A Multi Disciplinary Approach To Vaastu Energy

KP Astrology

कृष्णमूर्ति पद्धति ज्योतिष (KP Astrology in Hindi)

कृष्णमूर्ति पद्धति एवं ग्रह (Krishnamurthy System and Planets)

कृष्णमूर्ति पद्वति और सूर्य की विशेषताएं - Sun As per KP System

सूर्य को सभी ग्रहों (planets) में राजा का स्थान दिया गया है। सूर्य का स्वभाव कठोर तथा क्रूर भी कहा गया है। यह ग्रह सभी को प्रकाश देता है। सूर्य को अधिकार व सत्ता का मुख्य ग्रह माना जाता है। सत्ता व अधिकारों का प्रयोग करने वाले व्यक्तियों पर सूर्य का विशेष प्रभाव होता है। सूर्य को शरीर में आत्मा व चेतना का स्थान दिया गया है।

शरीर में उर्जा निर्माण तथा रोगों से लड़ने की शक्ति के लिये सूर्य को विशेष रुप से देखा जाता है। सूर्य आत्मकारक होने के कारण हृदय में निवास करते है। सूर्य सभी ग्रहों में राजा होने के कारण उसमें प्रशासनिक कार्यो (administrative acts) को करने की विशेष योग्यता होती है। इसलिये जिन व्यक्तियों की कुण्डली में सूर्य सुस्थिर हो उन व्यक्तियों को प्रबन्धन व प्रशासन के कार्य करने में कुशलता प्राप्त होती है। सूर्य से प्रभावित लोग अधिकार व शक्ति रखना पसन्द करते है।

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सूर्य का स्थान शरीर के अंगों में :- ( Placement of Sun in the Different Organs of Body)

शरीर के अंगों में सूर्य को हृदय के बाद रीढ की हड्डी का स्थान दिया गया है। शरीर में उर्जा शक्ति का निर्माण करने के लिये सूर्य देव ही प्रभावी होते है। व्यक्ति को रोगों से लड़ने की क्षमता भी सूर्य के फलस्वरुप ही प्राप्त होती है। दाई आंखों (right eye) में किसी प्रकार की परेशानी के विषय में भी सूर्य को ही देखा जाता है।

सूर्य का स्वभाव:-(Nature of Sun)

सूर्य स्वभाव से अधिकार पसंद प्रवृति के है। इनमें नेतृत्व की क्षमता (leadership) विशेष रुप से पाई जाती है। सूर्य को नैतिक नियमों का सख्ती से पालन करने वाला कहा जाता है। सूर्य को अनुशासन प्रिय भी माना जाता है। जिन व्यक्तियों की कुण्डली के लग्न भाव में सूर्य स्थित होता है। उनमें अनुशासन (discipline) की भावना सामान्य रुप से पाई जाती है। सूर्य के प्रभाव क्षेत्र में रहने वाले व्यक्ति खुशमिजाज होते है। सूर्य उर्जा शक्ति का कारक होने के कारण बिजली पर सूर्य का अधिकार होता है।

सूर्य प्रभावित व्यक्ति नाराज भी होते हैं तो होने के बाद गलतियों को माफ भी कर देते है। ऎसे व्यक्ति मर्यादा में रहकर काम करना पसन्द करते है। इनके काम में लगनशीलता (dedication) की झलक देखी जा सकती है। ये निडर भी होते हैं। इसलिये, सत्य के साथ चलना पसंद करते हैं। सूर्य को न्याय करने वाले शासक के रुप में देखा जाता है। अपने स्वभाव के विपरीत विषयों पर कभी-कभी कठोरता का भाव भी अपना लेते है।

सूर्य क्योकि सभी ग्रहों में राजा है। इसलिये इससे प्रभावित व्यक्तियों को उच्च पद की चाह सदैव रहती है। सूर्य पर अशुभ प्रभाव हो तो अधिकारों का दुरुपयोग होने की संभावनाएं बनती है। परन्तु ऎसा होने पर फल इसके विपरीत प्राप्त होता है। सामान्य रुप से राजाओं में साहस का गुण भी पाया जाता है। इसलिये इस प्रकृति के व्यक्ति साहसी भी होते है।

सूर्य के प्रभाव से होने वाली बीमारियां : (Diseases Occur By Sun)

कुण्डली पर सूर्य किसी प्रकार का अशुभ प्रभाव होने पर हृदय रोग होने की संभावना रहती है। इसके प्रभाव से हाई बल्ड प्रेशर (high blood pressure) जैसे रोग की भी आशंका रहती है। आत्मविश्वास व आत्मशक्ति में कमी की भी संभावना रहती है। सूर्य पर किसी प्रकार का कोई अशुभ प्रभाव होने पर व्यक्ति में रोगों से लड़ने की क्षमता में कमी आती है। सभी प्रकार के बुखार का कारण सूर्य देव को कहा गया है।

सूर्य को मस्तिष्क संबन्धी रोगों के लिये भी देखा जाता है। सिर में दिमाग के कारक सूर्य है। इसलिये सूर्य पर अशुभ प्रभाव में होने पर मानसिक परेशानियां बढ़ने की आशंका रहती है। इसके प्रभाव से रीढ की हड्डी में कष्ट एवं दृष्ट दोष उत्पन्न होता है।

सूर्य से संबन्धित कारोबार: (Business Related to Sun)

सूर्य से जुडे कारोबारों में सरकारी नौकरी, सरकारी संस्थाएं, सुरक्षा, उर्जा निर्माण केद्र, नियंत्रण कक्ष आदि आते है। आजीविका का संबन्ध सूर्य से आने पर इन सभी क्षेत्रों में काम करने पर व्यक्ति को सफलता मिलती है। सूर्य के अन्य कारोबारों में अनाज के गोदाम, राशन की दुकान, चिकित्सा एवं दवाईयों (medical or pharmaceuticals) के काम को लिया जाता है। विद्युत निर्माण केन्द्र, बल्ब, ट्यूब लाईट से जुड़े कामों में प्रशिक्षण प्राप्त कर भी सूर्य प्रभावित व्यक्ति सफलता प्राप्त कर सकते हैं।

सूर्य के उत्पाद:- (Products of Sun)

सूर्य के उत्पादों में गेंहू, चावल, ज्वार, बाजरा, मकई, दालें, मिर्च, मसाले, बादाम, काजू, मूंगफली, नारियल आदि का शामिल किया जाता है। इसके अतिरिक्त सभी टीके, दवाइयां, उपयोगी रसायन, आँक्सीजन, सोने से जुड़े सभी कारोबार तथा सोने का निर्माण इन सभी वस्तुओं को सूर्य के उत्पादों में शामिल किया जाता है।

सूर्य के स्थानों में:- (Places of Sun)

