी, कर्पुर, दही का दान करें। सुघंधित पदार्थो का प्रयोग करें। हीरा धारण करें।
- शनि के लिए काका, मामा आदि का सम्मान करें। कीकर की दातुन करें। कौवे को रोटी खिलाएं। छाया दान करें। जोड़ लगा हुआ लोहे का छल्ला या नीलम धारण करें।
- राहू के लिए संयुक्त परिवार में रहें। ससुराल से सम्बन्ध न बिगाड़े। जौ को दूध से धोकर बहते पानी में बहाएं। मूली का दान करे या कोयला बहते पानी में बहाएं। गोमेद धारण करें या जेब में चांदी की ठोस गोली रखें।
- केतु के लिए कान छिदवाएं और कुत्ते को रोटी खिलाते रहें। काले और सफेद तिल बहते पानी में बहाएं। तिल, नींबू और केले का दान करें।
कुंडली में ग्रह अच्छे हैं, लेकिन यदि आपके घर का वास्तु अच्छा नहीं है तो अच्छे ग्रह भी अच्छा असर देने वाले साबित हो इसकी गारंटी नहीं। यह भी तय नहीं कि वे बुरा फल देंगे या नहीं। दूसरी ओर अब यदि आपका घर वास्तु अनुसार है तो कुंडली में बैठे बुरे ग्रह बुरा फल देंगे इसकी गारंटी नहीं, लेकिन अच्छे घर से अच्छा फल जरूर मिलेगा। तो यदि संकट हो तो दोनों को ही दुरस्त करें।
- वास्तु अनुसार घर में चार कोण होते हैं - ईशान कोण, नैऋत्य कोण, आग्नेय कोण और वायव्य कोण। चार दिशाएं हैं - पूर्व, पश्चिम, उत्तर और दक्षिण। पूर्व दिशा के स्वामी सूर्य, देवता इंद्र होते हैं। पितृस्थान की प्रतीक यह दिशा खुली होना चाहिए। पश्चिम दिशा के देवता वरूण और ग्रह स्वामी शनि है। यह दिशा भी वास्तु नियमों के अनुसार होना चाहिए। उत्तर दिशा के देवता कुबेर और ग्रह स्वामी बुध है। यह माता का स्थान है। इसी दिशा को खाली रखना जरूरी है। दक्षिणी दिशा काल पुरुष का बायां सीना, किडनी, बाया फेफड़ा, आतें हैं एवं कुंडली का दशम घर है। यम के आधिपत्य एवं मंगल ग्रह के पराक्रम वाली दक्षिण दिशा पृथ्वी तत्व की प्रधानता वाली दिशा है। यह स्थान भी भारी होना चाहिए।
- घर का मुख्य द्वार सिर्फ पूर्व या उत्तर में होना चाहिए। हालांकि वास्तुशास्त्री मानते हैं कि घर का मुख्य द्वार चार में से किसी एक दिशा में हो। वे चार दिशाएं हैं - ईशान, उत्तर, वायव्य और पश्चिम। लेकिन हम यहां सलाह देंगे सिर्फ दो ही दिशाओं में से किसी एक का चयन करें। पूर्व इसलिए कि पूर्व से सूर्य निकलता है और पश्चिम में अस्त होता है। उत्तर इसलिए कि उत्तरी ध्रुव से आने वाली हवाएं अच्छी होती हैं और दक्षिणी ध्रुव से आने वाली हवाएं नहीं। घर को बनाने से पहले हवा, प्रकाश और ध्वनि के आने के रास्तों पर ध्यान देना जरूरी है।
- ईशान कोण जल एवं भगवान शिव का स्थान है और गुरु ग्रह इस दिशा के स्वामी है। ईशान कोण में पूजा घर, मटका, कुआँ, बोरिंग, वाटरटैंक अदि का स्थान बान सकते हैं।
- आग्नेय कोण अग्नि एवं मंगल का स्थान है और शुक्र ग्रह इस दिशा के स्वामी है। आग्नेय कोण को रसोई या इलैक्ट्रॉनिक उपकरण आदि का स्थान बना सकते हैं।
- वायव्य कोण में वायु का स्थान है और इस दिशा के स्वामी ग्रह चंद्र है। वायव्य कोण को खिड़की, उजालदान आदि का स्थान बना सकते हैं।
- नैऋत्य कोण पृथ्वी तत्व का स्थान है और इस दिशा के स्वामी राहु और केतु है। नैऋत्य को ऊंचा और भारी रखना चाहिए।
भूमि का ढाल : सूरज हमारी ऊर्जा का प्रमुख स्रोत है अत: हमारे वास्तु का निर्माण सूरज की परिक्रमा को ध्यान में रखकर होगा तो अत्यंत उपयुक्त रहेगा। सूर्य के बाद चंद्र का असर इस धरती पर होता है तो सूर्य और चंद्र की परिक्रमा के अनुसार ही धरती का मौसम संचालित होता है। उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव धरती के दो केंद्रबिंदु हैं। उत्तरी ध्रुव जहां बर्फ से पूरी तरह ढंका हुआ एक सागर है, जो आर्कटिक सागर कहलाता है वहीं दक्षिणी ध्रुव ठोस धरती वाला ऐसा क्षेत्र है, जो अंटार्कटिका महाद्वीप के नाम से जाना जाता है। ये ध्रुव वर्ष-प्रतिवर्ष घूमते रहते हैं। दक्षिणी ध्रुव उत्तरी ध्रुव से कहीं ज्यादा ठंडा है। यहां मानवों की बस्ती नहीं है। इन ध्रुवों के कारण ही धरती का वातावरण संचालित होता है। उत्तर से दक्षिण की ओर ऊर्जा का खिंचाव होता है। शाम ढलते ही पक्षी उत्तर से दक्षिण की ओर जाते हुए दिखाई देते हैं। अत: पूर्व, उत्तर एवं ईशान की और जमीन का ढाल होना चाहिए।
