A Multi Disciplinary Approach To Vaastu Energy

VASTU SHASTRA

आयादि वास्तु (Aayadi Vastu in Hindi)

इस संसार में उत्पन्न होने वाला प्रत्येक प्राणी अपने जीने के लिए निरंतर सुख-साधनों को जुटाने में लगा रहता है। मनुष्य अपने लिए न केवल आवास का ही निर्माण करता है बल्कि समाज एवं समाज में जीने योग्य नियमों को भी बनाता है जिससे आगे चलकर उसका जीवन सुखमय व्यतीत हो सके। व्यक्ति अपने अनुसार निवास स्थान बनाता है और उसमें निवास करके सुखमय जीवन व्यतीत करने की इच्छा रखता है। जिन निवास स्थानों से मनुष्यों के सुख-दुखों का जुड़ाव होता है उस निवास स्थान पर निर्माण होने के बाद वह मकान पूर्ण रूप से दोषरहित एवं उत्तम होना चाहिए। अतः इन सभी बातों पर ध्यान देते हुए ही हमारे प्राचीन ऋषि-मुनियों ने वास्तुशास्त्र (Vastu Shastra) की रचना की जिसके आधार पर निर्माण कार्य किया जा सके और उसमें रहने वाले लोग सुखी एवं प्रसन्न रह सके।

वास्तु में आयाम व आयादि सूत्र

भूमि की लंबाई को भवन के गर्भगृह के केन्द्रीय हिस्से के चौड़ाई से गुणा करने पर आयाम प्राप्त होता है। आयाम ही किसी भी भवन में रहने वालों के सुख, सौभाग्य, स्वास्थ्य तथा आयु पर अच्छा या बुरा असर डालता है।

आयाम की गणना भवन के सेन्ट्रल एरिया की लंबाई, चौड़ाई के गुणा से ज्ञात किया जा सकता है। लम्बाई व चौड़ाई के गुणन से प्राप्त मान को 9 से गुणा करके 8 से भाग देने पर प्राप्त संख्या 1 से 8 का  निम्नाकित भविष्य होगा।

एक ध्वजायाम – परिवार में सुख, समृद्धि, घर में आर्थिक सम्पन्नता तथा खुशहाली लाने वाला
दो धूमायाम – घर के पुरुष मुखिया को बीमारी तथा घर में भयावह गरीबी लाने वाला
तीन सिंहायाम – शत्रुओं पर विजय देने वाली तथा भवन के निवासियों के लिए स्वास्थ्य, धन-धान्य तथा सम्पन्नता लाने वाला
चार स्वनायाम – भवन में रहने वालों के लिए बीमारियां तथा अशुभ असर लाने वाला
पांच वृषभायाम – भवन पर मां लक्ष्मी की साक्षात कृपास्वरूप, धन, सम्पन्नता तथा सौभाग्य देने वाला
छह खरायाम – बुरा स्वास्थ्य, जीवन में आकस्मिक दुर्घटनाएं तथा अशुभता लाने वाला
सात गजायाम – भवन में रहने वालों के लिए धन, स्वास्थ्य, फेम, बुद्धि तथा भाग्य बढ़ाने वाला
आठ काकायाम – भवन के निवासियों के लिए दुखदायी, सभी लोगों की शांति, समृद्धि खत्म कर भयावह गरीबी और बीमारी लाने वाला

शुभ आयाम – ध्वज, सिंह, वृषभ, गज

अशुभ आयाम – धूम्र, स्वान, खर, काक

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आयाम के द्वारा भवन या कमर्शियल स्थान के उपयोग का शुभाशुभ निर्णय :-

गोदाम, वेयरहाउस तथा कोल्ड-स्टोरेज गजायाम
दुकानें तथा कॉमर्शियल कॉम्पलेक्स

गजायाम अथवा सिंहायाम शुभ

ध्वजायाम औसत फल देने वाला

थिएटर, सिनेमा हॉल्स, रिसर्च लैब, सेंटर्स, स्कूल, कॉलेज आदि

वृषभायाम सर्वश्रेष्ठ

ध्वजायाम – औसत

जिम, क्लब हाउस, हॉस्टल आदि

सिंहायाम – शुभ

गजायाम – औसत फल देने वाला

न्यायालय भवन, सार्वजनिक स्थल, पंचायत भवन, विधानसभा आदि सिंहायाम
फैक्टरी तथा औद्योगिक भवन सिंहायाम अथवा ध्वजायाम
मिल्स, चीनी मील, चावल मिल आदि