सूर्य के स्थानों में किले (forts), शिवजी का मंदिर, सरकारी इमारतें, दफ्तर, विद्युत निर्माण केन्द्र, अस्पताल, दवाखाना, दवा की कंपनी, दवा की दुकान, चिड़ियाघर को शामिल किया गया है। पौधों में वट वृक्ष में सूर्य का वास माना गया है। पशुओं में सिंह एवं घोड़ा (lion and horse) पर सूर्य का स्वामित्व होता है। पंक्षियों में हंस (swan) को सूर्य के अधिकार में माना जाता है।

कृष्णमूर्ति पद्धति के अनुसार चन्द्रमा (Qualities of Moon as per KP System)

सभी ग्रहों में सूर्य को राजा कहा गया है तथा चन्द्र (Moon) को रानी। चन्द्र को स्नेह व कोमलता का प्रतीक माना जाता है। चन्द्र का स्थान व कुण्डली में माता का स्थान एक ही है क्योकि, दोनों प्रेम व सुख के कारक है। पानी तथा सभी तरल वस्तुओं का स्वामी चन्द्र माना जाता है। यही कारण है कि शरीर में खून का संचालन, पाचक रस आदि वस्तुएं चन्द्र के प्रभाव में रहती हैं। मन व मानसिक स्थिति का कारक भी चन्द्र को ही माना जाता है। शरीर में बाईं आँख (left eye) का अधिकारी भी चन्द्रमा होता है।

चन्द्र के गुण (Qualities of Moon as per Krishnamurthy System)

चन्द्र के सामान्य गुणों में शीतलता, ठंडक, पानी से लगाव, भाप, गति में परिवर्तन आता है। इस राशि के व्यक्तियों को घूमना काफी पसन्द होता है। सोलह कलाओं से युक्त होने के कारण चन्द्र का प्रभाव सौन्दर्य व कला के क्षेत्रों पर भी होता है। संगीत एवं नृत्य (dance and music) में चन्द्र रूचि जागृत करता है। चन्द्र का शुभ प्रभाव व्यक्ति पर होने से व्यक्ति कोमल स्वभाव का होता है। घर, धरती, मातृभूमि के विषय में भी चन्द्र की स्थिति से विचार किया जाता है।

चन्द्र से होने वाली बीमारियां (Disease Occur by Moon as per KP System)

चन्द्र के प्रभाव से मनासिक चिंताएं (tensions) तथा मन के रोग, चिड़चिड़ापन, पाचन तन्त्र संबन्धी परेशानियां, खांसी, जुकाम, कफ से संबन्धित रोग होने की संभावना रहती हैं।

चन्द्र के कार्यक्षेत्र (Business Related to Moon as per KP System)

जब कुण्डली में चन्द्र का संबन्ध दशम घर या आजीविका स्थान से होता है तब सिंचाई संबन्धी कार्यो में रुचि होने की संभावना रहती है। चन्द्र के अधिकार में जल विभाग, मछली व्यवसाय, नौसेना, सागर से प्राप्त होने वाली सभी वस्तुओं का विक्रय सम्बन्धी कार्य, भूमि से निकलने वाले तरल पदार्थ जैसेकैरोसिन (Kerosene), पेट्रोल इत्यादि। चन्द्र से ही फूल, नर्सरी साथ ही रसों से संबन्धित कार्यों में लाभ-हानि का विचार किया जाता है। स्नेह व सेवा भाव से किये जाने वाले कार्यो पर भी चन्द्र का प्रभाव होता है इसलिये समाज सेविकाएं व नर्स के कार्य को भी चन्द्र से देखा जाता है।

कृष्णमूर्ति पद्धति से चन्द्र के उत्पाद (Products of Moon As Per Krishnamurthy System)

रसदार फल, गन्ना, शक्कर, केसर, मकई आदि चन्द्र से प्रभावित फसल माने जाते हैं। चांदी (Silver), सिल्वर प्लेटेड चीजें, मोती, कपूर (camphor) भी चन्द्र की वस्तु हैं। मछली उद्योग भी चन्द्र से सम्बन्धित कार्य है। चन्द्र का संबन्ध आजीविका स्थान से होने पर इन चीजों से सम्बन्धित क्षेत्र में कार्य करना लाभप्रद होता है।

चन्द्र के स्थान (Place of Moon as per KP System)

चन्द्र के स्थानों में सभी हिल स्टेशन, पानी के स्रोत, टंकियां, कुएँ (well), हरे पेडों से सजे जंगल (forest), दूध से जुड़ा व्यापार, गाय, डेयरी, फ्रिज, पीने का पानी रखने का स्थान तथा पानी के नल पर चन्द्र का अधिकार है। चन्द्र के स्थानों में रसोईघर भी आता है क्योकि, रसोईघर में भी जल पाया जाता है। कुण्डली के चतुर्थ भाव का अधिकारी चन्द्र होता है।

चन्द्र से सम्बन्धित जीव-जन्तु (Animals of Moon as per KP System)

छोटे पालतू जानवर, कुत्ता, बिल्ली, सफेद चूहे, बतख, कछुआ, मछली इन सभी को चन्द्र से सम्बन्धित जीव-जन्तु माना जाता है।

चन्द्र से सम्बन्धित वनस्पति (Plants Related to Moon as per KP System)

गन्ना, फूल गोभी, ककड़ी, खीरा, तरबूज, जल सिंघारा, मखाना एवं जल में पाये जाने वाले पौधों पर चन्द्रमा का अधिकार होता है।

मंगल एवं कृष्णमूर्ति पद्धति - Qualities of Mars as per KP Astrology

ग्रहों में मंगल सेनापति माना जाता है. मंगल जोश और शक्ति से भरपूर ग्रह होता है। यह साहस व बल का कारक होता है। इसे उग्र, क्रोधी तथा उत्साही भी माना जाता है। मंगल से प्रभावित व्यक्तियों में पहल करने की क्षमता विशेष तौर पर पायी जाती है।

कृष्णमूर्ति पद्धति में मंगल का प्रभाव एवं उसके गुण के अतिरिक्त भी यह समझने की आवश्यकता होती है की मंगल कौन से भाव में बैठा होगा और किस ग्रह के नक्षत्र का प्रभाव उस पर है और वह खुद किसी ग्रह से प्रभावित है या नहीं है। मंगल एक अति साहसिक गतिविधि करने के लिए प्रेरित करने वाला ग्रह है। इसकी शुभता के प्रभाव से जातक किसी भी कठिन परिस्थिति या कोई भी दुसाहसिक काम को करने से पीछे नहीं हटता है। वहीं इसके अशुभ प्रभाव के कारण डरपोक होना और उत्साह की कमी होने जैसे प्रभाव दिखाई पड़ते हैं।

मंगल का शरीर के अंगों में प्रभाव (Placement of Sun in the Different Organs of Body as per Krishnamurthy system)

शरीर के अंगों में रक्त का कारक ग्रह मंगल को माना गया है। चन्द्र रक्त का संचालन करता है। प्रथम भाव व अष्टम भाव दोनों भावों में आने वाले अंगों को मंगल के अंगों की श्रेणी में रखा जाता है क्योंकि, काल पुरुष की कुण्डली में मंगल की राशि पहले भाव व अष्टम भाव में आती है। शरीर के अंगों में जिह्वा को भी मंगल के अधिकार क्षेत्र में रखा गया है।