इसके लिए आयुर्वेद और योग सबसे उत्तम साधना है। कहते हैं कि पहला सुख निरोगी काया। यदि आपका शरीर अस्वस्थ है तो फिर सबकुछ व्यर्थ है। हमारे शरीर पर ग्रहों का असर होता है। कहना चाहिए की शरीर में ग्रहों के स्थान नियुक्त है। यह समझे कि प्रत्येक ग्रह शरीर के भिन्न भिन्न स्थानों पर असर डालता है।
शरीर में मस्तक के बीचोबीच सूर्य का, नेत्रों में मंगल का, जीभ और दांत पर बुध का, वीर्य पर शुक्र का, नाभि पर शनि का, सिर और मुख पर राहु का, कंठ से लेकर हृदय तक एवं पैरों पर केतु का, हृदय पर चंद्र का और रक्त पर मंगल का प्रभाव पड़ता है। इसी तरह यदि हम देखें तो शरीर के भीतर जल पर चंद्र का, वायु पर गुरु का और हड्डी पर शनि का प्रभाव पड़ता है।
इसी तरह हाथों में कनिष्ठा बुध की, अनामिका सूर्य की, मध्यमा शनि की, तर्जनी गुरु की और अंगुठा शुक्र का है। अंगुठे के नीचे का स्थान भी शुक्र का है। अंगुलियों के प्रत्येक पोरे राशियों के स्थान है। इसीलिए शरीर को स्वस्थ रखना जरूरी है कि ग्रहों का आप पर विपरीत असर न हो।
एक और महत्वपूर्ण बात यह कि हम जो भोजन करते हैं उस भोजन में भी ग्रहों का प्रभाव होता है। जैसे दूध में चंद्र का, बेसन में मंगल और हल्दी में गुरु का प्रभाव होता है। इसीलिए हमें क्या खाना चाहिए और क्या नहीं खा चाहिए यह ध्यान देना जरूरी है। हिन्दू शास्त्रों में तिथि अनुसार भोज्य पदार्थों का सेवन या त्याग का वर्णन किया गया है।
लाल किताब के द्वारा आप अपने घर के वास्तु को भी जान सकते हैं। यहाँ लाल किताब की कुंडली के हर भाव से घर के वास्तु पर प्रकाश डाला गया है।
पहला भाव : जन्म कुंडली के पहले भाव का संबंध ड्राइंगरूम (बैठक) से होता है। जहां पर बैठकर हम अन्य व्यक्तियों से बातचीत करते हैं। यदि पहले घर में मंदे ग्रहों का प्रभाव हो तो ऐसे व्यक्ति की बैठक में अवश्य ही वास्तु दोष होता है।
दूसरा भाव : जन्म कुंडली के दूसरे भाव से मकान के बारे में जानकारी प्राप्त होती है। मकान कैसा होगा, उसका आकार-प्रकार एवं विस्तार छोटा होगा या बड़ा, इसका विचार कुंडली के दूसरे भाव से किया जाता है। दूसरे भाव में किसी भी प्रकार के ग्रह दोषों के कारण गृह वास्तु में आकार संबंधी दोष एवं कष्ट उत्पन्न होते हैं।
तीसरा भाव : जन्म कुंडली के तीसरे भाव का संबंध मकान में उपलब्ध सुख-सुविधाओं की वस्तुओं एवं साधनों से होता है। यदि तीसरे भाव में शुभ ग्रह बली स्थिति में हो, तो ऐसे व्यक्ति के पास सुख-ऐश्वर्य के साधन बहुत सुलभ होते हैं। तीसरे भाव का संबंध घर में रखे हुए हथियारों से भी है। यदि घर में टूटे हुए हथियार रखें, तो ऐसे व्यक्ति को तीसरे घर में बैठे शुभ ग्रहों का नेक फल नहीं मिलता है। उसकी सुख-सुविधा के साधनों में कमी आ जाती है। छोटे भाई-बहिनों को परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
चौथा भाव : जन्मकुंडली के चौथे भाव से घर में नल, कुआं, जल का स्रोत, पानी रखने की जगह का विचार किया जाता है। घर में रस भरे फलदार वृक्षें का विचार भी चौथे भाव से किया जाता है। यदि चौथे भाव में पाप ग्रह अशुभ प्रभाव उत्पन्न कर रहे हों, तो ऐसे घरों में रस वाले फल के पौधे नहीं लगाने चाहिए। ऐसे व्यक्ति को पानी, दूध और कपड़े के व्यवसाय में हानि होती है।
पांचवा भाव : जन्म कुंडली में पांचवे भाव का संबंध मकान की पूर्वी दीवार से होता है। उसके साथ बुद्धि, विद्या प्राप्त करने एवं ग्रंथों का अध्ययन करने के स्थान का विचार भी पंचम भाव से किया जाताहै। पंचम भाव की अशुभ स्थिति एवं अशुभ ग्रहों से घर में अध्ययन करने के स्थान में अवश्य ही वास्तु दोष होता है, साथ ही घर में बच्चों का पढ़ाई में मन नहीं लगता है तथा विद्या के मार्ग में बाधाएं आती हैं।
छठा भाव : जन्म कुंडली में छठे भाव का संबंध मकान में बने तहखाने से होता है। छठे भाव में पाप ग्रहों का प्रभाव होने पर घर में तहखाना नहीं होना चाहिए, अन्यथा व्यक्ति निरंतर अवनति की ओर जाता है।
सातवां भाव : जन्म कुंडली में सातवां भाव उस स्थान को प्रदर्शित करता है, जहां पर व्यक्ति का जन्म होता है। जन्म स्थान के शहर या गांव के बारे में भी कुंडली का सातवां भाव बताता है। घर में गूदेदार फल वाले वृक्षों का विचार भी कुंडली के सातवें भाव से किया जाता है।
