आपको बताते हैं वास्तु के अनुसार अंडरग्राउंड वाटर टैंक बनाने के समय पर किन वास्तु टिप्स का बेहद ख्याल रखना चाहिए।
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वाटर टैंक के लिए वास्तुशास्त्र में ईशान कोण दिशा को उपयुक्त माना जाता हैं, जल सम्बंधित चीजों के लिए यह प्रमुख स्थान बताया गया हैं। परन्तु इसको कभी भी घर के बाहर नहीं बनाना चाहिए। ऐसा करने से इससे होने वाले फायदे घर में रह रहे लोगो को नहीं मिलते।
Ideal Location For An Underground Water Tank According to Vastu Shastra
Zones | Underground Water Tank |
---|---|
North East | Yes |
East North East | Yes |
East | Yes |
East South East | No |
South East | No |
South South East | No |
South | No |
South South West | No |
South West | No |
West South West | No |
West | No |
West North West | No |
North West | No |
North North West | No |
North | Yes |
North North East | Yes |
वाटर टैंक का रंग वास्तु अनुसार होने से टैंक से सकारात्मक ऊर्जा की प्राप्ति होती हैं, जैसा की आप जानते है वास्तु शास्त्र में रंगो का बहुत महत्व होता हैं, हर एक दिशा के अनुसार रंग अलग अलग प्रयोग किये जाते हैं। अतः वास्तु अनुसार वाटर टैंक के लिए ग्रे, नीला व सफ़ेद रंग बताया गया हैं।
वाटर टैंक के बाहर कभी भी हरा तथा काला रंग नहीं करना चाहिए ऐसा करने से घर में कर्जा बढ़ता हैं। जिसे की घर में निवास करने वाले लोग पूरी जिंदगी चुकाने में असमर्थ रहते हैं।
बृहत्संहिता में पानी, अग्नि, वायु, आकाश और पृथ्वी तत्व के लिए अलग-अलग दिशाएं यानी जगह बताई गई हैं। वास्तु के अनुसार पूर्व, उत्तर और उत्तर-पूर्व दिशा पानी के लिए अनुकूल है। इस दिशा में पानी होने से धन लाभ होता है। ऐसा घर उन्नति और समृद्धि देने वाला माना गया है।
इन दिशाओं में जल स्थान, टंकी या पीने का पानी रखा जाए तो घर में परेशानियां नहीं होती, लेकिन इसके उलट यानी अन्य दिशाओं में पानी रखा जाए तो धन हानि और बीमारियां होती हैं और घर में रहने वाले लोगों की परेशानियां बढ़ने लगती है।
ईशान का अर्थ जो ईश्वर से संबंधित हो। ईशान कोण आप जानते होंगे कि पूर्व और उत्तर के मध्य स्थित होता है। पूर्व दिशा के स्वामी इंद्र हैं, जो दैविक ऐश्वर्य का प्रतिनिधित्व करते हैं और उत्तर दिशा के स्वामी कुबेर हैं, जो भौतिक ऐश्वर्य का प्रतिनिधित्व करते हैं। अतः ईशान कोण इन दोनों दैविक और भौतिक ऐश्वर्य के मध्य स्थित होने के कारण दोनों तरह के ऐश्वर्यों को देने वाला कहा जाता है।
इसलिए सदैव जल का स्रोत कुआं, हैंडपंप, बोरिंग, तालाब, तरणताल, अंडर ग्राउंड वाटर टैंक, फव्वारा आदि ईशान कोण में ही होने चाहिए। ईशान कोण में जल तत्व न होने से नेटवर्क एक्टिव नहीं हो पाता यानी बड़े रसूखदार लोगों से जान पहचान तो होती है पर वह वक्त पर काम नहीं आते।
दक्षिण दिशा में पानी की टंकी या भूमिगत टेंक नहीं होना चाहिए। इससे परिवार में अशांति और धन हानि होती है।
यदि आकार की बात की जाये तो वाटर टैंक आयताकार होना चाहिए।
उत्तर दिशा में पानी का टेंक या पीने का पानी रखा जाए तो ऐसे घर में शांति और सुख बढ़ता है।
दक्षिण पूर्व दिशा को भी पानी का टैंक लगाने के लिए उपयुक्त नहीं माना जाता है क्योंकि इसे अग्नि की दिशा कहा गया है। अग्नि और पानी का मेल गंभीर वास्तु दोष उत्पन्न होता है।
घर में मुख्यद्वार के पास अंडरग्राउंड वाटर टैंक नहीं बनाना चाहिए।
ब्रह्मस्थान में वाटर टैंक बना होने से कभी घर में कोई भी कार्य पूरा नहीं हो पाता है।
वाटर टैंक के पास अग्नि से सम्बन्धी कोई भी कार्य नहीं करना चाहिए।
जल तत्व शरीर के रसायन से संबंध रखने वाला अति महत्वपूर्ण तत्व है। इससे सारा शरीर प्रभावित हैं, विशेषकर मस्तिष्क। आकांक्षा, शांति, स्वाभिमान, सम्मान, संगीत, रुचि-अरुचि, सत्य-असत्य, वंश वृद्धि, तार्किक क्षमता, धर्म-अधर्म, विश्वास, विक्षिप्तता, ज्ञान विज्ञान इत्यादि जीवन के अनेक आयामों में इसका प्रभाव पड़ता है।
भारतीय संस्कृति में जल का महत्व सबसे अधिक है। यहां के प्रायः प्राचीन मंदिर जल स्त्रोतों के आस-पास है।
वास्तु शास्त्र के सिद्धान्त के अनुसार यदि जल का स्थान उपयुक्त जगह पर है तो शक्ति, संपन्नता, संतति, शांति और पुण्य प्रताप में अनिवार्यतः वृद्धि होती है।
आजकल घरों में वास्तु की अनदेखी करके जल स्त्रोत या जल का स्थान कहीं भी सुविधानुसार बना लिया जाता है। परिणामतः वहां पर अशांति, मानसिक क्लेष, दरिद्रता, अर्थहानि, अपयश और संतति कष्ट होते हैं।
दक्षिण-पश्चिम दिशा यानी नैऋत्य कोण में भी पानी की टंकी का होना अशुभ माना गया है। इस स्थान में पानी होने से घर में बीमारियां होने लगती है और कर्जा भी बढ़ने लगता है। ऐसे घर में रहने वाले लोगों को मानसिक बीमारियां भी हो सकती हैं।
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Engineer Rameshwar Prasad(B.Tech., M.Tech., P.G.D.C.A., P.G.D.M.) Vaastu International
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