मंगल के गुणों में मंगल को बल पूर्वक अपना अधिकार सिद्ध करने वाला कहा गया है। मंगल के प्रभाव क्षेत्र में अधिकारी, शक्तिशाली एवं प्रभावशाली व्यक्ति, नेतृत्व, युद्ध में धैर्य होता है। इन सभी विषयों में मंगल का गुण देखा जाता है। विपरीत परिस्थितियों में भी संघर्ष करते रहने की प्रवृति मंगल के फलस्वरूप आती है।

मंगल से पीड़त होने पर होने वाली बीमारियां (Disease Occur by Mars as per Krishnamurthy system)

मंगल शरीर में मज्जा को प्रभावित करता है, यह अग्निकारक होने के कारण शरीर में पित्त को भी बढ़ा सकता है। गर्मी से होने वाली बीमारियाँ, मुहांसे, रक्त विकार इत्यादि मंगल के प्रभाव से होने वाली बीमारियाँ हैं।

मंगल का आजिविका क्षेत्र (Vocation Related to Mars as per KP system)

सुरक्षा एजेन्सियां, पुलिस, सुरक्षाकर्मी (security guards), जासूस, हथियार, किसी भी विभाग में टीम लीडर की भूमिका, सैन्य विभाग, पुलिस विभाग मंगल के कार्य क्षेत्र में आते हैं। सर्जरी करने वाले डाक्टरों का कार्य भी मंगल के आजिविका क्षेत्र में आता है। नाई व कसाई का काम करने वाले व्यक्ति भी मंगल के प्रभाव क्षेत्र में आते हैं। हथियार से लैस अंगरक्षक भी मंगल के प्रभाव क्षेत्र में आते हैं। मंगल का सम्बन्ध शनि या केतु के साथ होने पर कम्प्यूटर इंजीनियर के कार्यो में भी मंगल सफलता दिलाता है।

मंगल के उद्योग (Business of Mars as per KP system)

इसके उद्योग में मिर्च-मसालों से संबन्धित चीजें, दालचीनी, अदरक (ginger), लहसुन, प्याज आदि को शामिल किया जाता है। घरों का निर्माण करने वाले, कांटेदार पेड़ (thorny plants), अच्छी लकडी, शराब व अल्कोहलिक पदार्थ व तम्बाकू उद्योग को मंगल से प्रभावित क्षेत्र माना जाता है। मंगल का प्रभाव आजीविका क्षेत्र पर होने से भूमि के क्रय-विक्रय का कार्य करना भी लाभदायक होता है। मंगल जब कुण्डली में शुभ होता है तब जोखिम व साहस पूर्ण कार्यो को करने से लाभ मिलने की संभावना रहती है। पर्वतारोही, पहलवान समेत साहस और बल से काम करने वाले सभी लोग मूल रूप से मंगल से प्रभावित रहते हैं।

मंगल के स्थान (Place of Mars as per KP system)

मंगल ऐसे स्थानों का प्रतिनिधित्व करता है जहां शक्ति का प्रदर्शन हो सके या जिस स्थान पर साहस की आवश्यकता हो, यह स्थान मंगल के अधिकार क्षेत्र में आते हैं। इसके साथ ही आग से संबंधित कामों में में भी मंगल की भूमिका देखी जाती है। लडाई का मैदान, सैनिक अभ्यास स्थल, पुलिस स्टेशन, ऑपरेशन थियेटर, यंत्र निर्माण स्थल, रसोई घर इत्यादि को मंगल का स्थान माना जाता है।

मंगल से सम्बन्धित जीव-जन्तु (Animlas of Mars as per KP system)

शेर, लोमड़ी, कुत्ता आदि मंगल से प्रभावित जीव-जन्तु हैं।

मंगल से सम्बन्धित वनस्पति (Plants of Mars as per KP system)

मंगल तामसिक चीजों को दर्शाता है, या कहें ऎसा भोजन जो शरीर में गर्मी की तासिर बढ़ाता हो। लहसून, तम्बाकू, लाल रंग के फल, कड़े छिलके वाले फल आदि मंगल से प्रभावित वनस्पति होते हैं।

कृष्णमूर्ति पद्धति और बुध की विशेषताएं - Qualities of Mercury as per KP Astrology

ग्रहों में बुध को राजकुमार का स्थान दिया गया है। इसलिये चंचलता व जिद्द करने की प्रवृति इनका स्वभाव कहा गया है। बुध के स्वभाव बालकों जैसा होता है। बच्चों सी समझ, शैतानी, शरारत इनके व्यवहार में मौजूद होता है। बारह राशियों में से मिथुन व कन्या राशियों (Gemini and Virgo signs) को बुध के स्वामित्व में रखा गया है। बुध के नैसर्गिक गुणों (natural qualities of Mercury ) में चतुरता व बुद्धिमानी आती है।

बुध की सामान्य विशेषताएं (General Qualities of Mercury as per KP System)

बुध की राशि वाले व्यक्तियों में उतावलापन सामान्य रुप से देखा जा सकता है। बुध में आकलन करने की योग्यता मुख्य रुप से पाई जाती है। विनोदी, हंसमुख व मजाकिया गुणों को इसके स्वभाव में शामिल किया जाता है। बुध की राशि के व्यक्तियों में अच्छी समझ देखते ही बनती है। वाक शक्ति पर बुध का अधिकार सिद्ध है। इसके अतिरिक्त श्रवणशक्ति, आवाज व ध्वनियों के लिये बुध को देखा को देखा जाता है।

शरीर के अंगों में बुध (Placement of Mercury in the Different Organs of Body as per KP System)

शरीर के अंगों में कान, संवेदना का कारक बुध को बताया गया है। शरीर में त्वचा के कारक बुध देव ही है। गला, कंठ आदि के लिये बुध को विशेष रुप से देखा जाता है।

बुध के गुण (Qualities of Mercury as per KP System)

बुध का वाणी पर अधिकार है। इसलिये बुध की राशि के व्यक्ति बातूनी भी होते है। व्यवहारिकता का गुण भी इनमें पाया जाता है। द्विस्वभाव राशियों का स्वामी (lord of the common signs) होने के कारण स्वभाव में कुछ अस्थिरता रहती है। कई कामों को एक साथ करने का प्रयास भी करते है। बुध के फलस्वरुप इन्हें शिक्षा में भी रुचि होती है। तथा पढने-लिखने का शौक भी बुध की राशि के व्यक्तियों को होता है। बुध-मंगल का संबन्ध बनने पर इस राशि के व्यक्तियों में लेखन का शौक होता है।

बुध से होने वाली बिमारियां (Disease Occur by Mercury as per KP System)