आठवां भाव : जन्मकुंडली के आठवें भाव से मकान की दक्षिणी दीवार की स्थिति का पता चलता है। मकान के आसपास का वातावरण एवं दवाईयां रखने के स्थान का पता भी इसी भाव से लगाया जाता है। मकान में अग्नि का स्थान व मकान की छत का विचार भी इसी भाव से किया जाता है। ऐसे पौधों एवं वृक्षों जिनमें न फल लगते हों, न फूल लगते हों उनका विचार आठवें भाव से किया जाता है। आठवें भाव में यदि मंदे या अशुभ ग्रहों का प्रभाव हो तो ऐसे मकान के आसपास के वातावरण, छत आदि में अवश्य ही कोई न कोई वास्तु दोष होता है।
नौवां भाव : जन्म कुंडली के नौवें भाव से मकान में पूजा-पाठ के स्थान यानी मकान में मंदिर के बारे में विचार किया जाता है। मकान में बुजुर्ग व्यक्तियों का कमरा कैसा होगा, इस बारे में भी नौवें भाव से ही विचार किया जाता है। नौवां भाव में किसी भी प्रकार के अशुभ ग्रहों का दोष या नौवां भाव की अशुभ स्थिति होने पर मकान कें मंदिर में अवश्य ही कोई न कोई वास्तु दोष होता है।
दशम भाव : जन्मकुंडली के दसवें भाव का संबंध मकान की पश्चिम दिशा से होता है। मकान बनाने में लगे ईंट-पत्थर एवं लकड़ी-लौहे का विचार भी इसी भाव से किया जाता है।
ग्यारहवां : जन्म कुंडली के ग्यारहवें भाव से मकान की बाहरी सजावट और सुंदरता का विचार किया जाता है। यदि ग्यारहवें भाव में शुभ ग्रह स्थित हों, तो ऐसे व्यक्ति का मकान बाहर से देखने में अच्छा लगता है।
बारहवां भाव : जन्मकुंडली के बारहवें भाव से मकान में शयनकक्ष का विचार किया जाता है। पति-पत्नी के शयनकक्ष (बैड-रूम) में संबंध कैसे रहेंगे, व्यक्ति को नींद का सुख कैसा मिलेगा, आदि का विचार बारहवें भाव से ही होता है। बारहवें भाव से आस-पड़ोस के मकानों के संदर्भ में भी विचार किया जाता है। बारहवें भाव में अशुभ ग्रहों के स्थित होने पर पति-पत्नी के बीच में अनबन रहती है तथा व्यक्ति को नींद ठीक से नहीं आती ।
नवग्रहों से सम्बन्धित मकान भी अलग-अलग प्रकार के होते हैं, जिसकी जानकारी इस प्रकार है-
सूर्य का मकान - सूर्य रोशनी के रास्ते बताएगा। मकान का दरवाजा पूर्व की ओर होगा। सहन (घर का खुला भाग) मकान के बीच में होगा। आग के सम्बन्ध सहन में होंगे। हो सकता है कि पानी का सम्बन्ध मकान से बाहर निकलते हुए सहन में ही हो। वह इधर-उधर किसी और जगह नहीं होगा।
चन्द्र का मकान - चन्द्र जमीन व धन-दौलत का स्वामी है और सूर्य से मिलता है। प्रथम तो मकान के अन्दर ही वरना मकान के बाहर की चारदीवारी से लगता हुआ अथवा उस मकान से जातक के अपने 24 कदम दूर कुआँ, हैंडपम्प या तालाब आदि चलता हुआ पानी अवश्य होगा। जमीन के अन्दर से कुदरती पानी चन्द्र होगा। बनावटी नल का चन्द्र नहीं होगा। झरने आदि चन्द्र गिने जाते है।
मंगल नेक का मकान - यह ग्रह बृहस्पति, चन्द्र और सूर्य के साथ चलता है। मगर उनके दाएं या बाएं चौकीदार के समान होगा। मकान का दरवाजा उत्तर दक्षिण में होगा। कच्चे या पक्के होने की शर्त नहीं। स्त्री, पुरुषों एवं जानदारों के आने-जाने की बरकत देगा।
मंगल बद का मकान - मकान का दरवाजा सिर्फ दक्षिण में होगा। मकान के साथ या मकान के ऊपर किसी वृक्ष का साया, आग, हलवाई की दुकान और भट्टी का स्थापन होगा। मकान में या मकान के साथ कब्रिस्तान अथवा शमशान होगा। लावल्दों का साथ होगा। हो सकता है कि खुद ही काना एवं नि:सन्तान हो। अगर किस्मत अच्छी नहीं होगी तो उसे उसमें रहने का मौका भी नहीं मिलेगा।
बुध का मकान - मकान के चारों तरफ खाली या खुला दायरा होगा। वह अकेला ही होगा। चौड़े पत्तों के वृक्षों का साथ होगा। बृहस्पति या चन्द्र के वृक्ष का साथ नही होगा। अगर होगा तो वह बुध की दुमनी का पूरा सबूत देगा। (पीपल एवं बरगद का वृक्ष बृहस्पति; शहतूत चन्द्र तथा लसूड़ा बुध होता है।)
बृहस्पति का मकान - बृहस्पति हवा के रास्तों से सम्बन्धित है। मकान का सहन किसी एक कोने में होगा। चाहे शुरू में या आखिर में अथवा दाएं या बाएं, मगर बीच में नहीं होगा। मकान का दरवाजा उत्तर-दक्षिण में नहीं होगा। हो सकता है कि पीपल का वृक्ष या कोई धर्म स्थान, मन्दिर, गुरुद्वारा आदि मकान में या मकान से बिल्कुल सटा हुआ हो।
शुक्र का मकान - मकान के सम्बन्ध में यह ग्रह सूर्य के विरुद्ध होगा। ड्योढ़ी का शहतीर उत्तर-दक्षिण दिशा में होगा। मकान में कच्चा हिस्सा जरूर होगा। दरवाजे उत्तर-दक्षिण में होंगे। उसका सबूत सफेद कली, चूने का हिस्सा और पलस्तर से होगा।
