वायव्यमुखी घर के लिए वास्तु - Vastu For North West Facing House -
वास्तु शास्त्र के अनुसार वायव्य कोण (उत्तर-पश्चिम दिशा) पश्चिम व उत्तर दिशा के बीच में स्थित एक महत्वपूर्ण दिशा है। चन्द्रमा वायव्य दिशा का स्वामी ग्रह है। जैसे ही सूर्य पश्चिम में अस्त होता है रात्रिकाल का स्वामी चन्द्रमा वायव्य दिशा में उदित होने लगता है। इसके दिक्पाल हवाओं के देवता मरुत देव है। चूँकि वायव्य गर्म और ठन्डे क्षेत्रों का मिलन बिंदु है अतः यह क्षेत्र वायु के प्रवेश हेतु एक आदर्श स्थान है।
वायव्यमुखी भवन में वायव्य दिशा के लिए सर्वाधिक उपयुक्त गतिविधियाँ –
वायु का प्राकृतिक स्वभाव होता है - बहना। चूँकि यह एक स्थान पर ज्यादा देर नहीं रूकती अतः वायु की दिशा वायव्य में रहने वाले व्यक्ति में भी स्थायित्व या एक जगह ज्यादा देर रुकने की प्रवृति नहीं रह पाती है। अतः यह घर के मुखिया के शयन कक्ष के लिहाज से सर्वाधिक उपयुक्त जगह नहीं है, लेकिन अतिथि कक्ष के लिए यह उत्तम स्थान है। वायु के इसी गुण के चलते यह उन व्यक्तियों के लिए भी विशेष उपयोगी है जो अपने पैतृक स्थान से किसी कारणवश दूर रहना चाहते है या फिर की देश-विदेश में यात्राये करने के इच्छुक हो तो भी यह दिशा उपयुक्त है।
इसके अलावा यह दिशा खाद्यानों के भण्डारण के लिए भी उत्तम स्थान है। वायु की उपलब्धता में खाद्य वस्तुएं अधिक समय तक शुद्ध रहती है अतः वायव्य में सर्वदा उपलब्ध वायु इस दिशा में रखे हुए खाद्यानों को शुद्ध रखने में सहायक होती है।
इसके अतिरिक्त वायव्य कोण विवाह योग्य आयु की अविवाहित कन्याओं के बेडरूम के लिए, पालतू पशुओं व मनोरंजन कक्ष के रूप में भी यह दिशा बेहद उपयुक्त है। वायु भी अग्नि के समान रजस स्वाभाव की होती है और अग्नि को जलाने में सहायता करती है अतः वायव्य दिशा में किचन का भी निर्माण किया जा सकता है।
घर की दिशा का पता लगाना -
जिस सड़क से आप घर में प्रवेश करते है अगर वो घर के वायव्य दिशा में स्थित हो तो आपका घर वायव्यमुखी कहलाता है।
वायव्यमुखी घर में मुख्य द्वार का स्थान –
मुख्य द्वार की अवस्थिति का वास्तु शास्त्र में विशेष महत्व है। इस महत्व को देखते हुए वास्तु शास्त्र में एक भूखंड को 32 बराबर भागों या पदों में विभाजित किया जाता है। इन 32 भागों में से कुल 8 पद बेहद शुभ होते है जिन पर मुख्य द्वार का निर्माण उस घर के निवासियों को कई प्रकार के लाभ पहुंचाता है।
यहाँ एक ध्यान देने वाली बात है कि किसी भी भवन में Diagonal दिशाओं (ईशान, आग्नेय, नैऋत्य, वायव्य) में मुख्य द्वार नहीं बनाना चाहिए। वायव्यमुखी भवन में पश्चिम के चौथे या पांचवे पद में या फिर अगर उत्तर में संभव हो तो इसके 3, 4 या पांचवे पद में मुख्य द्वार बनाया जा सकता है।
वायव्यमुखी घर के लिए शुभ वास्तु –
वायव्यमुखी घर के लिए अशुभ वास्तु –