बुध तथा तीसरे भाव पर कोई अशुभ प्रभाव होने पर वाणी संबन्धी दोष होने की संभावना बनती है। बुध के पीड़ित होने पर तुतलापन, गूंगापन, श्रवण संबन्धी परेशानियां हो सकती है। बुध के प्रभाव से कानों की बीमारियां, त्वचा की संवेदनशीलता मुख्य रुप से पाई जाती है। जब जन्मकुण्डली में बुध पर शनि, मंगल, राहु-केतु का पाप प्रभाव पड़ता है तो इस प्रकार के रोग संभावना रहती है।

बुध के कार्यक्षेत्र (Working Areas of Mercury as per KP System)

व्यक्ति की आजीविका से बुध का संबन्ध आने पर वह दलाली के कार्य, शिक्षक, प्रोफेसर, वकील, सलाहकार, रिपोर्टर, दुभाषिये आदि के क्षेत्रों में कार्य करके सफलता पाने का प्रयास करता है। बुध अच्छा लेखक एवं अकाउंटेन्ट भी बनाता है। इसके अतिरिक्त संपादक, प्रकाशक, छपाई का काम करने वाले व्यक्ति भी बुध की आजीविका क्षेत्र में आते है। पोस्टल विभाग, टेलीफोन, प्रोग्रामर, ज्योतिषी सभी बुध से प्रभाव स्वरुप ही इस क्षेत्र में कार्य कर रहे होते हैं।

बुध के व्यवसायिक क्षेत्रों में (Business Related to Mercury as per KP System)

बुध को कलम व मंगल को स्याही कहा गया है। दोनों का मेल लेखन को जन्म देता है। बुध के फलस्वरुप स्टेशनरी, कलम, पेन्सिल, छपाई मशीन, समाचार पत्र आदि के क्षेत्र में कार्य करने वाले व्यक्ति को सफलता मिलती है। वाणी का कारक होने के कारण यह संप्रेषण के साधनों पर भी अधिकार रखता है। इसीलिये फोन, रेडियो, टी.वी. वायरलेस सेट आदि के क्षेत्रों में काम करने वाले व्यक्तियों की आजीविका पर बुध का प्रभाव होता है। बुध श्रवण शक्ति से संबन्धित ग्रह होने के कारण श्रवणयंत्र, कम्प्यूटर, खिलौने, कैलकूलेटर, आदि का निर्माण करने वाले व्यक्तियों की आजीविका को भी निर्देशित करता है।

बुध के स्थान (Place of Mercury as per KP System)

बुध के स्थानों में शिक्षा स्थलों को शामिल किया जाता है इसलिये स्कूल, कालेज व अन्य शिक्षण संस्थानों पर बुध का स्वामित्व माना जाता है। इसके अलावा सभा स्थान, प्रसारण केन्द्र, दूर संचार केन्द्र, आदि को भी बुध का स्थल माना जाता है।

छोटी यात्राओं को बुध से देखा जाता है। इसलिये इन यात्राओं का प्रबन्ध करने का काम करने वाले व्यवसायिक क्षेत्रों को बुध के स्थानों में रखा जाता है। सभी पोस्ट आफिस, मीडिया केन्द्रों पर भी बुध का अधिकार होता है। किताबों की दुकानें, शेल्फ, लाईब्रेरी, फोन, लेटर बॉक्स इन में भी बुध का निवास होता है। छोटे कद के पेड़ पौधे, हरी सब्जियों व वाद्य यंत्र बनाने वाले पेड़ों में भी बुध का निवास माना जता है।

कृष्णमूर्ति पद्धति और बृहस्पति की विशेषताएं - Qualities of Jupiter as per KP Astrology

बृहस्पति की सामान्य विशेषताएं (General Qualities of Jupiter as per KP System)

ज्योतिष की कृष्णमूर्ति प्रणाली में बृहस्पति को सबसे शुभ ग्रह माना जाता है। यह शुभ कार्यों में सफलता और प्रगति देता है। ग्रह बृहस्पति को भगवान के बगल में स्थान देते हैं। बृहस्पति ज्ञान और धर्म का कारक ग्रह है। इसे सभी ग्रहों में मुख्यमंत्री भी माना जाता है। बृहस्पति देव के समान शुभ है क्योंकि यह जिस भाव की दृष्टि करता है उसका शुभ फल देता है।

बृहस्पति के गुण (Qualities of Jupiter as per KP System)

भक्ति, पूजा, धर्म बृहस्पति के प्राकृतिक गुणों में से हैं। व्यक्ति की सामाजिक गतिविधियों, सम्मान, सम्मान और बड़प्पन का भी विश्लेषण बृहस्पति से किया जाता है। बृहस्पति संतान सुख और तीर्थ यात्रा भी देता है। गुरु की राशि काल-पुरुष की जन्म कुंडली के नवम और बारहवें भाव में आती है। इसलिए बृहस्पति का संबंध विशेष रूप से धर्म और मोक्ष से है।

बृहस्पति को देव स्वरूप दिया गया है। जब गुरु की राशि कालपुरुष की जन्म कुंडली में नवम भाव में होती है तो व्यक्ति विवेकपूर्ण निर्णय लेने में सक्षम होता है। कानूनी मामलों को सुलझाने के लिए भी बृहस्पति का विश्लेषण किया जाता है। यह शांत और रचित फिन नेचर है। जिस जातक की जन्म कुंडली में गुरु का प्रबल प्रभाव होता है वह शांत, सौम्य और किसी को नुकसान नहीं पहुंचाने वाला होता है। बृहस्पति एक अच्छा सलाहकार और मार्गदर्शक भी है। शुभ अवसरों और अवसरों पर बृहस्पति शुभ फल देता है। बृहस्पति की शुभता परिवार की समृद्धि और खुशियों को बढ़ाने में मदद करती है।

शरीर के अंगों में बृहस्पति (Placement of Jupiter in the Different Organs of Body as per KP System)

बृहस्पति शरीर के विभिन्न हिस्सों में घुटनों और एड़ी को प्रभावित करता है। जब ये शरीर के अंग किसी रोग से प्रभावित होते हैं तो जन्म कुंडली में बृहस्पति की स्थिति का विश्लेषण किया जाता है।

बृहस्पति से होने वाली बिमारियां (Disease Occur by Jupiter as per KP System)

बृहस्पति के अशुभ प्रभाव से हमारे शरीर में चर्बी बढ़ने लगती है। जन्म कुण्डली में बृहस्पति पीड़ित होने पर व्यक्ति को मस्से, गांठ, सूजन या मधुमेह हो सकता है। एड़ी या जाँघों में होने वाले रोग भी जन्म कुण्डली में बृहस्पति की पीड़ित स्थिति के कारण होते हैं।

बृहस्पति के कार्यक्षेत्र (Working Areas of Jupiter as per KP System)