शनि का मकान - यह ग्रह मकान में चारदीवारी से संबंधित होगा। यह सूर्य के विपरीत चलता है। मकान का बड़ा दरवाजा पश्चिम की ओर होगा। (अन्दर के दरवाजे किसी भी ग्रह में नहीं माने गए हैं।)। मकान की सबसे आखिरी कोठरी जो बाहर से अन्दर को प्रवेश करते वक्त दाई हाथ की ओर हो, पूरी अंधेरी होगी। जिस दिन उसमें रोशनी का प्रबन्ध न हो, उस दिन शनि का फल उत्तम रहेगा। जिस दिन थोड़ी-सी भी सूर्य की रोशनी के आने का प्रबन्ध होगा, सूर्य-शनि का झगड़ा होगा। फलत: वह घर बर्बाद हो जाएगा। मकान में पत्थर गड़ा होगा। पहली दहलीज पुरानी लकड़ी या शीशम, कीकर, बेर, प्लाई आदि की होगी। नए जमाने की लकड़ी आदि की नहीं होगी। छत पर भी पुरानी लकड़ी का साथ आम होगा। हो सकता है कि इस मकान में स्तम्भ या मीनार का साथ हो।
राहु का मकान - (बालिगों से सम्बन्धित बीमारियां, झगड़े, राहु, छत बलाये बद) बाहर से अन्दर जाते समय उस मकान में दाएं हाथ पर कोई गुमनाम गड्ढा होगा। बड़े दरवाजे की दहलीज के बिल्कुल नीचे से मकान का पानी बाहर निकलता होगा। मकान के सामने का पड़ोसी सन्तान रहित होगा या उस मकान में कोई रहता नहीं होगा। मकान की छतें कई बार बदली गई होंगी, पर दीवारें नहीं बदली गई होंगी। मकान के साथ लगती भड़भूजे की भट्टी होगी। कोई कच्चा धुआँ या गंदा पानी जमा करने का गड्ढा साथ होगा।
केतु का मकान - बच्चों से सम्बन्धित केतु खिड़कियाँ-दरवाजे बताएगा। बुरी हवा तीन तरफ खुला एक तरफ कोई मकान होगा। हो सकता है कि उस मकान की तीन तरफें खुली हों। केतु के मकान में नर संतान लडक़े या पोते होंगे। मगर एक ही लडक़ा और एक ही पोता कायम होगा। इस मकान के दो तरफ जाता हुआ रास्ता होगा। साथ का हमसाया मकान कोई न कोई जरूर गिरा होगा या कुत्तों के आने-जाने का खाली मैदान-सा होगा।
पूर्व दिशा - पूर्व दिशा मे कोई भी निर्माण सम्बंधी दोष होने पर व्यक्ति के अपने पिता से संबंध ठीक नही होगे। सरकार से परेशानी, सरकारी नौकरी मे परेशानी, सिरदर्द, नेत्र रोग, हद्धय रोग, चमे रोग, अस्थि रोग, पीलिया, ज्वर, क्षय रोग व मस्तिष्क की दुर्बलता आदि कष्ट हो सकते है।
आग्रेय कोण दिशा - पत्नी सुख मे बाधा, प्रेम मे असफलता, वाहन से कष्ट, श्रृगार के प्रति अरूचि नपुंसकता, हर्निया, मधुमेह, धातु एवं मूत्र सम्बंधी रोग व गर्भाशय रोग आदि कष्ट हो सकते है।
दक्षिण दिशा - क्रोध अधिक आना, भाईयो से सम्बंध ठीक न होना, दुर्घटनाएँ होना, रक्त विकार, कुष्ठ रोग, फोडा फुंसी, उच्च रक्तचाप, बवासीर, चेचक व प्लेग रोग आदि कष्अ हो सकते है।
नैऋत्य कोण दिशा - नाना व दादा से परेशानी, अहंकार हो जाना, त्वचा रोग, कुष्ठ रोग, मस्तिष्क रोग, भूत प्रेत का भय, जादू टोना सं परेशानी, छूत की बिमारी, रक्त विकार, दर्द, चेचक व हैजा सम्बंधी कष्ट हो सकते है।
पश्चिम दिशा - नौकरो से क्लेश, नौकरी में परेशानी, वायु विकार, लकवा, रीड की हड्डी मे कष्ट, भूत-प्रेत भय, चेचक, कैसर, कुष्ठरोग, मिर्गी, नपुंसकता, पैरो मे तकलीफ आदि कष्ट हो सकते है।
वायव्य कोण दिशा - माता से सम्बंध ठीक न होना, मानसिक परेशानियाँ, अनिद्रा, दमा, श्वास रोग, कफ, सर्दी-जुकाम, मूत्र रोग, मानसिक धर्म सम्बंधी रोग, पित्ताशय की पथरी व निमोनिया आदि कष्ट हो सकते है।
उत्तर दिशा - धन नाश होना, विद्याा बुद्धि सम्बंधी परेशानियाँ, वाणी दोष, मामा से सम्बंध ठीक न होना, स्मृति लोप, मिर्गी, गले के रोग, नाक का रोग, उन्माद, मति भ्रम, व्यवसाय में हानि, शंकालु व अरिूथर विचार आदि कष्ट हो सकते है।
ईशान कोण दिशा- पूजा मे मन न लगना, देवताओ, गुरूओ औश्र ब्राह्मणो पर आस्था न रहना, आय मे कमी, संचित धन मे कमी, विवाह मे देरी, संतान मे देरी, मूर्छा, उदर विकार, कान का रोग, गठिया, कब्ज, अनिद्रा आदि कष्ट हो सकते है।
निर्माण वास्तु सम्मत होने पर भी कई बार व्यक्ति को कष्ट होता है तो उस स्थिति मे यह पाया जाता है कि व्यक्ति उस घर का प्रयोग सही तरह से नही कर रहा होता। जैसे- गलत दिशा मे सिर करके सोना, गलत दिशा की ओर मुँह करके कार्य करना, गलत कमरे मे कार्य करना, किसी दिशा विशेष मे उसके शत्रु ग्रहो से सम्बंधित सामान रखना, गलत दिशा मे धन रखना, गलत दिशा मे पूजा करना आदि। इन प्रयोग सम्बंधी दोषो के भी कई बार बहुत भयंकर परिणाम देखने मे आये है।
प्रयोग सम्बंधी दोष व कष्ट
१. पश्चिम की ओर सिर करके सोना - बुरे स्वप्र आना