ध्वजायाम, वृषभायाम – शुभ

सिंहायाम – औसत

मैरिज हॉल वृषभायाम अथवा ध्वजायाम
धर्मशाला तथा लॉजिस्टिक सेंटर्स गजायाम – सर्वश्रेष्ठ, वृषभायाम व ध्वजायाम औसत फल देने वाला

नोटः पहले फ्लोर (मंजिल) का आयाम पूरी तरह से वही होना चाहिए जो कि ग्राउंड फ्लोर का है। पहले फ्लोर की हाईट (ऊंचाई) भी ग्राउंड फ्लोर की ऊंचाई से ज्यादा नहीं होनी चाहिए।

अयादि की गणना करना

किसी भी भवन को बनाते समय उसमें आयाम के साथ-साथ कई अन्य बातों का भी ध्यान रखा जाता है जो उस भवन की शुभता तथा वास्तु अनुरूपता को बढ़ाकर उसे सब प्रकार से सौभाग्यशाली तथा मंगलदायी बनाती हैं।

  1. प्लिंथ एरिया ( भूमि का या कंस्ट्रक्शन एरिया का क्षेत्रफल) को 8 से गुणा कर उसे 12 का भाग देने पर बचे शेष को धन (Wealth) कहते हैं।
  2. प्लिंथ एरिया को 3 से गुणा कर उसमें 8 का भाग देने पर बचे शेष को ऋण (Rin) कहते हैं।
  3. प्लिंथ एरिया को 9 से गुणा कर उसमें 8 का भाग देने पर बचे शेष को आयाम (Ayam) कहते हैं।
  4. प्लिंथ एरिया को 8 से गुणा कर उसमें 30 का भाग देने पर बचे शेष को तिथि (Tithi) कहते हैं।
  5. प्लिंथ एरिया को 9 से गुणा कर उसमें 7 का भाग देने पर बचे शेष को दिन (Day) कहते हैं।
  6. प्लिंथ एरिया को 8 से गुणा कर उसमें 27 का भाग देने पर बचे शेष को नक्षत्र (Star) कहते हैं।
  7. प्लिंथ एरिया को 4 से गुणा कर उसमें 27 से भाग देने पर बचे शेष को योग (Yoga) कहते हैं।
  8. प्लिंथ एरिया को 5 से गुणा कर उसमें 11 से भाग देने पर बचे शेष को कर्ण (Karna) कहते हैं।
  9. प्लिंथ एरिया को 6 से गुणा कर उसमें 9 का भाग देने पर बचे शेष को (Amsam) कहते हैं।
  10. प्लिंथ एरिया को 9 से गुणा कर उसमें 12 से भाग देने पर बचे शेष को उस भवन की कुल उम्र (Age of the Building) माना जाता है।

नोट :- धन को सदैव ऋण से अधिक होना चाहिए।

तिथि

15 अमावस्या, 30 पूर्णिमा

1, 4, 8, 9, 14 – अशुभ

2, 3, 5, 6, 7, 10, 11, 12, 13 – शुभ

नक्षत्र

4, 5, 8, 12, 13, 14, 15, 17, 21, 23, 24, 26, 27 – सौभाग्यशाली

योग

15, 13, 1, 9, 10, 11, 27, 17, 19 – अशुभ

करण

1, 2, 3, 4, 5 – शुभ फलदायी

अंश (Amsa)

1 – हानि, 2 – इम्प्रुवमेंट, 3 – धन, 4 – चिंता, 5 – मृत्यु का भय, 6 – चोरी की आशंका, 7 – परिवार में बढ़ोतरी, 8 – हस्बैंडरी इम्प्रुवमेंट, 9 (अथवा 0) – प्रसन्नता तथा सौभाग्यवर्धक

उम्र

60 वर्ष से अधिक होने पर शुभ तथा इससे कम होने पर अशुभ माना जाता है।

विशेष :- यहां पर ‘आयाम’ शब्द से तात्पर्य ‘योनि’ से है। जबकि ‘धन’ (Wealth) का अर्थ ‘आय’ तथा ‘ऋण’ का अर्थ ‘व्यय’ से हैं।

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(B.Tech., M.Tech., P.G.D.C.A., P.G.D.M.)

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