बृहस्पति ज्ञान को बढ़ाता है इसलिए ज्ञान या शिक्षा से संबंधित व्यवसाय बृहस्पति के हैं। बृहस्पति को सभी शैक्षणिक कार्यों के अधिकारी के रूप में भी जाना जाता है। जो लोग पुजारी और उपदेशक जैसे आध्यात्मिक स्थानों में काम करते हैं, उन पर भी बृहस्पति का प्रभाव होता है।

आध्यात्मिक गतिविधियाँ करने वाले भक्त और आध्यात्मिक स्थानों पर अधिकारी बृहस्पति से प्रभावित होते हैं। शिक्षण संस्थानों के प्रबंधक और ट्रस्टियों की जन्म कुंडली में बृहस्पति का प्रबल प्रभाव होता है। न्यायपालिका भी बृहस्पति के प्रभाव में आती है इसलिए न्यायाधीश या मुख्य न्यायाधीश का पेशा बृहस्पति से संबंधित है।

जो लोग यात्रा कर रहे हैं, नौसेना की सेवा करते हैं और शुद्ध घी, काजू, बादाम जैसे उच्च कैलोरी उत्पादों का व्यवसाय चलाते हैं, वे बृहस्पति से प्रभावित होते हैं। आध्यात्मिक ग्रंथों और पुस्तकों के प्रकाशन का पेशा भी बृहस्पति का ही है।

बृहस्पति के व्यवसायिक क्षेत्र (Business Related to Jupiter as per KP System)

बृहस्पति के प्रभावशाली क्षेत्र स्कूल, कॉलेज और प्रबंधन संस्थान हैं। आध्यात्मिक संस्थान और आध्यात्मिक साहित्य और पाठ के प्रकाशन घर भी बृहस्पति के हैं। बृहस्पति मानव शरीर में कैलोरी या वसा का प्रतिनिधित्व करता है। इसलिए शुद्ध घी, मिठाई और तेल के विक्रेता बृहस्पति से प्रभावित होते हैं। ज्वैलरी डिजाइनिंग, रबर और मेटल शीट को भी बृहस्पति के नियंत्रण वाले क्षेत्रों में वर्गीकृत किया गया है। व्यापार क्षेत्र भी बृहस्पति के अंतर्गत आता है।

बृहस्पति के स्थान (Place of Jupiter as per KP System)

स्कूल, कॉलेज, शैक्षणिक संस्थान, मंदिर, मस्जिद, चर्च जैसे आध्यात्मिक स्थान बृहस्पति के हैं। उपकरण, वास्तु उत्पाद, घर में पूजा स्थल और हॉल के कमरे भी बृहस्पति के हैं।

बृहस्पति सबसे शुभ ग्रहों में से एक है इसलिए यह सभी आध्यात्मिक और शुभ स्थानों में निवास करता है।

बृहस्पति से सम्बन्धित वनस्पति (पौधे) और जानवर (Plants Related to Jupiter as per KP System)

हाथी सभी जानवरों में बृहस्पति का प्रतिनिधित्व करता है। बादाम, मूंगफली और काजू के पौधों को बृहस्पति के पौधों में वर्गीकृत किया गया है। बरगद का पेड़ भी बृहस्पति का है।

कृष्णमूर्ति पद्धति और शुक्र ग्रह की विशेषताएं - Qualities of Venus as per KP Astrology

कृष्णमूर्ति पद्धति से फलादेश करने से पहले आपको सभी ग्रहों की विशेषताओं और गुणों को समझना चाहिए। ग्रहों के गुणों को जाने बिना फल कथन करना कठिन होता है। उदाहरण के तौर पर कुण्डली में शुक्र के फल (Results of Venus) को जानने के लिए उनके गुणों को समझना होगा क्योंकि, सभी ग्रह अपने गुण के अनुसार फल देते हैं। तो, आइये जाने कृष्णमूर्ति पद्धति के आधार पर शुक्र के विषय में।

शुक्र ग्रह को सौन्दर्य का कारक ग्रह कहा गया है। सिनेमा, माडलिंग तथा विलासिता  सम्बन्धी वस्तुओं का यह स्वामी माना जाता है। ब्यूटी पार्लर एवं कौस्मैटिक इंडस्ट्री सहित जहां भी श्रृंगार और साज-सज्जा की बात आती है होती हैं वहां शुक्र का प्रभाव बना रहता है। ग्रहों में शुक्र को प्रेमिका के रुप में देखा जाता है इसलिये, प्रेम-प्रसंगों में शुक्र की भूमिका विशेष रुप से महत्वपूर्ण मानी जाती है। शुक्र से प्रभावित व्यक्ति दयालु एवं कोमल मन के होते हैं। इन्हें पाकशास्त्र का अच्छा ज्ञान भी होता है।

शुक्र की विशेषताएं: (Specialities of Venus as per KP Systems)

शनि देव जहां व्यक्ति को साधारण जीवन जीने के लिये प्रेरित करते है वही, शुक्र इसके विपरीत व्यक्ति को भोग-विलास में रमने की प्रवृति देते है। शुक्र के प्रभाव से व्यक्ति अपनी सुख-सुविधाओं पर अधिक ध्यान देता है। वह आराम पसन्द होता है। सौन्दर्य में वृद्धि करने वाली वस्तुओं का अधिक से अधिक प्रयोग करता है। उच्च स्तरीय जीवन की चाहत रहती है।

शुक्र की विशेषताओं में आकर्षण, आसक्ति और वासना को मुख्य समझा जाता है। शुक्र को विवाह के कारक ग्रह के रुप में देखा जाता है। इसलिये इसका संबन्ध विवाह के सुख से होता है। वैवाहिक जीवन में सुख को बनाये रखने के लिये शुक्र का शुभ होना काफी महत्व रखता है। भौतिक सुख-सुविधाओं की प्राप्ति के लिए भी शुक्र को ही देखा जाता है। वाहन व सजावटी वस्तुओं का सम्बन्ध भी शुक्र से होता है।

शुक्र से प्रभावित अन्य क्षेत्र (Other Fields Related to Venus as per KP Systems)

रंग, चित्र, मंहगें कांच, पर्दे भी शुक्र प्रभावित क्षेत्र हैं। मनोंरजन के सभी साधन सहित टी.वी., फ्रिज, एयरकंडीशनर, सजावटी उपकरणों पर शुक्र का स्वामित्व है। पर्यटन एवं आनन्द के लिए आप जो भी यात्राएं करते हैं वह भी शुक्र के प्रभाव से संभव होता है। सुगंन्धित वस्तुएं जैसे इत्र, फूल आदि भी शुक्र की वस्तु कही जाती है। मीठी वस्तुएं भी शुक्र की वस्तु होती हैं।

शुक्र के गुण: (Qualities of Venus as per KP Systems)

कलात्मक सोच, वस्तुओं को एक नये ढंग से प्रस्तुत करने की कला शुक्र से प्राप्त होता है। हर प्रकार की कला शुक्र ग्रह की देन है। समाज सेविका एवं नर्स के रूप में सेवा की भावना भी शुक्र देता है। होटल एवं अन्य व्यवसायिक प्रतिष्ठानों में रिशेप्सनिष्ट का काम करने वालों को स्वागत-सत्कार का गुण शुक्र की कृपा से मिलती है।

