एक वास्तु अनुकूल भूखंड का चयन इसलिए बेहद अहम हो जाता है क्योंकि आप अपनी जिंदगी का बहुत बड़ा हिस्सा उसी भूभाग पर रहने वाले है। उस भूभाग का आकार, उसका स्वरुप, उसकी अवस्थिति, उस जमीन की गुणवत्ता, आसपास का वातावरण आपको जीवनभर सकारात्मक या नकारात्मक तौर पर प्रभावित करेगा। इसलिए किसी भी प्लॉट, जमीन को खरीदने से पहले वास्तु के सिद्धांतों पर उसे जरुर परख ले और इसके पश्चात् ही अंतिम निर्णय ले।
वास्तुशास्त्र में माना गया है कि भवन निर्माण से पूर्व उचित भूखंड का चयन कर उसका भूमि परीक्षण किया जाना चाहिए। ऐसा करने से भवन निर्माण के उपरांत वहां निवास करने वाले सदस्य अनेक प्रकार की परेशानियों से बच सकते हैं। मिट्टी परीक्षण संबंधी कुछ सिद्धांत और विधियां वास्तु में बताई गई हैं, जो वैज्ञानिक आधार पर भी एकदम सटीक उतरती हैं। नियमानुसार यदि मिट्टी उपयुक्त हो तभी भवन निर्माण करना चाहिए। यदि मिट्टी में कोई दोष हो, तो उसका निवारण करने के बाद ही भवन निर्माण करना श्रेयस्कर रहेगा।
रंग और गंध द्वारा मिट्टी का परीक्षण- ऊपरी मिट्टी की परत को हटाकर थोड़ी नीचे की मिट्टी को हाथ में लेकर देखने से इसका रंग आसानी से पता लग जाता है और सूंघकर इसकी गंध व चखकर इसका स्वाद मालूम हो जाता है। यदि श्वेत रंग की मिट्टी सुगंध और मिठास लिए हुए है, तो इसे ब्राह्मणी मिट्टी कहते हैं। आध्यात्मिक सुख प्रदान करने वाली ऐसी मिट्टी वाले भूखंड पर निर्मित भवन बुद्धिजीवियों, धार्मिक व्यक्तियों के लिए अनुकूल होते हैं। क्षत्रिय मिट्टी लाल रंग, तीखी गंध और तीखे कसैले स्वाद वाली होती है। वर्चस्व और पराक्रम को बढ़ाने वाली ऐसी मिट्टी के भूखंड प्रशासकों और राजकीय अधिकारियों के लिए उपयुक्त होते हैं। हल्के पीले रंग की हल्की गंध और खटास वाली मिट्टी वैश्य मिट्टी कहलाती है। व्यवसायी और व्यापारी वर्ग के लिए ऐसे स्थान पर आवास बनाना लाभकारी माना गया है, जो धन-धान्य से पूर्ण करती है। तीखी हल्की गंध और कड़वे स्वाद वाली काली मिट्टी को शुद्ध मिट्टी कहा जाता है। इस प्रकार की मिट्टी वाले भूखंड पर निर्माण करना सभी के लिए उपयुक्त है।
गड्ढे द्वारा भूमि परीक्षा- जहां निर्माण करना हो, उस स्थान पर गृह स्वामी की कुहनी से मध्यमा अंगुली तक की लम्बाई नापकर उसी नाप का गहरा, लम्बा व चौड़ा गड्ढा कर लें एवं निकली हुई मिट्टी से गड्ढे को पुनः भर दें। यदि मिट्टी कम पड़े तो हानि, बराबर रहे तो न हानि न लाभ तथा मिट्टी शेष बच जाए तो ऐसी भूमि को सुख-सौभाग्य प्रदान करने वाली समझना चाहिए। नारायण भट्ट ग्रंथ के अनुसार सांयकाल सूर्यास्त के समय ऊपर बताए गए नाप का गड्ढा खोदकर उसे पानी से पूरा भर दें। प्रातःकाल जाकर देखें, यदि पानी शेष है तो शुभ, पानी नहीं बचा, लेकिन मिट्टी गीली है, तो मध्यम तथा सूखकर दरारें पड़ जाए, तो भवन निर्माण के लिए इसे अशुभ माना गया है।
भूमि की शुभता- एक अन्य तरीके के अनुसार गड्ढे को जल से भरकर सौ कदम जाकर पुनः लौट कर देखें। गड्ढा अगर पूरा भरा हो तो उत्तम, चौथाई कम हो तो मध्यम, आधा या उससे कम रह जाए तो ऐसी भूमि वास्तु की दृष्टि में अच्छी नहीं मानी गई है।