२. उत्तर की ओर सिर करके सोना - वायु विकार, वहम, धननाश, मृत्यु तुल्य कष्ट
३. दक्षिण की ओर मुख करके खाना बनाना - मान हानि, अनेकानेक संकट
४. दंपति का ईशान कोण मे सोना - भंयकर रोग कारक
५. ईशान कोण मे रसोई बनाना - ऐश्वर्यनाशक
६. आग्रेय कोण मे धन रखना - धननाशक, महामारी कारक
७. ईशान कोण मे अलमारी - दरिद्रता कारक
८. पूर्व, उत्तर और ईशान मे पहाडो के चित्र - धन नाशक
९. ईशान मे तुलसी वन - स्त्री के लिए रोगकारी
१०. खिडकी या दरवाजे की ओर पीठ करके बैठना - धोखा व झगडा
११. पूर्व दिशा मे कूडा करकट, पत्थर व मिट्टी के टीले - धन और संतान की हानि
१२. पश्चिम दिशा मे आग जलाना - बवासीर व पित्तकारक
१३. उत्तर दिशा मे गोबर का ढेर - आर्थिक हानि
१४. दक्षिण दिशा मे लोहे का कबाड - शत्रु भय व रोग कारक
१५. ईशान कोण मे कूडा करकट - पूजा मे मन न लगना, दुश्चरित्रता बढना
१६. आग्रेय कोण मे रसोई घर की दीवार टूटी फूटी होना - स्त्री को कष्ट, जीवन संघर्षपूर्ण
१७. नैऋत्य कोण मे आग जलाना - कलह वायु विकार कारक
१८. वायव्य कोण मे शयन कक्ष - सर्दी जुकाम, आर्थिक तंगी, कर्जा
१९. पूजा घर मे आपके हाथ से बडी मूर्तियां - संतान को कष्ट
२०. पश्चिम की ओर मुख करके खाना - रोग कारक
२१. बंद घडियाँ - प्रगति रूकावट
२२. वायव्य मे अध्ययन कक्ष - पढाई मे मन न लगना, अध्ययन मे रूकावटे
२३. नैऋत्य मे मेहमानो को ठहराना - मेहमानो से कष्ट, मेहमानो का टिके रहना, खर्च वृद्धि
२४. वायव्य मे नौकरो को बैठाना - नौकरो का न टिकना
लग्न -
द्वितीय भाव -
तृतीय भाव -
चतुर्थ भाव -
पंचम भाव -
षष्ठ भाव -
सप्तम भाव -
अष्टम भाव -
नवम भाव -
दशम भाव -
एकादश भाव -
द्वादश भाव –
सामान्य उपचार सब भावों के लिये
हम हमेशा कोशिश करते है कि हमारा घर या भवन शत-प्रतिशत वास्तु शास्त्र के अनुसार बने, और इसके लिए हम भरपूर प्रयत्न भी करते हैं, लेकिन देखने में आता है कि इतनी सारी कोशिश करने के बावजूद घर के सभी भाग समान रूप से सुन्दर या वास्तु के अनुरूप नहीं बन पाते हैं। कहीं ना कहीं हमें वास्तु से समझोता करना पड़ता है, कभी शयन कक्ष सुन्दर होता है तो भोजन कक्ष बेकार होता है, कभी अतिथि कक्ष भव्य होता है तो रसोई रूचि अनुसार नहीं बन पाती है, बालकनी की तरह बिखरी होती है। स्नान घर में कमी हो जाती है। यह सब यूं ही नहीं होता है इसके पीछे ग्रहों का खेल है आइये जाने व समझे कि ऐसा क्यों होता है तथा इसका उपाय क्या है ……
वास्तु का ज्योतिष से गहरा रिश्ता है। ज्योतिष शास्त्र का मानना है कि मनुष्य के जीवन पर नवग्रहों का पूरा प्रभाव होता है। वास्तु शास्त्र में इन ग्रहों की स्थितियों का पूरा ध्यान रखा जाता है। वास्तु के सिद्धांतों के अनुसार भवन का निर्माण कराकर आप उत्तरी ध्रुव से चलने वाली चुम्बकीय ऊर्जा, सूर्य के प्रकाश में मोजूद अल्ट्रा वायलेट रेज और इन्फ्रारेड रेज, गुरुत्वाकर्षण – शक्ति तथा अनेक अदृश्य ब्रह्मांडीय तत्व जो मनुष्य को प्रभावित करते है के शुभ परिणाम प्राप्त कर सकते है और अनिष्टकारी प्रभावों से अपनी रक्षा भी कर सकते है। वास्तु शास्त्र में दिशाओं का सबसे अधिक महत्व है। सम्पूर्ण वास्तु शास्त्र दिशाओं पर ही निर्भर होता है। क्योंकि वास्तु की दृष्टि में हर दिशा का अपना एक अलग ही महत्व है।
आज किसी भी भवन निर्माण में वास्तुशास्त्री की पहली भूमिका होती है, क्योंकि लोगों में अपने घर या कार्यालय को वास्तु के अनुसार बनाने की सोच बढ़ रही है। यही वजह है कि पिछले करीब एक दशक से वास्तुशास्त्री की मांग में तेजी से इजाफा हुआ है।
वास्तु और ज्योतिष में अत्यंत घनिष्ठ संबंध है। एक तरह से दोनों एक सिक्के के दो पहलू हैं। दोनों के बीच के इस संबंध को समझने के लिए वास्तु चक्र और ज्योतिष को जानना आवश्यक है। किसी जातक की जन्मकुंडली के विश्लेषण में उसके भवन या घर का वास्तु सहायक हो सकता है। उसी प्रकार किसी व्यक्ति के घर के वास्तु के विश्लेषण में उसकी जन्मकुंडली सहायक हो सकती है। वास्तु शास्त्र एक विलक्षण शास्त्र है। इसके 81 पदों में 45 देवताओं का समावेश है। इसी प्रकार, जन्मकुंडली में 12 भाव और 9 ग्रह होते हैं।