शुक्र के फलस्वरुप होने वाली बीमारियां: (Disease Occur by Venus as per KP Systems)

आंखों की रोशनी के लिये शुक्र को देखा जाता है। कुण्डली में शुक्र पर किसी प्रकार का अशुभ प्रभाव होने पर नेत्र दोष होने की आशंका रहती है। शुक्र व शनि का संबन्ध बनने पर व्यक्ति को शराब पीने की लत लगती है। शुक्र तम्बाकू, सिगरेट, सिगार का भी शौक पैदा करता है जिससे स्वास्थय में कमी आती है। पीड़ित शुक्र होने पर सौन्दर्य में कमी आती है।

शुक्र के कार्यक्षेत्रों में: (Working Areas of Venus as per KP Systems)

शुक्र कला, संगीत तथा सौन्दर्य के कारक ग्रह हैं। चित्रकार, कलाकार, अभिनेता, संगीतकार, गीतकार, गायक, नर्तक, फोटोग्राफी, कला के वभिन्न क्षेत्रों से जुड़े लोग शुक्र के कार्य क्षेत्र में होते हैं। शुक्र के कार्यक्षेत्र में मेकअप आर्टिस्ट, डेकोरेटर, पेंटर होते हैं। कौस्मैटिक इंडस्ट्री से जुड़े कार्य भी शुक्र के कार्यक्षेत्र माने जाते हैं। मादक पदार्थ, वाहन के क्रय-विक्रय के कार्य, साज-सज्जा की वस्तुओं का निर्माण, चूड़ी निर्माण में उन्नति भी शुक्र के प्रभाव से प्राप्त होता है।

शुक्र के व्यवसायिक क्षेत्र (Business Related to Venus as per KP Systems)

सजावट की वस्तुओं (decorative products oif Venus) का निर्माण करने वाले व्यक्ति जिसमें फूलों की सजावट से लेकर इंटीरियर डिजाईनिंग करने वाले व्यक्ति भी शुक्र के व्यवसायिक क्षेत्र में माने जाते हैं। रेशमी वस्त्रों का निर्माण, कांच की सजावटी वस्तुएं, कांच की सामग्री, फूल व फूलों से बनी सभी सामग्री शुक्र के कार्यक्षेत्र की सीमा में आते है। आडीयो, विडीयो कसेट एवं सी.डी भी शुक्र के व्यवसायिक क्षेत्र होते हैं।

शुक्र के स्थानों में (Place of Venus as per KP Systems)

नृत्य व संगीत स्थल, क्लब, फिल्म, नाटक, विवाह स्थल शुक्र के स्थान होते हैं। फूलों की नर्सरी, बगीचे, खुशबू वाली चीजें, पार्किंग, बेडरुम, पलंग, पेंटिग्स आदि शुक्र के स्थान होते हैं।

कृष्णमूर्ति पद्वति और शनि की विशेषताएं - KP Astrology and Qualities of Saturn Planets

शनि देव को नवग्रहों में प्रमुख स्थान दिया गया है। इनकी मंद गति के कारण व्यक्ति पर इनका प्रभाव दीर्घकाल तक बना रहता है। भगवान शंकर ने शनि देव को दंडाधिकारी का पद दिया है। यही कारण है कि इनके हाथों में दण्ड होता है। अपने दण्ड से शनि देव जीवों को सद्कर्म तथा न्याय की राह पर चलने की प्रेरणा देते हैं। शनि अपने गुणों के कारण सदैव पूजनीय हैं। कृष्णमूर्ति ज्योतिष पद्धति (Krishnamurthy astrology system) में इनकी जिन विशेषताओं का वर्णन किया गया है उनका जिक्र यहां प्रस्तुत किया गया है।

शनि की विशेषताएं: (Specialities of Saturn as per KP System)

सभी ग्रहों में शनि की गति मन्द होने के कारण इनका प्रभाव लम्बे समय तक बना रहता है। ग्रहों में इन्हें दंडाधिकारी अर्थात न्यायकर्ता का स्थान प्राप्त है। यह सभी ग्रहों में समय के कारक भी माने जाते हैं। शनि का गुण है कि इनका फल विलम्ब से प्राप्त होता है। इनसे मिलने वाले फल रुक-रुक कर प्राप्त होते है। शनि देव बाधक ग्रह के रुप में भी जाने जाते है। इसलिये शनि देव का प्रभाव जिन भावों पर पड़ता है। उन भावों के फलों की प्राप्ति में बाधाएं आने की संभावना रहती है।

शनि देव सेवा के भी अधिकारी हैं इसलिए इनका प्रभाव होने से मेहनत और लगन से कार्य करने की प्रेरणा मिलती है। शनि व्यक्ति को कर्तव्यनिष्ठ भी बनाता है। शनि प्रभावित व्यक्ति अधिकार मांगने की बजाय कर्तव्य पालन में अधिक विश्वास रखते हैं। शनि महाराज सभी को कर्म की प्रेरणा देते हैं। शनि का जिनपर आशीर्वाद होता है वह अपने लक्ष्यों (aim) को लेकर सजग रहते हैं और कार्य में सफलता के लिए अधिक मेहनत भी करते हैं। "सादा जीवन उच्च विचार" वाली बातें शनि प्रभावित व्यक्ति में पाया जाता है।

कुण्डली में शनि देव अष्टम भाव के कारक ग्रह होने के कारण इनका मृत्यु से संबन्ध बताया गया है। शनि देव के सामान्य गुणों में निरन्तर काम में लगे रहने की प्रवृति मुख्य रुप से पाई जाती है। शनि के प्रभाव क्षेत्रों में आने वाले व्यक्तियों को उच्च पद पाने में सदैव ही दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। अपने कार्य के प्रति ईमानदार (honesty towards wortk) रहने का गुण शनि देव के प्रभाव से ही आता है। इसके अलावा कार्यो में निष्ठा का गुण भी देखा जाता है। शनि देव को न्याय करने में कठोर कहा गया है।

शनि देव के गुण: (Qualities of Shani Deva as per KP System)

शनि देव के गुणों के कारण व्यक्ति में कार्य के प्रति समर्पण पाया जाता है। इस ग्रह से प्रभावित व्यक्तियों के स्वभाव में भोग-विलास के विषयों से अलग रहने की प्रवृति पाई जाती है। कार्यो व निर्णयों में दूरदर्शिता का गुण भी मुख्य रुप से पाया जाता है। कभी-कभी इनमें आलस का गुण भी पाया जाता है। कुण्डली में शनि पर अशुभ प्रभाव होने पर व्यक्ति की सोच में नकारात्मकता गुण पाया जाता है। इस स्थिति में व्यक्ति के स्वभाव में आशावादिता की कमी पायी जाती है।