वास्तु दोष निवारण के कुछ सरल उपाय -
सुख और शांति के लिए जितना ज्यादा आपका व्यवहार मायने रखता है, उससे कहीं ज्यादा आपके घर का वास्तु। मकान को घर बनाने के लिए जरूरी है, परिवार में सुख-शांति का बना रहना। और ऐसा होने पर ही आपको सुकून मिलता है। यदि आप घर बनवाने जा रहे हैं, तो वास्तु के आधार पर ही नक्शे का चयन करें। अपने आर्किटेक्ट से साफ कह दें कि आपको वास्तु के हिसाब से बना मकान ही चाहिए। हां यदि आप बना-बनाया मकान या फ्लैट खरीदने जा रहे हैं, तो वास्तु संबंधित निम्न बातों का ध्यान रख कर अपने लिए सुंदर मकान तलाश सकते हैं।
मकान का मुख्य द्वार दक्षिण मुखी नहीं होना चाहिए। इसके लिए आप चुंबकीय कंपास लेकर जाएं। यदि आपके पास अन्य विकल्प नहीं हैं, तो द्वार के ठीक सामने बड़ा सा दर्पण लगाएं, ताकि नकारात्मक ऊर्जा द्वार से ही वापस लौट जाएं।
घर के प्रवेश द्वार पर स्वस्तिक या ऊँ की आकृति लगाएं। इससे परिवार में सुख-शांति बनी रहती है।
घर की पूर्वोत्तर दिशा में पानी का कलश रखें। इससे घर में समृद्धि आती है।
घर के खिड़की दरवाजे इस प्रकार होनी चाहिए, कि सूर्य का प्रकाश ज्यादा से ज्यादा समय के लिए घर के अंदर आए। इससे घर की बीमारियां दूर भागती हैं।
परिवार में लड़ाई-झगड़ों से बचने के लिए ड्रॉइंग रूम यानी बैठक में फूलों का गुलदस्ता लगाएं।
रसोई घर में पूजा की अल्मारी या मंदिर नहीं रखना चाहिए।
बेडरूम में भगवान के कैलेंडर या तस्वीरें या फिर धार्मिक आस्था से जुड़ी वस्तुएं नहीं रखनी चाहिए। बेडरूम की दीवारों पर पोस्टर या तस्वीरें नहीं लगाएं तो अच्छा है। हां अगर आपका बहुत मन है, तो प्राकृतिक सौंदर्य दर्शाने वाली तस्वीर लगाएं। इससे मन को शांति मिलती है, पति-पत्नी में झगड़े नहीं होते।
घर में शौचालय के बगल में देवस्थान नहीं होना चाहिए।
घर में घुसते ही शौचालय नहीं होना चाहिए।
यदि इन उपायों को आप करते है तो वास्तुदोष दूर होने के साथ ही आपके घर में किसी प्रकार के अन्य निर्माण का बिना तोड़-फोड़ किए सुख-समृद्धि एवं स्वास्थ्य लाभ मिलेगा।
निष्कर्ष –
वायव्यमुखी भवन अगर वास्तु सम्मत नहीं बने हो तो इस प्रकार के भवन के स्वामी कानूनी वाद-विवादों में निरंतर उलझे रहते है। साथ ही दोषपूर्ण वायव्यमुखी घर व्यक्ति को अत्यधिक दार्शनिक भी बना देता है और कई बार व्यक्ति के सांसारिक जीवन से भी विमुख की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। अतः यह आवश्यक हो जाता है कि वायव्यमुखी भवन पुर्णतः वास्तु सम्मत बने और इस प्रकार के घर के निवासियों का जीवन सुख-समृद्धि के साथ व्यतीत हो। इसके लिए आप गृहनिर्माण के वक्त किसी वास्तु विशेषज्ञ की सलाह ले सकते है।
Engineer Rameshwar Prasad(B.Tech., M.Tech., P.G.D.C.A., P.G.D.M.) Vaastu International
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