बिना ज्योतिष ज्ञान के वास्तु का प्रयोग अधूरा होता है। इसलिए वास्तु शास्त्र का उपयोग करने से पूर्व ज्योतिष को भी ध्यान में रखना अत्यंत आवश्यक होता है। वास्तु में ज्योतिष का विशेष स्थान इसलिए है क्योंकि ज्योतिष के अभाव में ग्रहों के प्रकोप से हम बच नहीं सकते है, एक तरह से वास्तु और ज्योतिष का चोली-दामन का साथ है। हमारें ग्रहों की स्थिति क्या है, हमें उनके प्रकोप से बचने के लिए क्या उपाय करने चाहिए, हमारा पहनावा, आभूषण, घर की दीवारों, वाहन, दरवाजे आदि का आकार और रंग कैसा होना चाहिए इसका ज्ञान हमें ज्योतिष तथा वास्तु के द्वारा ही हो सकता है। वास्तु से मतलब सिर्फ घर या ब्य्हावन से ही नहीं बल्कि मनुष्य की सम्पूर्ण जीवन शैली से भी होता है, हमें कैसे रहना चाहिए, किस दिशा में सिर करके सोना चाहिए, किस दिशा में बैठ कर खाना खाना चाहिए आदि आदि बहुत से प्रश्नों का ज्ञान होता है। यदि कोई परेशानी है तो उससमस्या का समाधान भी हम वास्तु और ज्योतिष के संयोग से जान सकते है।
भवन में प्रकाश कि स्थिति प्रथम भाव अर्थात लग्न से समझना चाहिए यदि आपके घर में प्रकाश की स्थिति खराब है तो समझे कि मंगल की स्थिति शुभ नहीं है इसके लिए आप मंगल का उपाय करें प्रत्येक मंगलवार श्री हनुमान जी की प्रतिमा को भोग लगा कर सभी को प्रसाद दें। और श्री हनुमान चालीसा का पाठ करने से भी प्रथम भाव के समत दोष समाप्त हो जाते है।
आपके घर या भवन में हवा की स्थिति संतोषजनक नहीं है या आपका घर यदि हवादार नहीं है तो समझना चाहिए कि हमारा शुक्र ग्रह पीड़ित है और इसका विचार दूसरे भाव से होता है। उपाय के लिए आप चावल और कपूर किसी योग्य ब्राह्मण को दान दें। और शुक्र ग्रह की शान्ति विद्वान ज्योतिषी की सलाह अनुसार करें तो आपको लाभ होगा और आपका बैंक के कोष की भी वृद्धि होने लगेगी।
वास्तु चक्र में ठीक ऊपर उत्तर दिशा होती है जबकि जन्मकुंडली में पूर्व दिशा पड़ने वाले विकर्ण वास्तु पुरुष के अंगों को कष्ट पहंचाते हैं। वास्तु पुरुष के अनुसार पूर्व एवं उत्तर दिशा अगम सदृश्य और दक्षिण और पश्चिम दिशा अंत सदृश्य है। ज्योतिष के अनुसार पूर्व दिशा में सूर्य एवं उत्तर दिशा में बृहस्पति कारक है। पश्चिम में शनि और दक्षिण में मंगल की प्रबलता है। जयोतिष के अनुसार भाव 6, 8 और 12 अशुभ हैं। इन भावों का संबंध शुभ भावों से होने पर दोष उत्पन्न हो जाता है। जैसे यदि सप्तमेश षष्ठ भाव में हो, तो पश्चिम दिशा में, अष्टमेश पंचम में हो, तो नैरित्य (दक्षिण-पश्चिम) में, दशमेश षष्ठ में हो, तो दोष देगा। ग्रहण योग (राहु-केतु) की स्थिति उस दिशा से संबंधित दोष पैदा करेगी।
इसी प्रकार लग्नेश व लग्न में नीच राशि का पीड़ित होना पूर्व दिशा में दोष का सूचक है। आग्नेय (एकादश-द्वादश) में पापग्रह, षष्ठेश या अष्टमेश के होने से ईशान कोण में दोष होता है। लग्नेश का पंचम में होना वायव्य में दोष का द्योतक है। यदि कोई भावेश पंचम या षष्ठ (वायव्य) में हो, तो उस भाव संबंधी स्थान में महादोष उत्पन्न होता है। ग्रह की प्रकृति, उसकी मित्र एवं शत्रु राशि तथा उसकी अंशात्मक शुद्धि के विश्लेषण से जातक के जीवन में घटने वाली खास घटनाओं का अनुमान लगाया जा सकता है।
घर में अग्नि का सम्बन्ध तो छठे भाव से जाना जाता है और रसोई इसका कारक है। घर में यदि सदस्यों का स्वास्थ्य ठीक नहीं है तो इसकी स्थिति सुधारें। इस दोष को दूर करने के लिए आप धनिया (साबुत) लेकर किसी भी कपड़े में बाँध कर रसोई के किसी भी भाग में टांग देंगे तो लाभ होना आरम्भ हो जाएगा।
अगर आपके घर में जल का संकट है या पानी की तंगी रहती है, या माता से सम्बन्ध अच्छे नहीं है अथवा आपका वाहन प्रतिदिन खराब रहने लगता है, या आप अपनी पारिवारिक संपत्ति के लिए परेशान है, तो आप समझ लीजिए कि चतुर्थ भाव दूषित है। इस दोष से मुक्ति पाने के लिए आप चावल की खीर सोमवार के दिन प्रातः अवश्य बनाएँ और अपने परिवार सहित इसका सेवन करें यदि इसी समय कोई अतिथि आ जाए तो बहुत अच्छा शगुन है उसे भी यह खीर खिलायंगे तो अति शुभ फल शीघ्र आपको प्राप्त होगा।
यदि आपकी संतान आज्ञाकारी नहीं है या संतान सुख आपको प्राप्त नहीं हो पा रहा है तो आपका पंचम भाव दूषित हो राह है जो कि आपके घर या भवन का प्रवेश द्वार है, प्रवेश द्वार में टॉयलेट या सीवर अवश्य होगा और उत्तर दिशा दूषित है। इसको सुधारें और सूर्य यंत्र या ताम्बा प्रवेश द्वार पर स्थापित करने से आपको लाभ प्राप्त होगा।