शनि शरीर के अंगों में: (Placement of Saturn in the Different Organs of a Body as per KP System)

कालपुरूष की कुण्डली में शनि की राशि दशम भाव व एकादश भाव में आती है। इसलिये शरीर के अंगों में घुटने व पिंडलियों को शनि देव के प्रभाव क्षेत्र में माना जाता है। शरीर के जोड़ों और हड्डियों पर भी शनि की सत्ता मानी जाती है।

शनि की बीमारियों में : (Disease Occur by Saturn as per KP System)

शनि देव पर किसी प्रकार का कोई अशुभ प्रभाव होने पर शनि संबन्धी रोग होने की संभावना रहती है। शनि देव घुटनों की बीमारियां दे सकते है। पिण्डलियों में दर्द रहने की शिकायत भी शनि देव की नाराजगी से हो सकता है। चन्द्र व शनि की युति पर अशुभ प्रभाव व्यक्ति को निराशावादी बना सकती है। शनि देव हड्डियों के कारक ग्रह होने के कारण दांतों में परेशानियां भी दे सकते है।

किसी भी प्रकार का जोडों में दर्द शनि देव के प्रभाव से हो सकता है। शनि देव के मन्द गति ग्रह होने के कारण इनके प्रभाव से लम्बी अवधि के रोग होने की संभावना रहती है। शरीर में कैल्शियम की कमी से होने वाली बीमारियां भी शनि के प्रभाव से होती है।

शनि के कार्यक्षेत्र: (Working Areas of Saturn as per KP System)

आजीविका क्षेत्रों में जानवरों की मृत्यु के बाद प्रयोग में आने वाले चमडे से संबन्धित कार्यो को इसके कार्यक्षेत्रों में रखा जाता है। शनि के कार्यक्षेत्रों में इंजीनियरिंग, संग्रहालय, एयर कंडीशनर का काम करने वाले व्यक्ति, प्राचीन परम्परावादी कार्य, आजीविका, जासूसी, ज्योतिषशास्त्र, तंत्र-मंत्र आदि का काम करने वाले व्यक्ति की आजीविका शनिदेव के कार्य क्षेत्र से जुड़ी होती है। शनि न्यायकर्ता है। न्याय के देवता होने के कारण वकील तथा अदालत में वकील के कार्य भी आते है। अदालतों में न्याय के क्षेत्र में काम करने वाले व्यक्तियों पर शनि का प्रभाव होता है।

शनि के व्यवसायिक क्षेत्र (Business Related to Saturn as per KP System)

चमडे के बैगों का निर्माण करने वाले, जूतों के निर्माता, स्वेटर, शालें, मोजे इत्यादि वस्तुएं तथा हड्डियों से बनने वाली वस्तुएं, आइसक्रीम, फ्रिज इत्यादि वस्तुओं को शनि के व्यवसायिक क्षेत्रों में रखा गया है। उपरोक्त सभी वस्तुओं का निर्माण व विक्रय शनि प्रभावित कार्य क्षेत्र में आता है। लोहे एवं स्टील धातु से जुड़े सभी उद्योग भी शनि के प्रभाव क्षेत्र में आते है। लोहे की छोटी-छोटी वस्तुओं से लेकर बड़े-बड़े जहाजों तक सभी पर शनि देव आधिपत्य रहता है। मजदूर, सेवक, उतम श्रेणी के इंजीनियर इन सभी का काम शनि की आजीविका क्षेत्र में आता है।

शनि के स्थान: (Place of Saturn as per KP System)

शनि एकान्त पसन्द ग्रह है। इसलिये सुनसान क्षेत्र व घने जंगलों, निर्जन स्थानों को शनि देव का स्थान समझा जाता है। गंदे तथा अधेरे स्थानों को भी शनि का स्थान माना जाता है। श्मशान व सभी उंचे व ठंडे स्थानों पर शनि देव का अधिकार होता है।

शनि संबन्धी पशु व पेड-पौधे: (Animals and Plants of Saturn as per KP System)

चूहे, छिपकली, छिलकेवाले स्वादहीन फल, सुपारी, करेला आदि पर शनि का स्वामित्व होता है। प्राचीन वृक्षों को भी शनि का स्वरुप माना जाता है।

कृष्णमूर्ति पद्धति और राहु की विशेषताएं - KP Astrology and Qualities of Rahu Planets

राहु ग्रह को विच्छेद कराने वाले ग्रह के रुप में जाना जाता है। वास्तविक रुप में राहु-केतु का कोई अस्तित्व नहीं है, ये बिन्दू मात्र है। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार राहु-केतु का प्रभाव व्यक्ति के जीवन पर बहुत गहरा होने के कारण इन्हें ग्रह मान लिया गया है। राहु व्यक्ति को परम्परा व संस्कारों से हटाने की प्रवृति रखता है। इसलिये लग्न भाव पर राहु का प्रभाव पड़ने पर व्यक्ति गैर पारम्परिक कार्यो में अधिक रुचि लेता है। परिवार के रीति-रिवाजों का पालन करना उसे अच्छा नहीं लगता है।

राहु का फल विचार कृष्णमूर्ति पद्धति के अनुसार Phaldesh of Rahu as per KP Systems

कृष्णमूर्ति पद्धति के अनुसार राहु का प्रभाव जानने के लिये राहु पर जिस ग्रह की दृष्टी हो उस ग्रह को देखना चाहिए। राहु सबसे पहले दृष्टि देने वाले ग्रह के अनुसार फल देता है। उसके बाद जो ग्रह राहु के साथ स्थित हो उस ग्रह के अनुसार फल प्राप्त होने की संभावनाएं बनती है। सबसे अंत में राहु जिस राशि में स्थित हो उस राशि के स्वामी के अनुसार फल देता है। प्राचीन ज्योतिषशास्त्र के अनुसार राहु के फलों को इस प्रकार नहीं कहा गया है।

इसके अलावा कृष्णमूर्ति पद्धति में राहु को वक्री न मानकर मार्गी माना गया है। इसका कारण इनका सदैव वक्री होना है। राहु कभी भी अपनी गति में परिवर्तन नहीं करते है। इसलिये इन्हें सदैव के लिये मार्गी मान लिया गया है। इसलिये राहु के विषय में फलादेश करते समय सावधानी का प्रयोग करना चाहिए।

राहु की विशेषताएं:- (specialities of Rahu as per KP System)

राहु को सांप का मुख कहा गया है। विषैले रसायनों में राहु की उपस्थिति मानी जाती है। जहर या जहर के प्रयोग से होने वाले कार्यो में राहु का प्रभाव होता है। राहु के स्वभाव में विश्वास की कमी रहती है। अर्थात, कुण्डली के जिस भाव पर राहु की स्थिति हो उस भाव से संबन्धित संबन्ध पर विश्वास करने पर व्यक्ति को सदैव दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है।