बीज परीक्षण- भूमि परीक्षण बीज बो कर भी किया जाता है। यदि बीज समय पर अंकुरित हो जाए तो ऐसी भूमि पर निर्माण करना वास्तु में उचित माना जाता है।
जगह पर विश्राम करने से शुभता-अशुभता का भान- जिस जगह पर विश्राम करने से व्यक्ति के मन को शांति अनुभव होती है, सद्विचार आते हैं, वह भूमि भवन निर्माण के योग्य होती है।
वास्तुरत्न में कहा गया है कि गड्ढे में पानी स्थिर रहे तो घर में स्थायित्व, बाएं से दाएं घूमता दिखे तो सुख, दाएं से बाएं घूमे तो अशुभ रहता है।
भूखंड की खुदाई में कपाल, बाल, हड्डी, कोयला, कपड़ा, जली लकड़ी, चींटियां, सर्प, कौड़ी, रुई अथवा लोहा मिले तो अनिष्ट होता है। लेकिन पत्थर मिलें तो धनलाभ, ईंट मिलें तो बढ़ोत्तरी एवं तांबे के सिक्के आदि निकलें तो ऐसी भूमि सुख-समृद्धि दायक होती है।
भवन निमार्ण हेतु भूखण्ड विभिन्न आकारो में मिलते है। जैसे वर्गाकार, आयताकार, गोल, त्रिकोण आदि। वास्तुशास्त्र में विभिन्न आकार के भूखण्डों का चयन कर पाना मुश्किल होता है। किन्तु अवसर मिलने पर आकार के अनुरूप विचार करके भूखण्ड का चयन करना चाहिए। आइये हम आपको अनेक प्रकार के ऐसे भूखण्डो के बारे में बताते है, जिन पर भवन निर्माण करके निवास करने पर नाना प्रकार के सुखों की प्राप्ति होती है।
जिस जमीन पर आपका मकान बना हुआ है उस जमीन का आकार बहुत महत्वपूर्ण होता है। इसी से उस भवन में रहने वालों का भाग्य और दुर्भाग्य तय होता है। भवन बनवाने के लिए तीन तरह के भूखंड सबसे उत्तम माने गए हैं। उनमें शामिल हैं वर्गाकार समकोण भूखंड, आयताकार समकोण भूखंड और वृत्ताकार भूखंड।
वर्गाकार भूखण्ड- जिस भवन की लम्बाई, चैड़ाई समान हो और प्रत्येक कोण 90 अंश का हो या चारों भुजायें समान हो। ऐसे भूखण्ड को वर्गाकार कहते है। यह भूखण्ड सर्वश्रेष्ठ प्रकार का होता है, इसमें निवास करने वाले लोग सदा सुखी व समृद्ध होते है।
आयताकार भूखण्ड- दो भुजाये बड़ी व दो भुजायें छोटी तथा जिसके चारों कोण 90 अंश के हो इस प्रकार के भूखण्ड को आयताकार कहते है। इस भवन में निवास करने वाले लोागों के पास धन-धन्य व पद-प्रतिष्ठा बनी रहती है। गृहस्थ जीवन के लिए यह भूखण्ड उत्तम होता है।
वृत्ताकार भूखण्ड- जो भूखण्ड गोले के आकार का हो उसे वृत्ताकार भूखण्ड कहते है। सन्यासी, सन्तों व अध्यात्मिक पुरूषों के निवास के लिए यह भवन उपयुक्त होता है। हमारा संसद भवन भी वृत्ताकर है, इसलिए वहाॅ पर कभी आपसी सहमति नहीं बन पाती है।
चतुष्कोणाकार भूखण्ड- चार कोणों वाला भूखण्ड चतुष्कोणाकार भूखण्ड होता है। इस भूमि पर भवन निमार्ण करके रहने से सुख व समृद्धि बनी रहती है। परिवार के सभी सदस्यों की प्रगति हेाती है।
षटकोणाकार भूखण्ड- छह कोणों पर छह भुजाओं से युक्त भूखण्ड को षटकोणाकार भूखण्ड होता है। इस भूखण्ड पर निमार्ण करके रहने से दिन-दूनी, रात-चैगनी प्रगति होती है। घर के मुखिया का अपने परिवार पर पूरा नियन्त्रण रहता है।