यदि घर में तुलसी के पौधे फलते फूलते नहीं है या घर में लगे पौधे फल या फूल नहीं दे रहें है और पति–पत्नी के मध्य बिना बात के कलह होती है तो छठा भाव दूषित है। इसके लिए आप गमलों में सफेद चावल और कपूर रख कर उसके ऊपर मिटटी छिड़क दे तो आप भी प्रसन्न और पौधे भी फलने फूलने लगेंगे तथा परिवार में सद्भावना का वातावरण बन जाएगा।
यदि परिवार में कोई अति गंभीर रोग का आगमन हो चुका है तो समझो कि कुंडली का आठवाँ भाव खराब हो रहा है। इसके लिए आप घर में पुराने गुड का प्रयोग आरम्भ कर दें तो रोग नियंत्रित होने लगेगा।
जब से आपने नया मकान या भवन लिया है या बनवाया है तब से भाग्य साथ नहीं दे रहा है तो समझो कि नवम भाव में दोष आ गया है। इसकी शान्ति के लिए आप पीले रंग को पर्दों में प्रयोग करे। सारे घर में हल्दी के छींटे मारे और साथ ही अपने गुरु को पीले वस्त्र दान करे तथा घर के बुजुर्गो को मां सम्मान प्रदान करे। इससे भाग्य सम्बन्धी बाधा दूर होती जायेगी।
व्यवसाय में गिरावट, पारिवारिक सदस्यों में गुस्सा बढ़ना, या चिडचिडा स्वभाव बन जाना, रोज़गार छूट जाना एवं आर्थिक तंगी हो जाए तो समझो कि दशम भाव दूषित हो गया है, इस दोष को दूर करने के लिए आप तेल का दान करें, पीपल के नीचे तेल का दीपक जलाएं, काले उडद की डाल का प्रयोग करें तो आशातीत लाभ होने लगेगा।
गोचरीय ग्रहों के प्रभाव के विश्लेषण से भी वास्तु दोषों का आकलन किया जा सकता है। जैसे मेष लग्न वालों के लिए दशमेश तथा षष्ठेश भाव गोचरीय हैं। शनि अपनी मित्र राशि में गोचरीय है, इसलिए जातक के दशम भाव से संबंधित दिशा में दोष होगा। इस योग के कारण पिता को कष्ट अथवा जातक के पितृ सुख में कमी संभव है, क्योंकि दशम भाव पिता का भाव होता है। उक्त परिणाम तब अधिक आएंगे जब गोचरीय व जन्मकालिक महादशाएं भी प्रतिकूल हों। जन्मकुंडली सबसे बलवान ग्रह शुभ भाव केंद्र व त्रिकोण में शुभ स्थिति में हो, तो वह दिशा जातक को श्रेष्ठ परिणाम देने वाली होगी। वास्तु सिद्धांत के अनुसार संपूर्ण भूखंड 81 पदों में विभाजित होता है।
वास्तु चक्र में स्थापित देवता अलग-अलग प्रवत्ति और अपने प्रभाव के अनुसार शुभाशुभ फल प्रदान करते हैं। वास्तु देवता वास्तु चक्र में उलटे लेटे मनुष्य के समान हैं, जिनका मुख ईशान में, दोनों टांगें व हाथ पेट में धंसे हुए और पूंछ निकलकर मुंह में घुसी हुई है। किसी बीम, खंभा, द्वार, दीवार आदि से जो अंग पीड़ित होगा वही दूसरी ओर उसी अंग में गृह स्वामी को पीड़ा होगी। इसी भांति षष्टम हानि-महामर्म स्थान-सिर, मुख, हृदय, दोनों वक्ष, नीच को वेध रहित रखा जाता है।
भूखंड पर वास्तु शास्त्र के अनुसार बाहरी 32 पदों में 32 देवता विराजमान होते हैं जहां पर मुख्य द्वार का निर्माण किया जाता है। अन्य 13 देवता 32 पदों के अंदर की ओर होते हैं, जिनमें 4 देवता 6 पदीय तथा एक देवता ब्रह्मा 9 पदीय देवता हैं। प्रत्येक देवता अपनी प्रकृति के अनुसार शुभाशुभ परिणाम देते हैं। शुभ देवता के समीप आसुरी शक्ति संबंधी कार्य किए जाएं तो वह पीड़ित होकर अशुभ परिणाम देते हैं।
पुत्री के विवाह में कठिनाइयां आ रही है, या रिश्तेदारों से मनमुटाव, आमदनी में गिरावट, नौकरी का बार बार छूटना, उन्नति का ना होना, घर की बरकत समाप्त होना अथवा दामाद से कलह यह सब एकादश भाव के दूषित होने का परिणाम होता है। इसको दूर करने के लिए आप तांबे का पैसा दान करें तथा एक लोहे का सिक्का शमशान में फेंके तो पर्याप्त लाभ होगा। पुत्री से छाया दान करवाए तो शीघ्र विवाह का योग बन जाएगा।
पहले आप जहां रहते थे वहां के पडौसी अच्छे हो अब पडौसी झगडा करते है मिलनसार नहीं है, ऐसे दोष बारहवें भाव के खराब होने से होते है मित्र धन लेकर मुकर जाए या धन डूब रहा हो तो अपना बारहवां भाव को दोष से मुक्त करें इस दोष की शान्ति के लिए आप गंगा स्नान करें और वहां से कोई धार्मिक ग्रन्थ खरीदकर घर लाएं उसे सम्मानपूर्वक घर में रखे तो परिवर्तन स्पष्ट नजर आएगा। महाभारत का ग्रन्थ भूल कर भी घर में ना ले कर आना चाहिए।
आजकल भवन केवल प्राकृतिक आपदाओं से बचने का साधन मात्र नहीं, बल्कि वे आनंद, शांति, सुख-सुविधाओं और शारीरिक तथा मानसिक कष्ट से मुक्ति का साधन भी माने जाते हैं। पर यह तभी संभव होता है, जब हमारा घर या व्यवसाय का स्थान प्रकृति के अनुकूल हो। भवन निर्माण की इस अनुकूलता के लिए ही हम वास्तुशास्त्र का प्रयोग करते हैं।