राहु का प्रभाव द्वितीय भाव पर होने पर व्यक्ति की वाणी में सत्यता के गुण की कमी आती है। राहु को स्वभाव से क्रूर कहा जाता है। उसमें दूसरों का अहित करने की भावना मुख्य रुप से पाई जाती है। राहु को अकेले रहना पसन्द है। अत: समाज के नियमों को मानने में उसे हमेशा परेशानी होती है।

राहु का संबन्ध अन्य भावों से

राहु का प्रभाव धर्म भाव से होने पर व्यक्ति की धार्मिक आस्था में कमी रहने की संभावना बनती है। इस स्थिति में व्यक्ति के अपने पिता से सदैव वैचारिक मतभेद बने रहने की संभावनाओं को सहयोग प्राप्त होता है। इसी तरह जब राहु सप्तम भाव में हो तब व्यक्ति के अपने जीवनसाथी से विचारों के मतभेद उत्पन्न होने की आशंका रहती है।

राहु तीसरे भाव में होने पर व्यक्ति के मित्र विश्वसनीय नहीं होते है तथा वक्त पड़ने पर उसे धोखा देने से भी नहीं चूकते है। इस स्थिति में व्यक्ति को अपने भाई-बन्धुओं का साथ नहीं मिल पाता है।

राहु के गुण

राहु को कटू वचन बोलने वाला कहा गया है। उसके स्वभाव में विश्वास की कमी होने के कारण शक का भाव बना रहता है। राहु पर जिस ग्रह की दृष्टि हो वह उसके अनुसार फल देता है।

राहु के कार्यक्षेत्र (Working Areas of Rahu as per KP System)

राहु की आजीविकाओं में जहर के उपयोग से बनने वाली दवाईयों के विक्रय का काम आता है। सभी प्रकार की दवाईयां तथा उनके निर्माण का कार्य भी राहु की आजीविका में आता है। दूसरों का अहित करने का काम करने वाले व्यक्तियों के काम को भी इसमें सम्मिलित किया जाता है। जन्म व मृत्यु दर्ज करने का काम, जेल का कार्य भी राहु के कार्य क्षेत्र में आता है क्योंकि इसे बंधनदेने वाला कहा जाता है।

राहु के व्यवसायिक कार्य (Business Related to Rahu as per KP System)

राहु के व्यवसायिक कार्यों में केमिकल का निर्माण आता है। कार्बन, मैग्नेट इत्यादि राहु की वस्तुओं में होने के कारण इनसे संबन्ध कामों पर राहु का अधिकार है। राहु को शनि के समान फल देने वाला कहा जाता है इसलिये शनि के सभी कार्यो को राहु के व्यवसायिक कार्यो में रखा जाता है।

राहु के स्थानों में (Place of Rahu as per KP System)

दलदल, गंदगी वाले स्थान, श्मशान तथा निर्जन स्थान। इन सभी जगहों पर राहु का वास माना जाता है। राहु के पेड-पौधों में जहरीले पौधे तथा राहु के जन्तुओं में सांप है। पक्षियों में कौआ राहु माना जाता है।

कृष्णमूर्ति पद्धति और केतु की विशेषताएं - KP Astrology and Qualities of Ketu

राहु सांप का मुंह व केतु को सांप की पूंछ कहते है। दोनों एक ही शरीर के दो भाग हैं। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार दोनों एक दूसरे से विपरीत दिशा में रहते है। केतु मंगल के समान फल देता है। कुण्डली में मंगल के सुस्थिर होने पर केतु से प्राप्त होने वाले फल शुभ होते हैं। परन्तु, केतु को मंगल से भी अधिक कष्टकारी कहा गया है।

कुण्डली में केतु तथा मंगल की युति या सम्बन्ध किसी भाव में होने पर सर्जरी होने की संभावना बनाती है। जैसे:-यह संबन्ध पंचम स्थान में बने तो संतान का जन्म सर्जरी से होने की संभावना बनती है। लग्न भाव में यह संबन्ध बनने पर व्यक्ति की स्वयं की सर्जरी होने की संभावना बन सकती है।

केतु के गुण (Qualities of Ketu as per KP System)

केतु विरक्ति का भाव देने वाला ग्रह है। बेवजह भटकने की प्रवृति केतु से ही प्राप्त होती है। तंत्र-मंत्र, तपस्या, साधनाओं में समय लगाने का स्वभाव व्यक्ति को केतु के फलस्वरुप प्राप्त होता है। बारहवें भाव में मीन राशि होने पर उसमें केतु की स्थिति हो तो यह मोक्ष देने वाला योग कहा गया है। इस योग के होने पर व्यक्ति में गहरी धार्मिक आस्था हो सकती है अगर लग्न, पंचम, अष्टम, नवम का भी संबंध मजबूत हो।

केतु की बीमारियां (Disease Occur by Ketu as per KP System)

त्वचा पर होने वाली बीमारियों को केतु के प्रभाव से होने वाली बीमारियों की श्रेणी में रखा जाता है। सभी प्रकार के फोड़े-फुन्सियों का कारण केतु तथा बुध का पीड़ित होना हो सकता है।

केतु के कार्यक्षेत्र (Working Areas of Ketu as per KP System)

केतु को भाषा विशेषज्ञ कहा गया है। इसलिये कुण्डली में केतु की स्थिति अच्छी होने पर व्यक्ति एक से अधिक भाषाओं का जानकार बनता है। इसके अलावा केतु को यांत्रिक बुद्धि देने वाला कहा गया है। केतु का संबन्ध पंचम घर से होने पर व्यक्ति की शिक्षा यांत्रिक विभाग में होने की संभावना बनती है। आयुर्वेद पद्धति की दवाईयों पर राहु का अधिकार माना जाता है। आध्यात्म से जुड़े साधन, साहित्य, धर्मग्रन्थों को केतु के साधनों में सम्मिलित किया गया है। इसके अलावा केतु का संबन्ध जिस ग्रह से होता वह उस ग्रह के अनुसार फल देता है।

केतु के व्यवसायिक क्षेत्र (Business Related to Ketu as per KP System)

यंत्रों का निर्माण व रख-रखाव का कार्य केतु के अधिकार क्षेत्र में आता है। केतु मंगल के समान कार्य करता है इसलिये मंगल से सम्बन्धित सभी कार्यो को भी इसके व्यावसायिक क्षेत्रों में शामिल किया जाता है। यह एक प्रकार का कठोर और पाप ग्रह है। केतु और मंगल की स्थिति जिस स्थान में होती है तो उस स्थान में तोड़फोड़ की स्थिति किसी न किसी प्रकार से होने वाले बदलावों को दिखाती है।

केतु के स्थानों में (Place of Ketu as per KP System)

केतु के स्थानों में जहां तीन रास्ते आपस में मिलते हों, ऎसी जगह को केतु का स्थान कहते है। इसके अतिरिक्त चौराहा, तपस्या करने का स्थान इन सब स्थानों को केतु के स्थानों में रखा जाता है। केतु के जानवरों में सांप की पूंछ को केतु के समरूप माना गया है।

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