अष्टकोणाकार भूखण्ड- जो भूखण्ड आठ कोणों व आठ भुजाओं से युक्त होता है उसे अष्टकोणाकार भूखणड कहते है। इस भूखण्ड में निमार्ण करके रहने से धन-धान की वृद्धि होती है एंव परिवार में आपसी प्रेम बना रहता है।
गोमुखाकार भूखण्ड- जिस भूखण्ड का फ्रंट कम होता है तथा पीछे की लम्बाई अधिक होती है। उसे गोमुखाकार भूखण्ड कहते है। इस प्लाट पर भवन बनाकर रहना अति-उत्तम माना जाता है। यह भवन व्यापारिक दृष्टिकोण से भी शुभ माना जाता है। इसमें आप रह भी सकते है और व्यापार भी कर सकते है। इसमें रहने वाले हर प्राणी का विकास होता है।
सिंहमुखाकार भूखण्ड- जो भवन सामने से अधिक और पीछे से कम हो तो उसे सिंहमुखाकार भूखण्ड कहते है। ऐसे भूखण्ड पर भवन बनाकार रहना तो शुभ नहीं होता है किन्तु व्यापारिक प्रतिष्ठान के लिए यह भवन शुभ होता है।
भद्रासन भूखण्ड- जिस भूखण्ड की लम्बाई व चैड़ाई समान हो तथा मध्य भाग समतल हो तो उसे भद्रासन भूखण्ड कहते है। ऐसी भूमि पर भवन-निर्माण करके वास करने से सभी प्राकर के सुखों की प्राप्ति होती है। सुख-समृद्धि, उत्तम स्वास्थ्य, शान्ति और प्रगति ये सभी सुख प्राप्त होते है।
काकमुखी भूखण्ड- जो भूखण्ड आगे से संकरा और पीछे से चैड़ा हो तो उसे काकमुखी भूखण्ड कहते है। इस भूखण्ड पर मकान बनवाकर रहने से घर के मुखिया को लाभ होता है तथा अन्य सभी लोगों का विकास होता है।
कुछ अन्य प्रकार के भूखंड चतुष्कोणीय या कहें सूपड़े के आकार का भूखंड अच्छा नहीं माना जाता है। इसमें निवास करने वाले हमेशा भ्रम का शिकार बने रहते हैं।
अष्टकोणीय लंबा भूखंड कष्ट एवं पीड़ा देता है। इसमें निवास करने वाले परेशानियों से घिरे रहते हैं। बीमारियां इन्हें घेरे रहती हैं और कोर्ट-कचहरी के मामलों में उलझे रहते हैं।
द्विकोणीय धनुषाकार भूखंड में रहने वाले लोगों के अनेक शत्रु होते हैं।
बल्टीनुमा भूखंड पर मकान बनाकर रहने वालों पर बहुत कर्ज चढ़ा रहता है। बार-बार इन्हें पैसा उधार लेना पड़ता है।
कोणात्मक भूखंड अच्छा नहीं होता है इस पर रहने वाले पति-पत्नी हमेशा झगड़ते रहते हैं।
कैप्सूल के आकार का भूखंड मिश्रित फलदायी होता है। इस पर रहने वाले आलसी और चीजों के प्रति उदासीन बने रहते हैं।
त्रिकोण भूखंड अशुभ- त्रिकोण भूखंड अशुभ होता है। इस पर भवन बनवाकर रहने वाले धन इकट्ठा नहीं कर पाते।
अंग्रेजी के एच आकार का भूखंड कम ही देखने में आता है। यह रहने के लिहाज से ठीक नहीं माना जाता।
अंग्रेजी के टी आकार के भूखंड पर रहने वालों के साथ कुछ ऐसी परिस्थिति बनती है कि उन्हें चार-पांच साल में मकान बेचना पड़ता है।
निम्न प्रकार का भूखंड वास्तु शास्त्र के अनुकूल होगा –
1. वर्गाकार भूखंड (आकर के लिहाज से सर्वश्रेष्ट)।
2. आयताकार भूखंड (दूसरा सबसे बेहतर विकल्प)।
3. भूखंड का ढलान उत्तर की ओर हो।
4. भूखंड का ढलान ईशान (उत्तर-पूर्व) की ओर हो।
5. पूर्व दिशा की ओर भी भूखंड का ढलान रखा जा सकता है।
6. वह नैऋत्य में सबसे अधिक ऊँचा हो।
7. ईशान कोण (उत्तर-पूर्व) बढ़ा हुआ भूखंड बेहद शुभ होता है।