इमारत, फार्म हाउस, मंदिर, मल्टीप्लेक्स मॉल, छोटा-बड़ा घर, भवन, दुकान कुछ भी हो, उसका वास्तु के अनुसार बना होना जरूरी है, क्योंकि आजकल सभी सुख-शांति और शारीरिक कष्टों से छुटकारा चाहते हैं। इस सबके लिए किस दिशा या कौन से कोण में क्या होना चाहिए, इस तरह के विचार की जरूरत पड़ती है और यह विचार ही वास्तु विचार कहलाता है। किसी भी भवन निर्माण में वास्तुशास्त्री की पहली भूमिका होती है।
वास्तु दोष व्यक्ति को गलत मार्ग की ओर अग्रसर भी करते है। आपके घर का वास्तु ठीक नहीं है, तो आपकी संतान बेटा हो या बेटी हो वह अपना रास्ता भटक सकती है और गलत फैसले लेकर अपना जीवन तबाह भी कर सकती है यहां तक कि घर से भाग जाने का साहस भी कर सकती है। वास्तु दोष सबसे पहले मन और दिल को प्रभावित कर बुद्धि को भ्रष्ट कर देते है।
सम्पूर्ण वास्तु शास्त्र दिशाओं पर ही निर्भर होता है. क्योंकि वास्तु की दृष्टि में हर दिशा का अपना एक अलग ही महत्व है।
पूर्व-दिशा:- पूर्व की दिशा सूर्य प्रधान होती है। सूर्य का महत्व सभी देशो में है। पूर्व सूर्य के उगने की दिशा है। सूर्य पूर्व दिशा के स्वामी है। यही वजह है कि पूर्व दिशा ज्ञान, प्रकाश, आध्यात्म की प्राप्ति में व्यक्ति की मदद करती है। पूर्व दिशा पिता का स्थान भी होता है। पूर्व दिशा बंद, दबी, ढकी होने पर गृहस्वामी कष्टों से घिर जाता है। वास्तु शास्त्र में इन्ही बातो को दृष्टि में रख कर पूर्व दिशा को खुला छोड़ने की सलाह दी गयी है।
पश्चिम-दिशा:- यह वरुण का स्थान है। सफलता, यश और भव्यता का आधार यह दिशा है। इस दिशा के ग्रह शनि है। लक्ष्मी से सम्बंधित पूजा पश्चिम की तरफ मुंह करके भी की जाती है।
उत्तर-दिशा:- यह दिशा मातृ स्थान और कुबेर की दिशा है। इस दिशा का स्वामी बुध ग्रह है। उत्तर में खाली स्थान ना होने पर माता को कष्ट आने की संभावना बढ़ जाती है।
दक्षिण-दिशा:- दक्षिण-दिशा यम की दिशा मानी गयी है। यम बुराइयों का नाश करने वाला देव है और पापों से छुटकारा दिलाता है। पितर इसी दिशा में वास करते है। यह दिशा सुख समृद्धि और अन्न का स्रोत है। यह दिशा दूषित होने पर गृहस्वामी का विकास रुक जाता है। दक्षिण दिशा का ग्रह मंगल है और मंगल एक बहुत ही महत्वपूर्ण ग्रह है।
उत्तर-पूर्व दिशा:- यह सोम और शिव का स्थान होता है। यह दिशा धन, स्वास्थ्य औए एश्वर्य देने वाली है। यह दिशा वंश में वृद्धि कर उसे स्थायित्व प्रदान करती है। यह दिशा पुरुष व पुत्र संतान को भी उत्तम स्वास्थ्य प्रदान करती है। और धन प्राप्ति का स्रोत है। इसकी पवित्रता का हमेशा ध्यान रखना चाहिए।
उत्तर-पश्चिम दिशा:- यह वायुदेव की दिशा है। वायुदेव शक्ति, प्राण, स्वास्थ्य प्रदान करते है। यह दिशा मित्रता और शत्रुता का आधार है। इस दिशा का स्वामी ग्रह चंद्रमा है।
दक्षिण-पूर्व की दिशा:- इस दिशा के अधिपति अग्नि देवता है। अग्निदेव व्यक्ति के व्यक्तित्व को तेजस्वी, सुंदर और आकर्षक बनाते है। जीवन में सभी सुख प्रदान करते है। जीवन में खुशी और स्वास्थ्य के लिए इस दिशा में ही आग, भोजन पकाने तथा भोजन से सम्बंधित कार्य करना चाहिए। इस दिशा के अधिष्ठाता शुक्र ग्रह है।
दक्षिण-पश्चिम दिशा:- यह दिशा मृत्यु की है। यहां पिशाच का वास होता है। इस दिशा का ग्रह राहू है। इस दिशा में दोष होने पर परिवार में असमय मौत की आशंका बनी रहती है।
इस प्रकार सभी दिशाओं के स्वामी अलग अलग ग्रह होते है और उनका जीवन में अलग अलग प्रभाव उनकी स्थिति के अनुसार मनुष्य के जीवन में पडता रहता है।
नोट :
1. लाल किताब के सभी उपाय दिन में ही करने चाहिए। अर्थात सूरज उगने के बाद व सूरज डूबने से पहले।
2. सच्चाई व शुद्ध भोजन पर विशेष ध्यान देना चाहिए।
3. किसी भी उपाय के बीच मांस, मदिरा, झूठे वचन, परस्त्री गमन की विशेष मनाही है।
4. सभी उपाय पूरे विश्वास व श्रद्धा से करें, लाभ अवश्य होगा।
5. एक दिन में एक ही उपाय करना चाहिए। यदि एक से ज्यादा उपाय करने हों तो छोटा उपाय पहले करें। एक उपाय के दौरान दूसरे उपाय का कोई सामान भी घर में न रखें।
6. जो भी उपाय शुरू करें तो उसे पूरा अवश्य करें। अधूरा न छोडें।
Engineer Rameshwar Prasad(B.Tech., M.Tech., P.G.D.C.A., P.G.D.M.) Vaastu International
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