8. जमीन के उत्तर या पूर्व में शुद्ध जलाशय (नदी, नहर, झील) की अवस्थिति।
9. जमीन के नैऋत्य, दक्षिण या पश्चिम में ऊँचा टीला, पहाड़ी, ऊँचे वृक्ष, ऊँची इमारत हो।
10. भूखंड जिस सड़क पर स्थित है उसकी चौड़ाई 30 फीट या उससे अधिक होना।
11. उत्तर मुखी या पूर्व मुखी जमीन वास्तु के अनुसार सर्वोतम होती है।
12. भूखंड के तीन तरफ या चारों तरफ रास्ता होना अत्यधिक उपयोगी होगा।
निम्न प्रकार का भूखंड वास्तु शास्त्र के सिद्धांतो के विपरीत होगा –
1. त्रिभुजाकार भूखंड।
2. वृताकार भूखंड।
3. अंडाकार भूखंड।
4. त्रिशुलाकर भूखंड।
5. आग्नेय दिशा में बढ़ा हुआ।
6. नैऋत्य दिशा में बढ़ा हुआ।
7. वायव्य दिशा में बढ़ा हुआ।
8. अन्य किसी भी दिशा में बढ़ा हुआ (अपवाद – ईशान कोण)।
9. आग्नेय दिशा में कटा हुआ।
10. नैऋत्य दिशा में कटा हुआ।
11. वायव्य दिशा में कटा हुआ।
12. ईशान दिशा में कटा हुआ।
13. अन्य किसी भी दिशा में कटा हुआ।
14. किसी भी अन्य प्रकार से अनियमित आकार का भूखंड।
15. नैऋत्य (दक्षिण-पश्चिम) में बड़े जलाशय (नदी, नहर, नाला, झील), बड़े गड्ढे की उपस्थिति।
16. उत्तर या पूर्व में किसी ऊँची इमारत, पर्वत, टीले के अवस्थिति।
17. दो विपरीत दिशाओ (उत्तर-दक्षिण या पूर्व-पश्चिम) में ऊँची इमारतो की अवस्थिति।
18. दक्षिण या पश्चिम की ओर ढलान वाले भूखंड।
19. ईशान से नैऋत्य की ओर ढलान वाले भूखंड।
20. दक्षिण या पश्चिम में उपस्थित क्षेत्र उत्तर व पूर्व की अपेक्षा अधिक खुला व खाली हो।
21. भूखंड बंद गली का अंतिम छोर ना हो।
22. जमीन के आसपास नकारात्मक निर्माण (शमशान, अस्पताल, इत्यादि) ना हो।
23. ट्रांसफार्मर, मोबाइल टावर, या अन्य बिजली स्त्रोत के पास जमीन की अवस्थिति।
कुल मिलाकर वास्तु शास्त्र के सिद्धांत पूरी तरह से तभी लागू हो सकते है जब भवन का निर्माण जिस भूखंड पर किया जा रहा हो वह वास्तु सम्मत हो। अतः किसी अच्छे वास्तु विशेषज्ञ से सलाह लेकर ही एक अच्छे भूखंड का चयन करे।
FOR VASTU SHASTRA IN HINDI CLICK HERE
FOR 45 DEVTAS OF VASTU PURUSHA MANDALA IN HINDI CLICK HERE
FOR 16 VASTU ZONES IN HINDI CLICK HERE
FOR FIVE ELEMENTS OF VASTU IN HINDI CLICK HERE
FOR AYADI VASTU IN HINDI CLICK HERE
FOR GEOPATHIC STRESS VASTU IN HINDI CLICK HERE
FOR VASTU AND COSMIC ENERGY IN HINDI CLICK HERE
FOR VASTU TIPS IN HINDI - CLICK HERE
VASTU TIPS FOR PAINTINGS - CLICK HERE
VASTU TIPS FOR CLOCK IN HINDI - CLICK HERE
VASTU TIPS FOR REMOVING NEGATIVE ENERGY IN HINDI - CLICK HERE
VASTU TIPS FOR POSITIVE ENERGY IN HINDI - CLICK HERE
VASTU TIPS FOR CAREER IN HINDI - CLICK HERE
VASTU TIPS FOR MONEY IN HINDI - CLICK HERE
VASTU TIPS FOR HAPPY MARRIED LIFE IN HINDI - CLICK HERE
VASTU TIPS FOR PLOTS IN HINDI - CLICK HERE
FOR VASTU TIPS ON BEDROOM IN HINDI - CLICK HERE
FOR AROMA VASTU TIPS - CLICK HERE
Engineer Rameshwar Prasad(B.Tech., M.Tech., P.G.D.C.A., P.G.D.M.) Vaastu International
|